हैदराबाद:केंद्रीय बजट 2024 में आंध्र प्रदेश को कई महत्वपूर्ण आवंटन मिले हैं. केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती के विकास के लिए 15,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. बजट में पोलावरम परियोजना को पूरा करने पर भी जोर दिया गया है, जो राज्य की सिंचाई और पेयजल आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण है. विशाखापट्टनम-चेन्नई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर और हैदराबाद-बेंगलुरु इंडस्ट्रियल कॉरिडोर पर बुनियादी ढांचे के विकास के लिए धन आवंटित किया गया है. आंध्र प्रदेश में पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए भी विशेष अनुदान की घोषणा की गई.
इसके अलावा, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम-2014 के तहत आर्थिक विकास के लिए पूंजी निवेश के लिए अतिरिक्त धन के साथ-साथ आवश्यक बुनियादी ढांचे के लिए फंड का वादा किया गया है. लोकसभा में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की संरचना को देखते हुए यह आवंटन चौंकाने वाला नहीं है.
लोकसभा में एनडीए में शामिल दलों की स्थिति (ETV Bharat GFX) आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी (TDP) भाजपा नीत एनडीए की प्रमुख सहयोगी है. केंद्र में एनडीए सरकार की स्थिरता और लोकसभा में बहुमत बनाए रखने के लिए टीडीपी का समर्थन जरूरी है. एनडीए की एक अन्य महत्वपूर्ण सहयोगी पार्टी जनता दल-यूनाइटेड (जेडीयू) की बिहार में गठबंधन सरकार है, इसलिए बिहार को भी पर्याप्त आवंटन मिला है. आंध्र प्रदेश के लिए बड़ा आवंटन अहम है. ये बजट आवंटन आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 के प्रावधानों से निकटता से जुड़े हुए हैं.
तेलंगाना और समृद्ध राजधानी हैदराबाद के अलग होने के बाद आंध्र प्रदेश की खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद पिछले एक दशक में केंद्र से कोई महत्वपूर्ण समर्थन नहीं मिला. हैदराबाद पहले संयुक्त आंध्र प्रदेश को 58 प्रतिशत राजस्व का योगदान देता था. हालांकि, मौजूदा बजट आवंटन पिछले वर्षों की तुलना में उम्मीद से बहुत ज्यादा है. यह फंडिंग पैटर्न इस हकीकत को दर्शाता है कि लोकसभा में संख्या बल अंतत: भारत में किसी भी संघीय इकाई का भाग्य तय करती है. यह सभी राजनीतिक दलों, विशेष रूप से दक्षिण भारत के क्षेत्रीय दलों के लिए 2026 की परिसीमन प्रक्रिया के मंडराते खतरे और संसदीय प्रतिनिधित्व पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में एक गंभीर चेतावनी को भी उजागर करता है.
दक्षिणी राज्यों पर परिसीमन का प्रभाव
वर्ष 2026 में होने वाला आगामी परिसीमन दक्षिणी राज्यों के लिए चुनौती पैदा करेगा. इन राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावी उपाय लागू किए हैं, लेकिन विडंबना यह है कि अब दक्षिणी राज्यों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में नुकसान उठाना पड़ सकता है. वर्तमान जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर संसदीय सीटों को फिर से निर्धारित करने के लिए परिसीमन प्रक्रिया तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों के लिए सीट आवंटन में संभावित कमी ला सकती है, क्योंकि इन राज्यों की जनसंख्या के आंकड़े उत्तरी राज्यों के मुकाबले तुलनात्मक रूप से कम हैं.
लोकसभा में दक्षिणी राज्यों की वर्तमान संख्या और अनुमानित संख्या (ETV Bharat GFX) जैसे- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के पास वर्तमान में 42 सीटें (कुल सीटों का 7.73 प्रतिशत) हैं, लेकिन परिसीमन के बाद 543 सीटों वाली लोकसभा में 34 सीटें (6.26%) तक मिलने का अनुमान है, और अगर लोकसभा में कुल सीटें 848 हो जाती हैं, तो संभावित रूप से 54 सीटें (6.37 प्रतिशत) हो सकती हैं.
इसी तरह, 543 सीटों वाली लोकसभा में कर्नाटक का प्रतिनिधित्व 28 सीटों (5.15 प्रतिशत) से घटकर 26 सीटों (4.79 प्रतिशत) और 848 सीटें होने की स्थिति में संभावित रूप से 41 सीटों (4.83 प्रतिशत) मिलने की उम्मीद है. 543 सीटों वाली लोकसभा में केरल का प्रतिनिधित्व 20 सीटों (3.68 प्रतिशत) से घटकर 12 सीटों (2.21 प्रतिशत) पर आ सकता है. वहीं, लोकसभा की कुल 848 सीटें होने पर संभावित रूप से सिर्फ 20 सीटें (2.36 प्रतिशत) मिलने की संभावना है.
तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व 543 सीटों वाली लोकसभा में 39 सीटों (7.18 प्रतिशत) से घटकर 31 सीटों (5.71 प्रतिशत) पर आ सकता है, और 848 सीटों वाली लोकसभा में तमिलनाडु को संभावित रूप से 49 सीटें (5.78 प्रतिशत) मिल सकती हैं.
लोकसभा में प्रमुख राज्यों और दक्षिणी राज्यों की वर्तमान संख्या और अनुमानित संख्या (ETV Bharat GFX) इसके उलट, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अधिक जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों को ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद है. जैसे, 543 सीटों वाली लोकसभा में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व 80 सीटों (14.73 प्रतिशत) से बढ़कर 91 सीटों (16.76 प्रतिशत) पर पहुंच सकता है, और 848 सीटों वाली लोकसभा की स्थिति में यूपी को संभावित रूप से 143 सीटें (16.86 प्रतिशत) मिल सकती हैं. इसी तरह बिहार का प्रतिनिधित्व 543 सीटों वाली लोकसभा में 40 सीटों (7.36 प्रतिशत) से बढ़कर 50 सीटों (9.21 प्रतिशत) पर पहुंच सकता है, और 848 सीटों वाली लोकसभा होने पर राज्य को संभावित रूप से 79 सीटें (9.31 प्रतिशत) मिल सकती हैं. यह बदलाव परिसीमन प्रक्रिया के असंगत प्रभाव को उजागर करता है, जो संभावित रूप से दक्षिणी राज्यों को राजनीतिक हाशिए पर ले जाएगा, जिन्होंने पारंपरिक रूप से शासन और विकास में उच्च दक्षता का प्रदर्शन किया है.
दक्षिणी राज्यों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व में कमी के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. इससे लोकसभा में उनका प्रभाव कम हो सकता है, जिससे अनुकूल नीतियों पर बातचीत करने और केंद्र सरकार से संसाधनों का पर्याप्त आवंटन प्राप्त करने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है. इससे उत्तर-दक्षिण विभाजन बढ़ सकता है, जिससे दक्षिण भारत के लोगों के बीच क्षेत्रीय तनाव और वंचित होने की भावनाएं बढ़ सकती हैं. अधिक आबादी वाले उत्तरी राज्यों को ज्यादा राजनीतिक शक्ति मिलने से केंद्रीय संसाधनों का विषम आवंटन भी हो सकता है, जिससे उच्च जनसंख्या वृद्धि वाले क्षेत्रों को लाभ होगा, लेकिन शासन के परिणाम खराब होंगे. यह असंतुलन दक्षिणी राज्यों की विकास पहलों और आर्थिक प्रगति को कमजोर कर सकता है, जिससे संभावित रूप से पूरे देश में विकास संबंधी असमानताएं बढ़ सकती हैं.
रणनीतिक समाधान
परिसीमन के इन प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए दक्षिणी राज्यों को बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. सबसे पहले, दक्षिणी राज्यों के बीच एक राजनीतिक गठबंधन बनाने से केंद्र सरकार के साथ बातचीत में एक समान रुख पेश करने में मदद मिल सकती है. यह गठबंधन जनसंख्या के आंकड़ों से परे मानदंडों, जैसे आर्थिक योगदान, शासन की गुणवत्ता और विकास के पहलुओं के आधार पर प्रतिनिधित्व को बनाए रखने या बढ़ाने के लिए पैरवी कर सकता है. अधिक न्यायसंगत परिसीमन दृष्टिकोण पर व्यापक सहमति बनाने के लिए अन्य क्षेत्रों के राजनीतिक सहयोगियों और हितधारकों के साथ जुड़ना भी संभावित असंतुलन को दूर करने में सहायक हो सकता है. यह दृष्टिकोण 16वें वित्त आयोग के तहत विकेंद्रीकरण सूत्र के साथ दक्षिणी राज्यों की समस्याओं को भी संबोधित करता है और जनसंख्या से परे सूत्र की मांग राजनीतिक (परिसीमन आयोग) और आर्थिक (16वें वित्त आयोग) दोनों स्तर पर निपट सकती है.
दूसरा, मीडिया अभियानों और सार्वजनिक बयानों के जरिये परिसीमन के निहितार्थों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने से जमीनी स्तर पर समर्थन मिल सकता है, जिससे राजनीतिक नेताओं पर उन नीतियों के खिलाफ दृढ़ रुख अपनाने का दबाव बन सकता है, जो दक्षिणी राज्यों को हाशिए पर डाल सकती हैं. दक्षिणी दृष्टिकोण को स्पष्ट करने और राष्ट्रीय स्तर पर जनमत को प्रभावित करने के लिए नागरिक समाज संगठनों और बुद्धिजीवियों को जुटाना जरूरी है. इसके अतिरिक्त, न्यायपालिका के जरिये परिसीमन प्रक्रिया में कथित अन्याय को चुनौती देने के लिए कानूनी रास्ते तलाशना संभावित असंतुलन को रोका जा सकता है.
कुल मिलाकर देखें तो 2026 में परिसीमन अभ्यास दक्षिणी राज्यों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करता है. हालांकि, रणनीतिक राजनीतिक, कानूनी और आर्थिक उपाय इन प्रभावों को कम करने में मदद कर सकते हैं. प्रभावी शासन और जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों के लिए राज्यों को पुरस्कृत करने वाले संवैधानिक संशोधनों का प्रस्ताव यह सुनिश्चित कर सकता है कि दक्षिणी राज्यों को उनकी सफलता के लिए दंडित नहीं किया जाए. ऐसे बदलाव सीट आवंटन में जनसंख्या से परे कारकों पर विचार कर सकते हैं, जिससे निष्पक्ष और संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके.
-(लेखक देवेंद्र पूला हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर इकोनॉमिक एंड सोशल स्टडीज में रिसर्च फेलो हैं.)