वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में सत्ता में आई भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का पहला बजट पेश किया. आम चुनावों के बाद पहला बजट होने के कारण अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से अलग-अलग उम्मीदें थीं. जैसा कि अपेक्षित था, बजट ने जमीनी स्तर पर बदलती राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित किया. आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए वित्त मंत्री ने कई घोषणायें की. ये रियायतें सत्तारूढ़ सरकार की ओर से इन राज्यों को दी जाने वाली रणनीतिक प्राथमिकता को उजागर करती हैं.
वित्त मंत्री का दावा है कि मौजूदा सरकार चार जातियों यानी गरीब, महिला, युवा और किसान की सेवा करना चाहती है, जिसमें रोजगार, कौशल, एमएसएमई और मध्यम वर्ग पर जोर दिया गया है. इससे पता चलता है कि सरकार उन वर्गों तक पहुंचने की मंशा रखती है, जो कुछ समय से नाखुश लग रहे थे और जिन्होंने हाल ही में अपना जनादेश दिया है. राजनीतिक घटनाक्रमों के अलावा, यह बजट ऐसे समय में आया है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था भू-राजनीतिक चुनौतियों, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति सख्त होने और राष्ट्रों में असमान विकास का सामना कर रही है.
भारत इन चुनौतियों के बीच एक चमकता सितारा बना हुआ है. इसने कोविड-19 के बाद की अपनी विकास गति को जारी रखा. वैश्विक और घरेलू चुनौतियों के बावजूद वित्त वर्ष 2024 में 8.2 प्रतिशत की वास्तविक जीडीपी विकास दर दर्ज की. इस पृष्ठभूमि में, हमें वित्त वर्ष 2024-25 के लिए बजट के आवंटन को समझने की जरूरत है.
रोजगार सृजन के माध्यम से उपभोग को बढ़ावा देना: वैश्विक उथल-पुथल के बावजूद भारत ने एक अच्छी वृद्धि दर दर्ज की है, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के आंकड़ों से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं. रिपोर्ट बताती है कि चालू वित्त वर्ष में देश की वृद्धि दर मार्च 2024 में दर्ज 8.2 प्रतिशत से घटकर 6.5 से 7 प्रतिशत रहने की उम्मीद है.
यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और एशियाई विकास बैंक (ADB) ने भी 2024-25 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है. संभावित रूप से कम वृद्धि की इस चुनौती का समाधान उपभोग व्यय, सरकारी व्यय या निवेश व्यय को बढ़ावा देने या निर्यात को बढ़ावा देने की रणनीतियों को अपनाकर किया जा सकता है. घरेलू व्यापक आर्थिक स्थितियों और भू-राजनीतिक घटनाक्रमों को देखते हुए, उपरोक्त कुछ रणनीतियों के संयोजन का भी प्रयास किया जा सकता है.
बजट का उद्देश्य कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था में अधिक रोजगार सृजित करके उपभोग को बढ़ावा देना है. ऐसा इसलिए है क्योंकि रोजगार के उच्च स्तर लोगों के हाथों में अधिक आय देते हैं. बदले में वे अधिक वस्तुओं और सेवाओं की मांग करते हैं. यह मांग खपत को बढ़ाती है और इस प्रकार अधिक उत्पादन को बढ़ावा देती है. अधिक उत्पादन करने के लिए, उच्च रोजगार स्तरों की आवश्यकता होती है.
अंततः उच्च जीडीपी और तेज आर्थिक विकास के रूप में परिणत होता है. इसी अपेक्षा के साथ केंद्र सरकार ने रोजगार सृजन योजनाओं के लिए अगले पांच वर्षों में 2 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. युवाओं को रोजगार योग्य बनाने के लिए कौशल पर भी जोर दिया गया है. इस पहल के एक हिस्से के रूप में, अगले पांच वर्षों में 20 लाख युवाओं को कौशल प्रदान करने के लिए एक नई केंद्र प्रायोजित योजना की घोषणा की गई है और मॉडल कौशल ऋण योजना को संशोधित करके 7.5 लाख रुपये तक के ऋण की सुविधा दी जाएगी.