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अमेरिकी फंडिंग से भारत या बांग्लादेश किसे मिला फायदा? भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर मढ़ रहे आरोप - USAID FUND IN INDIA

दक्षिण एशिया में चुनावी प्रक्रियाओं के लिए अमेरिकी फंडिंग को लेकर विवाद छिड़ गया है. कभी भारत, तो कभी बांग्लादेश का नाम सामने आ रहा.

DONALD TRUMP ON USAID
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप. (फाइल फोटो) (ANI)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Feb 22, 2025, 3:58 PM IST

Updated : Feb 22, 2025, 4:23 PM IST

नई दिल्ली: भारत के चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए कथित तौर पर अमेरिकी एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) की 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग की गयी थी. अमेरिका के इस दावे के बाद भारत में राजनीतिक बहस शुरू हो गई है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के लिए यूएसएआईडी के वित्तपोषण के बारे में सरकार से श्वेत पत्र की मांग की है, जबकि भाजपा ने दावा किया है कि अमेरिकी प्रशासन की घोषणा से यह पुष्टि होती है कि भारत की चुनावी प्रक्रिया में विदेशी प्रभाव था.

विदेश मंत्रालय ने क्या कहाः हालांकि, ताज़ा मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि यह धनराशि वास्तव में 2022 में बांग्लादेश के लिए आवंटित की गई थी. जिससे गलत सूचना और विदेशी सहायता रिकॉर्ड की सटीकता पर सवाल उठ रहे हैं. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को यहां नियमित मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा कि धनराशि के वास्तविक प्राप्तकर्ता का निर्धारण करना अभी जल्दबाजी होगी. एजेंसियां इस मामले की जांच कर रही हैं. विदेश मंत्रालय के इस बयान के बाद आगे और अटकलें और राजनीतिक बहस की गुंजाइश बनी रहेगी.

"हमने यूएसएआईडी की कुछ गतिविधियों और वित्तपोषण के संबंध में अमेरिकी प्रशासन द्वारा दी गई जानकारी देखी है. ये स्पष्ट रूप से बहुत परेशान करने वाले हैं. इससे भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप की चिंता पैदा हुई है. संबंधित विभाग और एजेंसियां इस मामले की जांच कर रही हैं. इस मामले पर सार्वजनिक टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी."- रणधीर जायसवाल, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता

randhir jaiswal
रणधीर जायसवाल. (ANI)

क्या है विवाद का कारणः 16 फरवरी को डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के नवगठित सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) ने कहा कि उसने भारत के चुनावों में मतदान को बढ़ावा देने के लिए $21 मिलियन के वित्तपोषण को समाप्त कर दिया है. अपने एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में, DOGE ने कहा कि वह "भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर के आवंटन को रद्द कर रहा है. DOGE, आधिकारिक तौर पर US DOGE सेवा अस्थायी संगठन, टेक अरबपति एलन मस्क के नेतृत्व वाले दूसरे ट्रम्प प्रशासन की एक पहल है. DOGE अमेरिकी सरकार का कैबिनेट स्तर का विभाग नहीं है, बल्कि यूनाइटेड स्टेट्स DOGE सेवा के तहत एक अस्थायी अनुबंधित सरकारी संगठन है.

क्या कहा था ट्रम्प नेः ट्रम्प ने बुधवार को मियामी में एक भाषण के दौरान कहा था, "हमें भारत में मतदान के लिए 21 मिलियन डॉलर क्यों खर्च करने की ज़रूरत है? वाह, 21 मिलियन डॉलर! मुझे लगता है कि वे किसी और को निर्वाचित कराने की कोशिश कर रहे थे." हालांकि, ताजा रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश को ढाका विश्वविद्यालय में लोकतंत्र प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए 21 मिलियन डॉलर आवंटित किए गए थे. वास्तव में, यूएसएआईडी में राजनीतिक प्रक्रिया सलाहकार लुबेन मासूम ने पिछले साल दिसंबर में अपने लिंक्डइन हैंडल पर चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया सुदृढ़ीकरण नागोरिक परियोजना के लिए कंसोर्टियम की स्थापना के लिए 21 मिलियन डॉलर के यूएसएआईडी अनुदान के बारे में पोस्ट किया था.

मासूम ने लिखा था, "मुझे 2 दिसंबर को वाशिंगटन डीसी में उनके मुख्यालय में नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट (NDI) के सहकर्मियों से मिलने का सौभाग्य मिला. हालांकि NDI की बांग्लादेश में कोई मौजूदगी नहीं है, लेकिन यह USAID द्वारा वित्तपोषित 21 मिलियन डालर CEPPS/Nagorik परियोजना के तहत IRI और IFES के साथ तीन प्रमुख भागीदारों में से एक है. लोकतंत्र और शासन को आगे बढ़ाने में अपने काम के लिए NDI को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है. पिछले साल, CEPPS/Nagorik परियोजना के तहत बांग्लादेश में चुनाव-पूर्व मूल्यांकन मिशन (PEAM) और तकनीकी मूल्यांकन मिशन (TAM) में भाग लिया, जिसका प्रबंधन मैं करता हूं"

लोकतंत्र मजबूत करने का इतिहासः अमेरिका का विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों, एजेंसियों और वित्तीय सहायता तंत्रों के माध्यम से दुनिया भर में लोकतंत्र प्रक्रियाओं को प्रभावित करने का एक लंबा इतिहास रहा है. लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए आवंटित धन आमतौर पर राजनीतिक संस्थाओं, नागरिक समाज, मानवाधिकारों और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को मजबूत करने की दिशा में निर्देशित किया जाता है. सीईपीपीएस इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स, इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट और नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट का संयोजन है.

क्या है यूएसएआईडीः दुनिया में यह लोकतंत्र को बढ़ावा देने के प्रयासों को लागू करने के लिए जिम्मेदार प्रमुख एजेंसी है. एजेंसी के लोकतंत्र, मानवाधिकार और शासन (डीआरजी) कार्यक्रम स्वतंत्र चुनावों, नागरिक समाज संगठनों, राजनीतिक दलों और स्वतंत्र मीडिया का समर्थन करते हैं. आम तौर पर अनुदान, अनुबंधों और प्राप्तकर्ता देशों में गैर सरकारी संगठनों और स्थानीय संगठनों के साथ प्रत्यक्ष भागीदारी के माध्यम से धन वितरित किया जाता है.

क्या है बांग्लादेश विवादः यहां बता दें कि जनवरी 2024 में बांग्लादेश संसदीय चुनावों से पहले, पश्चिमी देशों के कथित हस्तक्षेप साथ ही घरेलू हिंसा से जूझ रहा था. चुनावों से पहले, तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अवामी लीग की ओर से लगातार विपक्षी दलों की मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान अंतरिम सरकार स्थापित की जाए. हालांकि अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य पश्चिमी शक्तियों ने उन्हें विपक्ष की मांग स्वीकार करने के लिए राजी किया, लेकिन उन्होंने इसे आंतरिक मामले में बाहरी हस्तक्षेप के रूप में खारिज कर दिया. भारत ने हमेशा तटस्थ रुख बनाए रखा है.

शेख हसीना सत्ता से बाहरः अंत में, मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) सहित सभी विपक्षी दलों ने जो अतीत में सत्ता में रहने के दौरान अपनी भारत विरोधी नीतियों के लिए जानी जाती थी, चुनावों का बहिष्कार किया. परिणामस्वरूप, जब हसीना की अवामी लीग सत्ता में वापस आई तो उसने वस्तुतः विपक्ष-रहित सरकार चलाना शुरू कर दिया. किसी भी लोकतंत्र के ठीक से काम करने के लिए एक मजबूत विपक्ष की आवश्यकता होती है. इससे व्यवस्था में हलचल मच गई. नतीजतन, नौकरी कोटा व्यवस्था के खिलाफ छात्रों के आंदोलन के रूप में शुरू हुआ आंदोलन अंततः हसीना की सरकार के खिलाफ इस्लामी ताकतों के साथ एक पूर्ण विद्रोह में बदल गया, जिसके परिणामस्वरूप अगस्त 2024 में उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा.

हसीना के निष्कासन के एक महीने बाद, ढाका विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर अयनुल इस्लाम ने अपने लिंक्डइन हैंडल पर पोस्ट किया "ढाका विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय में एप्लाइड डेमोक्रेसी लैब (ADL) की ओर से आपका स्वागत है. जिसे यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) और इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES), वाशिंगटन डी.सी. के सहयोग से स्थापित किया गया है! हमने आज माननीय कुलपति, प्रोफेसर डॉ. नियाज अहमद खान, डॉ. रीड जे. एशलीमैन, मिशन निदेशक, USAID बांग्लादेश, छात्रों और विभिन्न विभागों के संकाय सदस्यों की उपस्थिति में लैब का उद्घाटन समारोह किया."

बांग्लादेश का खंडन नहींः इसी संदर्भ में यूएसएआईडी द्वारा आवंटित 21 मिलियन डॉलर के अंतिम प्राप्तकर्ता के विवाद पर विचार किया जाना चाहिए. इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक बांग्लादेश सरकार की ओर से इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की गई है. बांग्लादेशी मीडिया में भी इस बारे में कोई रिपोर्ट नहीं आई है. ढाका में ईटीवी भारत से बात करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि 21 मिलियन डॉलर के मामले में जल्द ही किसी मीडिया रिपोर्ट या सरकार की टिप्पणी की उम्मीद नहीं की जा सकती है.

इसे भी पढ़ेंः 'उनके पास बहुत अधिक पैसा है': ट्रंप ने भारत में वोटर टर्न आउट के लिए 21 मिलियन डॉलर के फंड पर उठाए सवाल

नई दिल्ली: भारत के चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए कथित तौर पर अमेरिकी एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) की 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग की गयी थी. अमेरिका के इस दावे के बाद भारत में राजनीतिक बहस शुरू हो गई है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के लिए यूएसएआईडी के वित्तपोषण के बारे में सरकार से श्वेत पत्र की मांग की है, जबकि भाजपा ने दावा किया है कि अमेरिकी प्रशासन की घोषणा से यह पुष्टि होती है कि भारत की चुनावी प्रक्रिया में विदेशी प्रभाव था.

विदेश मंत्रालय ने क्या कहाः हालांकि, ताज़ा मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि यह धनराशि वास्तव में 2022 में बांग्लादेश के लिए आवंटित की गई थी. जिससे गलत सूचना और विदेशी सहायता रिकॉर्ड की सटीकता पर सवाल उठ रहे हैं. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को यहां नियमित मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा कि धनराशि के वास्तविक प्राप्तकर्ता का निर्धारण करना अभी जल्दबाजी होगी. एजेंसियां इस मामले की जांच कर रही हैं. विदेश मंत्रालय के इस बयान के बाद आगे और अटकलें और राजनीतिक बहस की गुंजाइश बनी रहेगी.

"हमने यूएसएआईडी की कुछ गतिविधियों और वित्तपोषण के संबंध में अमेरिकी प्रशासन द्वारा दी गई जानकारी देखी है. ये स्पष्ट रूप से बहुत परेशान करने वाले हैं. इससे भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप की चिंता पैदा हुई है. संबंधित विभाग और एजेंसियां इस मामले की जांच कर रही हैं. इस मामले पर सार्वजनिक टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी."- रणधीर जायसवाल, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता

randhir jaiswal
रणधीर जायसवाल. (ANI)

क्या है विवाद का कारणः 16 फरवरी को डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के नवगठित सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) ने कहा कि उसने भारत के चुनावों में मतदान को बढ़ावा देने के लिए $21 मिलियन के वित्तपोषण को समाप्त कर दिया है. अपने एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में, DOGE ने कहा कि वह "भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर के आवंटन को रद्द कर रहा है. DOGE, आधिकारिक तौर पर US DOGE सेवा अस्थायी संगठन, टेक अरबपति एलन मस्क के नेतृत्व वाले दूसरे ट्रम्प प्रशासन की एक पहल है. DOGE अमेरिकी सरकार का कैबिनेट स्तर का विभाग नहीं है, बल्कि यूनाइटेड स्टेट्स DOGE सेवा के तहत एक अस्थायी अनुबंधित सरकारी संगठन है.

क्या कहा था ट्रम्प नेः ट्रम्प ने बुधवार को मियामी में एक भाषण के दौरान कहा था, "हमें भारत में मतदान के लिए 21 मिलियन डॉलर क्यों खर्च करने की ज़रूरत है? वाह, 21 मिलियन डॉलर! मुझे लगता है कि वे किसी और को निर्वाचित कराने की कोशिश कर रहे थे." हालांकि, ताजा रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश को ढाका विश्वविद्यालय में लोकतंत्र प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए 21 मिलियन डॉलर आवंटित किए गए थे. वास्तव में, यूएसएआईडी में राजनीतिक प्रक्रिया सलाहकार लुबेन मासूम ने पिछले साल दिसंबर में अपने लिंक्डइन हैंडल पर चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया सुदृढ़ीकरण नागोरिक परियोजना के लिए कंसोर्टियम की स्थापना के लिए 21 मिलियन डॉलर के यूएसएआईडी अनुदान के बारे में पोस्ट किया था.

मासूम ने लिखा था, "मुझे 2 दिसंबर को वाशिंगटन डीसी में उनके मुख्यालय में नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट (NDI) के सहकर्मियों से मिलने का सौभाग्य मिला. हालांकि NDI की बांग्लादेश में कोई मौजूदगी नहीं है, लेकिन यह USAID द्वारा वित्तपोषित 21 मिलियन डालर CEPPS/Nagorik परियोजना के तहत IRI और IFES के साथ तीन प्रमुख भागीदारों में से एक है. लोकतंत्र और शासन को आगे बढ़ाने में अपने काम के लिए NDI को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है. पिछले साल, CEPPS/Nagorik परियोजना के तहत बांग्लादेश में चुनाव-पूर्व मूल्यांकन मिशन (PEAM) और तकनीकी मूल्यांकन मिशन (TAM) में भाग लिया, जिसका प्रबंधन मैं करता हूं"

लोकतंत्र मजबूत करने का इतिहासः अमेरिका का विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों, एजेंसियों और वित्तीय सहायता तंत्रों के माध्यम से दुनिया भर में लोकतंत्र प्रक्रियाओं को प्रभावित करने का एक लंबा इतिहास रहा है. लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए आवंटित धन आमतौर पर राजनीतिक संस्थाओं, नागरिक समाज, मानवाधिकारों और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को मजबूत करने की दिशा में निर्देशित किया जाता है. सीईपीपीएस इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स, इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट और नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट का संयोजन है.

क्या है यूएसएआईडीः दुनिया में यह लोकतंत्र को बढ़ावा देने के प्रयासों को लागू करने के लिए जिम्मेदार प्रमुख एजेंसी है. एजेंसी के लोकतंत्र, मानवाधिकार और शासन (डीआरजी) कार्यक्रम स्वतंत्र चुनावों, नागरिक समाज संगठनों, राजनीतिक दलों और स्वतंत्र मीडिया का समर्थन करते हैं. आम तौर पर अनुदान, अनुबंधों और प्राप्तकर्ता देशों में गैर सरकारी संगठनों और स्थानीय संगठनों के साथ प्रत्यक्ष भागीदारी के माध्यम से धन वितरित किया जाता है.

क्या है बांग्लादेश विवादः यहां बता दें कि जनवरी 2024 में बांग्लादेश संसदीय चुनावों से पहले, पश्चिमी देशों के कथित हस्तक्षेप साथ ही घरेलू हिंसा से जूझ रहा था. चुनावों से पहले, तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अवामी लीग की ओर से लगातार विपक्षी दलों की मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान अंतरिम सरकार स्थापित की जाए. हालांकि अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य पश्चिमी शक्तियों ने उन्हें विपक्ष की मांग स्वीकार करने के लिए राजी किया, लेकिन उन्होंने इसे आंतरिक मामले में बाहरी हस्तक्षेप के रूप में खारिज कर दिया. भारत ने हमेशा तटस्थ रुख बनाए रखा है.

शेख हसीना सत्ता से बाहरः अंत में, मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) सहित सभी विपक्षी दलों ने जो अतीत में सत्ता में रहने के दौरान अपनी भारत विरोधी नीतियों के लिए जानी जाती थी, चुनावों का बहिष्कार किया. परिणामस्वरूप, जब हसीना की अवामी लीग सत्ता में वापस आई तो उसने वस्तुतः विपक्ष-रहित सरकार चलाना शुरू कर दिया. किसी भी लोकतंत्र के ठीक से काम करने के लिए एक मजबूत विपक्ष की आवश्यकता होती है. इससे व्यवस्था में हलचल मच गई. नतीजतन, नौकरी कोटा व्यवस्था के खिलाफ छात्रों के आंदोलन के रूप में शुरू हुआ आंदोलन अंततः हसीना की सरकार के खिलाफ इस्लामी ताकतों के साथ एक पूर्ण विद्रोह में बदल गया, जिसके परिणामस्वरूप अगस्त 2024 में उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा.

हसीना के निष्कासन के एक महीने बाद, ढाका विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर अयनुल इस्लाम ने अपने लिंक्डइन हैंडल पर पोस्ट किया "ढाका विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय में एप्लाइड डेमोक्रेसी लैब (ADL) की ओर से आपका स्वागत है. जिसे यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) और इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES), वाशिंगटन डी.सी. के सहयोग से स्थापित किया गया है! हमने आज माननीय कुलपति, प्रोफेसर डॉ. नियाज अहमद खान, डॉ. रीड जे. एशलीमैन, मिशन निदेशक, USAID बांग्लादेश, छात्रों और विभिन्न विभागों के संकाय सदस्यों की उपस्थिति में लैब का उद्घाटन समारोह किया."

बांग्लादेश का खंडन नहींः इसी संदर्भ में यूएसएआईडी द्वारा आवंटित 21 मिलियन डॉलर के अंतिम प्राप्तकर्ता के विवाद पर विचार किया जाना चाहिए. इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक बांग्लादेश सरकार की ओर से इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की गई है. बांग्लादेशी मीडिया में भी इस बारे में कोई रिपोर्ट नहीं आई है. ढाका में ईटीवी भारत से बात करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि 21 मिलियन डॉलर के मामले में जल्द ही किसी मीडिया रिपोर्ट या सरकार की टिप्पणी की उम्मीद नहीं की जा सकती है.

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Last Updated : Feb 22, 2025, 4:23 PM IST
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