नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में एक 28 वर्षीय महिला मरीज का सफल उपचार कर डॉक्टरों ने उपलब्धि दर्ज कराई है. महिला स्पाइनल ट्यूबरक्लोसिस और सात महीने से पैरालाइसिस से पीड़ित थी. यह अपने आप में चुनौतीपूर्ण और दुर्लभ मामला था. महिला गर्भवती थी और चार महीनों से पीठ दर्द की समस्या से परेशान थी. गर्भधारण के छठे महीने तक उनकी तकलीफ कम नहीं हुई. इस बीच उनके दोनों पैरों में कमजोरी भी महसूस होने लगी. अगले 20 दिनों में दोनों पैर पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो गए और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया. तब उन्हें इलाज के लिए फोर्टिस शालीमार बाग लाया गया. जहां उनकी एमआरआई जांच के बाद स्पाइनल ट्यूबरक्लोसिस की पुष्टि हुई. अगले कुछ महीने तक महिला को अस्पताल के डॉक्टरों की मल्टी-डिसीप्लीनरी टीम की देखरेख में रखा गया. जिसका नेतृत्व फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग में डायरेक्टर एवं एचओडी न्यूरोसर्जरी डॉ. सोनल गुप्ता ने किया. इलाज के बाद महिला मरीज न सिर्फ खुद पूरी तरह स्वस्थ हो गई बल्कि उन्होंने एक स्वस्थ शिशु को भी जन्म दिया.
अस्पताल में मरीज को लाए जाने पर उनका एमआरआई किया गया, जिससे उनकी रीढ़ में ट्यूबरक्लोसिस होने का पता चला. जिसके कारण स्पाइनल कॉर्ड में कम्प्रेशन था. इस दबाव को कम करने के लिए तत्काल सर्जरी की जरूरी थी जिससे, उनकी रीढ़ को स्थिर बनाने में मदद मिले. मरीज की प्रेगनेंसी के चलते यह सर्जरी काफी जटिल थी और डॉक्टरों ने उन्हें इस तरह से लिटाकर सर्जरी की जिससे उनके गर्भ पर कोई दबाव न पड़े. तब सर्जन्स ने एक अस्थायी वायर फिक्सेशन की मदद ली और एनेस्थीसिया भी सावधानीपूर्वक दिया गया, ताकि मां और शिशु को कोई नुकसान न पहुंचे. प्रसव के 15 दिन के बाद उनकी एमआरआई जांच से पता चला कि रीढ़ में सूजन है और रीढ़ के अस्थिर होकर कॉलेप्स करने की वजह से कम्प्रेशन भी है. इस समस्या को दूर करने के लिए एक और सर्जरी की गई.
सर्जरी के तीन माह बाद भी पैर में नहीं हुआ सुधार
सर्जरी के तीन माह बाद भी जब मरीज के पैर में कोई हरकत नहीं हुई तो एक और एमआरआई जांच की गई जिससे पता चला कि उनकी रीढ़ में सूजन है. इतनी मुसीबतों के बावजूद मरीज और उनके पति ने हिम्मत नहीं खोया और लगातार इलाज को लेकर आशावान बने रहे. उन्होंने नियमित फिजियोथेरेपी के साथ-साथ ट्यूबरक्लॉसिस का उपचार जारी रखा. ट्यूबरक्लोसिस का इलाज शुरू होने के 9 महीनों के बाद उन्होंने दोबारा चलना शुरू कर दिया है. 18 महीने तक लंबे इलाज के बाद उनकी चलने-फिरने की पूरी क्षमता लौट आई.
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