नई दिल्ली: पाकिस्तान की नई सरकार देश की बीमारू अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने के लिए साहसिक कदम उठा रही है. पाकिस्तान के इस कदम को बड़े घटनाक्रम के रूप में देखा जा सकता है. सरकार का उद्देश्य इन परियोजनाओं को धार देना है, इनमें अक्षय ऊर्जा के लिए संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देना, कृषि साझेदारी बनाना और चीनी कंपनियों को पाकिस्तान में लाने के लिए प्रोत्साहित करना शामिल है.
चीन के शीर्ष नेतृत्व के साथ हालिया चर्चा के बाद पाकिस्तान के योजना, विकास और विशेष पहल के संघीय मंत्री अहसान इकबाल ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के निर्माण कार्य को फिर से शुरू करने और इसके दूसरे चरण को आगे बढ़ाने की इच्छा जताई. मार्च 2024 में नई सरकार के गठन के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पिछले दो वर्षों से चीन के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. गौरतलब है कि पूर्व पीएम नवाज शरीफ ने 2013 में बीआरआई पर हस्ताक्षर किए थे.
ईटीवी भारत के साथ इंटरव्यू में पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत ने पाकिस्तान और चीन के रिश्तों पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान सीपीईसी के तहत अपनी विकास परियोजनाओं और सैन्य सहायता के लिए चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है. पूर्व राजदूत ने कहा, दोनों देश एक-दूसरे को करीबी सहयोगी मानते हैं, लेकिन चीन की भी अपनी सीमाएं हैं. इसके बावजूद पश्चिमी देश, मध्य-पूर्व के देश और चीन ये नहीं चाहते हैं कि पाकिस्तान दिवालिया हो जाए, जिससे पाकिस्तान को कुछ लाभ मिलता है.
उन्होंने कहा कि चीन के लिए पाकिस्तान भारत के खिलाफ एक रणनीतिक हथियार के रूप में कार्य करता है. हालांकि, भारत ने संप्रभुता संबंधी चिंताओं, ग्वादर, सीपीईसी के मुद्दों और बलूचिस्तान में समस्याओं के कारण बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को खारिज कर दिया है. आईएमएफ की शर्तों के कारण पाकिस्तान को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं चीन पाकिस्तान की सहायता करता है, लेकिन उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.
भारत के खिलाफ चीन-पाकिस्तान के प्रयास विफल
भारत के पूर्व राजनयिक त्रिगुणायत ने इस बात पर जोर दिया कि भारत पिछले कुछ समय से चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ से निपट रहा है. चीन और पाकिस्तान दोनों ने अफगानिस्तान में भारत को अलग-थलग करने और ईरान में मुश्किलें पैदा करने की कोशिश की है, लेकिन उनके ये प्रयास विफल रहे हैं. उन्होंने कहा कि दोनों देश अपने हितों को प्राथमिकता देना जारी रखेंगे. उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान को अपने देश में आतंकवाद को खत्म करना चाहिए, क्योंकि अगर पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों को नियंत्रित करने में विफल रहता है तो चीन भी उसकी मदद करने से पीछे हट सकता है. त्रिगुणायत ने सुझाव दिया कि अगर चीन आतंकवाद से निपटने में पाकिस्तान की मदद कर सकता है, तो इससे पूरे क्षेत्र को फायदा होगा.
जून में चीन की यात्रा कर सकते हैं पीएम शरीफ
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ 4-7 जून तक बीजिंग की यात्रा कर सकते हैं. चीन यात्रा के दौरान शरीफ का चीनी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ बैठक करने का कार्यक्रम है. इस दौरान वह सीपीईसी के दूसरे चरण के विकास और अन्य मुद्दों से संबंधित मामलों पर चर्चा करेंगे.
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी), बीआरआई का महत्वपूर्ण घटक है, जिसमें पाकिस्तान के दक्षिणी शहर ग्वादर में बंदरगाह और बिजली संयंत्र का निर्माण शामिल हैं. सूत्रों के मुताबिक, कराची को मुल्तान से जोड़ने वाली रेलवे अपग्रेड परियोजना भी दो चरणों में आगे बढ़ रही है, जिस का बजट 10 अरब डॉलर से घटाकर 6.8 अरब डॉलर कर दिया गया है. इसके अलावा ग्वादर में जल-आपूर्ति परियोजना और ईरान से बिजली ट्रांसमिशन लाइन परियोजना पूरी हो चुकी है, जो बीआरआई की प्रमुख परियोजनाएं हैं.
महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजना सीपीईसी का उद्देश्य राजमार्गों, रेलवे और पाइपलाइनों के नेटवर्क के जरिये दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को चीन के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र शिनजियांग से जोड़ना है. यह चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा है. चीन बीआरआई के जरिये पूरे एशिया और उसके बाहर कनेक्टिविटी और व्यापार को बढ़ाना चाहता है.
सीपीईसी चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए रणनीतिक महत्व रखता है. इसके निर्माण के बाद चीन के लिए मध्य पूर्व और अफ्रीका से अपने ऊर्जा आयात के लिए छोटा और अधिक सुरक्षित मार्ग मिल जाएगा और दक्षिण चीन सागर के जरिये समुद्री मार्गों पर उसकी निर्भरता कम हो जाएगी. साथ ही सीपीईसी पाकिस्तान में आर्थिक अवसरों को खोलने के साथ चीन को अरब सागर तक पहुंच प्रदान करेगा, जिससे क्षेत्र में उसका भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ जाएगा.
सीपीईसी से पाकिस्तान में बुनियादी ढांचे का विकास, ऊर्जा परियोजनाओं और अन्य क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश बढ़ सकता है, जो संभावित रूप से आर्थिक वृद्धि और विकास को प्रोत्साहित कर सकता है. हालांकि, इस परियोजना को आलोचना और विवाद का भी सामना करना पड़ा है. पाकिस्तान में कुछ हितधारकों का तर्क है कि इससे चीन बहुत ज्यादा लाभ उठा सकता है, जिससे ऋण स्थिरता, पारदर्शिता, पर्यावरणीय प्रभाव और स्थानीय लोगों के विस्थापन की चिंताएं बढ़ सकती हैं. इन चुनौतियों के बावजूद सीपीईसी विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे निर्माण और विकास कार्यों के साथ आगे बढ़ रहा है. यह गलियारा दक्षिण एशिया और उससे आगे आर्थिक एकीकरण, सुरक्षा और शक्ति गतिशीलता के साथ चीन-पाकिस्तान संबंधों और क्षेत्रीय भूराजनीति का केंद्र बिंदु बना हुआ है.
सीपीईसी के पहले चरण में बिजली संयंत्रों सहित 25 अरब डॉलर की परियोजनाएं शामिल थीं, इससे पाकिस्तान की बिजली की कमी दूर हो गई. हाल ही में, पाकिस्तान की आर्थिक तंगी को कम करने के लिए लंबे समय से लंबित रेलवे अपग्रेड प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी गई, लेकिन इसका बजट 10 बिलियन डॉलर से घटाकर 6.8 बिलियन डॉलर कर दिया गया. इस परियोजना का पहला चरण कराची को मुल्तान से जोड़ेगा.
इस साल सीपीईसी की 10वीं वर्षगांठ के दौरान चीन ने पाकिस्तान की बीमारू अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और विकास, आजीविका, नवाचार, हरित ऊर्जा और कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए पांच गलियारों की घोषणा की. सीपीईसी के अगले चरण में, पाकिस्तान का लक्ष्य चीनी कंपनियों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना और बढ़ती श्रम लागत और भूराजनीतिक तनाव के कारण देश से जाने वाली कंपनियों को आकर्षित करना है.
चीन-पाक संबंध का भारत पर प्रभाव
चीन और पाकिस्तान अपने संबंधों को 'सदाबहार दोस्ती' और 'रणनीतिक साझेदारी' का नाम देते हैं. दोनों देश क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत के उत्थान के संबंध में समान चिंताएं साझा करते हैं. दोनों ने रक्षा और सुरक्षा मामलों में करीबी सहयोग किया है. इस रणनीतिक गठजोड़ का भारत के सुरक्षा परिदृश्य पर प्रभाव पड़ता है, खासकर पश्चिमी सीमाओं पर. चीन और पाकिस्तान दोनों का भारत के साथ अनसुलझा सीमा विवाद है. सीपीईसी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है, इसलिए नई दिल्ली ने इसका विरोध किया है, क्योंकि भारत कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानता है. इसके अलावा कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख को चीन का समर्थन भारत-चीन संबंधों का जटिल बनाता है.
चीन पाकिस्तान को सैन्य हार्डवेयर का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, जिसमें विमान, मिसाइल और नौसैनिक जहाज शामिल हैं. दोनों देशों के बीच यह सैन्य सहयोग भारत के मुकाबले पाकिस्तान की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाता है और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में योगदान देता है. सीपीईसी जैसी परियोजनाओं से चीन और पाकिस्तान के बीच आर्थिक संबंध और मजबूत हुए हैं. साथ ही यह सहयोग पाकिस्तान के लिए आर्थिक विकास सुनिश्चित करता है. यह भारत के लिए अपने पड़ोस में चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में चिंता भी बढ़ाता है, क्योंकि चीन रणनीति के तहत भारत को आर्थिक रूप से घेर रहा है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के लिए चीन का समर्थन और पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे और ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश से क्षेत्रीय स्तर पर इस्लामाबाद की स्थिति मजबूत होती है. इसका पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने के भारत की कोशिशों पर प्रभाव पड़ता है, खासकर आतंकवाद के मुद्दे पर. चीन-पाकिस्तान संबंधों का भारत पर कई प्रकार से प्रभाव पड़ता है, जिससे भारत के सुरक्षा, कूटनीति और आर्थिक हित प्रभावित होते हैं. चीन और पाकिस्तान के बीच रणनीतिक तालमेल भारत की क्षेत्रीय आकांक्षाओं के लिए चुनौतियां खड़ी करता है. भारत को अपने हितों की रक्षा करते हुए दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक आगे बढ़ाने की आवश्यकता है.
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