चुनावी राजनीति की कोलाहल के बीच, दो प्रमुख घटनाक्रमों ने नये भारत को आकार देने में महिलाओं के शानदार योगदान पर प्रकाश डाला है. पहली घटना डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) के शांति मिशन में तैनात मेजर राधिका सेन से संबंधित है, राधिका सेन को यूएन मिलिट्री जेंडर एडवोकेसी ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया है.
मेजर सेन ने डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में अशांति के बीच युवा लड़कियों और महिलाओं को मुक्ति दिलाने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए असाधारण काम किया. जिसके लिए उन्हें कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं. यूएन ने पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा कि मेजर सेन ने कई महिलाओं को अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए लड़ाई लड़ने को प्रेरित किया.
उन्होंने वर्दी पहनकर शांति मिशन का नेतृत्व किया. शांति मिशन के तहत काम करते हुए उन्होंने कांगो में वर्षों पुराने सामाजिक रूढ़ियों और पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रहों को खत्म किया. यूएन ने अपने बयान में यह भी कहा कि मेजर सेन सहानुभूति और समावेशिता की प्रतीक के रूप में उभरी. मेजर सेन जैसी महिलाएं एक न्यायसंगत और समतावादी सामाजिक व्यवस्था को आकार देने में एक नए प्रतिमान की स्थापना कर रही हैं.
संयुक्त राष्ट्र में भारत की पहली महिला स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज की सेवानिवृत्ति से संबंधित सामाजिक विकास उल्लेखनीय रहा है. उन्होंने राजनयिक के रूप में 35 वर्षों तक सेवा की है. रुचिरा कंबोज का शानदार करियर चार दशकों में फैला हुआ है. यूपीएससी परीक्षा में सभी महिला उम्मीदवारों में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद शुरू हुई उनकी यात्रा में विदेश मंत्रालय (एमईए) में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाली मुख्य प्रोटोकॉल अधिकारी बनने का गौरव भी शामिल है. बाद में वह संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में स्थायी प्रतिनिधि के रूप में भी नियुक्त हुई. इस बीच उन्होंने कई अन्य उपलब्धियां भी हासिल की हैं.
संयुक्त राष्ट्र में, उन्होंने दिसंबर 2022 में सुरक्षा परिषद की सफलतापूर्वक अध्यक्षता की और कुर्सी को गरिमा प्रदान की. महासभा, सुरक्षा परिषद और अन्य समितियों जैसे विभिन्न मंचों पर उनके हस्तक्षेप को भारतीय संस्कारों में निहित 'वसुधैव कुटुम्बकम' के मानवीय सिद्धांत के प्रति बेदाग ईमानदारी और अटूट प्रतिबद्धता के साथ जोड़ कर देखा जाता है.
उनके कार्यकाल के दौरान, दुनिया ने कई संकट देखे जैसे रूस-यूक्रेन संघर्ष, मध्य पूर्व संघर्ष और सूडान गृह युद्ध जैसी अन्य आपदाएं. वैश्विक व्यवस्था के तीव्र ध्रुवीकरण और विखंडन ने वैश्विक दक्षिण के देशों के लिए कई चुनौतियां पैदा कीं. इन अनिश्चित परिस्थितियों में, उन्होंने भारत की विदेश नीति को कुशलता से संचालित किया. जैसा कि उन्होंने खुद संयुक्त राष्ट्र में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि भारत एक पुल निर्माता और संयम की आवाज है. यह शांति के समर्थन में दृढ़ता से खड़ा है. रुचिरा ने भारत के इस आवाज को स्वर दिया.
ऐसे समय में जब बड़ी शक्तियों ने भारत को निर्णय लेने की मेज पर एक निश्चित स्थिति अपनाने के लिए मजबूर किया, उनके नेतृत्व में देश ने वैश्विक दक्षिण के नेता के रूप में राष्ट्रीय स्थिति को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया. पाकिस्तान के नापाक इरादों पर अपनी तीखी टिप्पणियों के साथ वह संयुक्त राष्ट्र के सामने उस देश के नैतिक दिवालियापन की पोल खोलती रहीं.