बेंगलुरु: अंतरिक्ष में एसिडिक यूरिन के साथ हाई कैल्शियम स्राव, लंबे समय तक डीहाइड्रेट फूड और मूत्र की मात्रा में कमी के कारण अंतरिक्ष यात्री ज्यादा सेंसिटिव होते हैं या उनमें गुर्दे की पथरी विकसित होने का जोखिम ज्यादा होता है. इसलिए, अंतरिक्ष में स्टोन फोर्मेशन के मॉलिक्यूलर सिस्ट्म को समझने की आवश्यकता है, और गुर्दे की पथरी के जोखिम को कम करने के लिए बेहतर ट्रीटमेंट काउंटरमेजर विकसित करना जरूरी है.
इसी क्रम में यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस (UAS) धारवाड़ और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी (IIST) त्रिवेंद्रम ने फ्रूट फ्लाई को बायोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट के लिए इसरो के गगनयान मिशन का हिस्सा बनने के लिए चुना है, जो अगले साल उड़ान भरने वाला है.
फ्रूट फ्लाई का वैज्ञानिक नाम 'ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर' है, जो आम तौर पर केले में पाई जाती है. गगनयान मिशन के लिए एक पेलोड में फ्रूट फ्लाई का उपयोग करके अंतरिक्ष में 'अंडर स्टैंडिंग किडनी स्टोन फॉर्मेशन इन स्पेस यूजिंग फ्रूट फ्लाईस: रेलिवेंस टू एस्ट्रोनॉट हेल्थ' नाम के टाइटल से एक स्टडी शामिल होगी.
यह स्टडी स्पेस में अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य संरक्षण के साथ-साथ खाद्य संरक्षण की दिशा में रास्ता खोलने का अग्रदूत हो सकती है. यह हड्डियों के क्षय और कडनी स्टोन जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान पर भी काम करता है, जो अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्रियों को प्रभावित कर सकती हैं.
फ्रूट फलाई की किट
यह रिसर्च प्रोजेक्ट IIST-त्रिवेंद्रम और UAS-धारवाड़ के सहयोग से क्रियान्वित किया जा रहा है, जहां इन फ्रूट फ्लाई को गगनयान मिशन पर अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. इस उद्देश्य के लिए, IIST ने 20 फ्रूट फलाई (नर और मादा की समान संख्या) से बनी एक किट तैयार की है. यह किट एक साल की मेहनत के बाद तैयार की गई है और इसका पूरा डिजाइन-डेवलपमेंट IIST ने किया है. इस परियोजना की कुल लागत 78 लाख रुपये है और इसे इसरो द्वारा समर्थन दिया गया है.
नासा एम्स रिसर्च सेंटर, कैलिफोर्निया के पूर्व शोधकर्ता और यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस के बायोटोक्नॉजी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर रविकुमार होसामनी इस शोध अध्ययन परियोजना में IIST के साथ संयुक्त रूप से नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने और उनकी टीम ने इस अभिनव मॉडल के लिए प्रशंसा अर्जित की.
एक इंटरव्यू में रविकुमार होसामनी ने परियोजना के बारे में विस्तार से बात की और कहा कि मक्खियां प्रजनन करेंगी. वे ज़्यादातर सूजी और गुड़ के मिश्रण को सोडियम ऑक्सालेट के साथ खाती हैं. यह एक रसायन है, जिसमें पथरी बनाने वाला आहार होता है.
इस कार्यक्रम के लाभों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "यह अध्ययन अंतरिक्ष यात्रियों में किडनी स्टोन फोर्मेशन के बीच अंतर जानने के लिए फायदेमंद होगा.विकास के चरणों में बहुत बाद में यह इस समस्या से निपटने के लिए प्रतिवाद के रूप में काम करेगा. इसे फिर चूहों के मॉडल और दवा खोज अध्ययनों में लागू किया जाएगा. यह मॉडल प्रणाली सरल जीवों और जल्दी से प्रजनन करने वाले विभिन्न रोगों को समझने में मदद करेगी."
सात साल तक नासा एम्स रिसर्च सेंटर कैलिफोर्निया में काम
होसामनी ने मैसूर में CFTRI से पीएचडी की और करीब सात साल तक नासा एम्स रिसर्च सेंटर कैलिफोर्निया में काम किया. उन्होंने नासा के इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर नियमित रूप से इस तरह के प्रयोग किए. बाद में वह नासा सेंटर में एक रिसर्च फैक्लटी बन गए.
उन्होंने कहा कि उनकी प्रयोगशाला इन फ्रूट फ्लाई को आईएसएस में भेजने में माहिर है और उन्होंने चार उड़ान प्रयोग किए है. इन प्रयोगों के माध्यम से, उन्होंने और उनकी शोध टीम ने अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा सामना की जाने वाली विभिन्न जैविक प्रक्रियाओं और कठिनाइयों को समझने की कोशिश की, जैसे कि कम गुरुत्वाकर्षण वाले वातावरण में मस्तिष्क कैसे प्रतिक्रिया करता है, अंतरिक्ष स्टेशन पर जाते समय हृदय का कार्य और संरचना कैसे बदलती है.
2017 में रविकुमार यूएएस धारवाड़ में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में शामिल हुए. जब भारत सरकार ने गगनयान मिशन के लिए प्रस्ताव मांगे, तो आईआईएसटी और यूएएस-धारवाड़ ने फ्रूट फ्लाई प्रोजेक्ट के साथ इसरो से संपर्क किया. गगनयान परियोजना के लिए अपने दृष्टिकोण के बारे में बात करते हुए, रविकुमार ने कहा, "अंतरिक्ष जीव विज्ञान भारत में एक नई घटना है और शायद ही कोई इस क्षेत्र में शोध कर रहा हो. इसरो अब इसका समर्थन कर रहा है. हालांकि, यह नासा और यूरोपीय राज्यों जैसे पश्चिमी दुनिया में एक अच्छी तरह से स्थापित अनुसंधान क्षेत्र है.
होसामनी ने गगनयान कार्यक्रम का हिस्सा बनने जा रही फ्रूट फ्लाई के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण हड्डियों और मांसपेशियों को नुकसान होता और कैल्शियम भी लीक हो जाता है जो किडनी में जमा हो जाता है और इससे पथरी बन जाती है. इसलिए, अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में किडनी स्टोन बनने का बहुत खतरा होता है. इस शोध परियोजना में, अंतरिक्ष में किडनी स्टोन का निर्माण पृथ्वी से किस तरह अलग है, इसका अध्ययन किया जाएगा.
इस परियोजना के लिए फ्रूट फ्लाई को प्राथमिकता क्यों दी गई?
इस बारे में उन्होंने कहा कि फ्रूट फ्लाई अपनी शारीरिक संरचना के लिए जानी जाती हैं, जो मनुष्यों के समान है. जीरो ग्रेविटी में इन मक्खियों में होने वाले परिवर्तनों से भविष्य के मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों के लिए मूल्यवान जानकारी मिलने की उम्मीद है.
फ्रूट फ्लाई की माल्पीघियन नलिका आनुवंशिक संरचना, कार्य और संरचना में मानव गुर्दे की तरह है, जो इसे गुर्दे की पथरी के गठन का अध्ययन और मात्रा निर्धारित करने के लिए एक उत्कृष्ट मॉडल बनाती है. इसलिए, ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर का उपयोग छोटी अवधि की अंतरिक्ष उड़ान स्थितियों के तहत गुर्दे की पथरी की विकृति की जांच करने के लिए किया जा सकता है.
डॉ. होसामनी ने आगे बताया कि गगनयान स्पेस व्हीकल पृथ्वी की ऊंचाई से लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर जीरो ग्रेविटी में पृथ्वी की निचली कक्षा में परिक्रमा करता है. इसे वापस लौटने से पहले तीन से पांच दिनों तक पृथ्वी का चक्कर लगाने की योजना है और अंत में यह गुजरात के तट पर वापस आएगा. बाद में वैज्ञानिक इस अवधि के दौरान सैंपल किट में होने वाले परिवर्तनों की बारीकी से निगरानी करेंगे.
यूएएस-धारवाड़ के कुलपति प्रो. पीएल पाटिल ने बताया कि फ्रूट फ्लाई की शीशियों सहित अंतरिक्ष में ड्रोसोफिला प्रयोगों के संचालन के लिए विशेष हार्डवेयर बनाए जाएंगे. पृथ्वी पर लौटने पर हम मक्खियों की माल्पीघियन नलिकाओं को विच्छेदित करेंगे और आईआईएसटी टीम के सहयोग से आगे के विश्लेषण करेंगे.
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