नई दिल्ली : यह सबको पता है कि हिंद महासागर क्षेत्र में अगर कोई भी हलचल होती है, तो उसका सीधा असर भारत की सुरक्षा पर पड़ता है. इस लिहाज से देखें तो दो दिन पहले श्रीलंका में कुछ ऐसा हुआ, जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी. कुछ महीने पहले जिस तरह से भारत ने श्रीलंका के डॉक में चीनी जासूसी जहाज की उपस्थिति पर सवाल उठाए थे, सोमवार को ठीक इसके उलट स्थिति देखने को मिली. भारत और चीन दोनों के नौसैनिक युद्धपोत एक साथ स्पॉट किए गए, वह भी श्रीलंका के डॉक पर. चीन के तीन-तीन युद्धपोत मौजूद थे. भारतीय युद्धपोत भी बिलकुल सामने खड़ा था.
आईएनएस मुंबई की श्रीलंकाई बंदरगाह की यह पहली यात्रा है, लेकिन 2024 में भारतीय नौसेना के जहाज की श्रीलंका की आठवीं यात्रा है. आईएनएस मुंबई ने श्रीलंका के डोर्नियर विमान के लिए आवश्यक पुर्जे पहुंचाए हैं. जिस तरह से भारत और चीन के बीच एलएसी पर तनाव बना हुआ है, उस परिप्रेक्ष्य में इसे देखें तो यह महत्वपूर्ण घटना है.
हालांकि, आईएनएस मुंबई 29 अगस्त को श्रीलंकाई नौसेना के जहाज के साथ 'पैसेज एक्सरसाइज' में भी हिस्सा लेगा. यहां पर श्रीलंका की नौसेना के कर्मियों के साथ एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. आईएनएस मुंबई 2001 से अपनी सेवा दे रहा है. यह पूरी तरह से स्वदेशी युद्धपोत है.
दोनों देशों के इन युद्धपोतों की क्या है खासियत
- आईएनएस मुंबई - 163 मीटर लंबा, चालक दल की संख्या - 410
- हेफेई - 144.5 मीटर लंबा, चालक दल की संख्या - 267
- वुजहिशान - 210 मीटर लंबा, चालक दल की संख्या - 872
- किलियानशान - 210 मीटर लंबा, चालक दल की संख्या - 334
यह घटना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि श्रीलंका में अगले महीने राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं. इसमें बहुत अधिक समय नहीं रह गया है. ऐसे में श्रीलंका का अगला राष्ट्रपति कौन बनता है, भारत के लिए बहुत मायने रखता है. यह भारत का वह पड़ोसी देश है, जहां पर हो रहे किसी भी हलचल का सीधा असर भारत की सुरक्षा पर पड़ता है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह बात किसी से छिपी नहीं है कि श्रीलंका में जब महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति थे, तो उन्होंने चीन के साथ कई ऐसे समझौते किए, जिनकी वजह से भारत असहज था. हालांकि, श्रीलंका की जनता ने महिंदा राजपक्षे को जबरन सत्ता से बाहर कर दिया. उन्हें श्रीलंका छोड़ना पड़ा. राष्ट्रपति भवन पर युवकों ने कब्जा कर लिया था. तब संकट की इस घड़ी में श्रीलंका की मदद चीन ने नहीं की, बल्कि भारत ने की थी. भारत ने श्रीलंका को आर्थिक सहायता प्रदान की.
राजपक्षे के चले जाने के बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने आर्थिक स्थायित्व लाने को लेकर कई कदम उठाए हैं. पर, अब एक बार फिर से महिंदा राजपक्षे श्रीलंका की राजनीति में लौटना चाहते हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वह अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. अगर उनके समर्थक चुनाव जीते, तो बहुत संभव है वे एक बार फिर से चीन के हितों को आगे बढ़ाएंगे. चीन हर हाल में चाहता है कि उसका प्रभुत्व श्रीलंका पर बना रहे और वहां नेता उनके हित के लिए काम करते रहें. इसलिए हर गतिविधि पर भारत की नजर बनी है.
इन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंद महासागर के इस क्षेत्र में चीनी नौसैनिक युद्धपोतों की मौजूदगी लंबे समय तक बनी रहेगी. क्योंकि यह एंटी पायरेसी एस्कॉर्ट फोर्सेज का हिस्सा है, लिहाजा इस क्षेत्र में वे घूमते रहेंगे. सुरक्षा मामलों के जानकारों का कहना है कि चीनी नौसैनिक जितना अधिक समय हिंद महासागर में इधर-उधर घूमते रहेंगे, भारत पर दबाव बना रहेगा.
क्या है स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स -चीन हिंद महासागर के क्षेत्र में स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की रणनीति अपना रहा है. इसके जरिए वह भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश कर रहा है. वह भारत के चारों ओर अलग-अलग देशों में बंदरगाहों और बुनियादी ढांचों का निर्माण कर रहा है. चीन चाहता है कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ उलझा रहे और दूसरी ओर चीन हिंद महासागर के साथ-साथ साउथ चीन सागर में अपना दबदबा कायम रख सके.
चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा को 99 साल की लीज़ पर ले रखा है. उसने पहले से हॉर्न ऑफ अफ्रीका में जिबूती और पाकिस्तान के ग्वादर में बंदरगाह बना लिया.
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