हैदराबाद :हम अपनी आंखों से इस रंग-बिरंगी दुनिया को देखते हैं. जिसमें लाल, हरे, नीले और ना जाने कितने रंग होते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी आंखे सभी रंगों को देखने में अक्षम होती है ! यानि वे प्रकृति में मौजूद सभी रंग नहीं बल्कि केवल कुछ ही रंग देख पाते हैं. ऐसा कलर ब्लाइंडनेस के कारण होता है. नेत्र विशेषज्ञ बताते हैं कि कलर ब्लाइंडनेस या रंग-अंधता का कोई निश्चित इलाज नहीं है, लेकिन जागरूकता और सही उपायों से इस समस्या के प्रबंधन में मदद मिल सकती है.
क्या होती है कलर ब्लाइंडनेस? नई दिल्ली कि नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि कलर ब्लाइंडनेस एक दृष्टि संबंधी समस्या है जिसमें व्यक्ति सामान्य तरीके से कुछ रंगों को देखने में असमर्थ होते हैं. इस समस्या में आमतौर पर लाल और हरे रंगों को पहचानने में समस्या होती है, लेकिन कुछ मामलों में नीले और पीले रंगों को भी पहचानने में कठिनाई हो सकती है. कलर ब्लाइंडनेस के लिए जिम्मेदार कारक की बात करें तो रेटिना, ऑप्टिक तंत्रिका या मस्तिष्क में चोट लगने या उनमें किसी रोग या समस्या के प्रभाव के कारण तो कई बार बढ़ती उम्र में ऐसा हो सकता है .
कलर ब्लाइंडनेस के लिए जिम्मेदार कारण : डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि कलर ब्लाइंडनेस के लिए आनुवंशिकता या नेत्र रोग सहित कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- नेत्र रोग: कुछ नेत्र रोग जैसे ग्लूकोमा, मैक्यूलर डिजनरेशन और कैटरैक्ट कलर ब्लाइंडनेस का कारण बन सकते हैं. इसके अलावा ऑप्टिक तंत्रिका को प्रभावित करने वाले कुछ प्रकार के मस्तिष्क ट्यूमर तथा कुछ अन्य अवस्थाओं में जिनमें ऑप्टिक तंत्रिका या मस्तिष्क को क्षति पहुंचती है या उन पर पर दबाव पड़ता है, यह समस्या हो सकती है.
- आनुवंशिकता: यह समस्या आमतौर पर जन्मजात होती है और परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती है. यदि माता-पिता में से किसी एक को कलर ब्लाइंडनेस है, तो उनके बच्चों में इसका खतरा बढ़ जाता है.
- दवाइयों का प्रभाव: कुछ दवाइयों का सेवन भी दृष्टि पर असर डाल सकता है, जिससे कलर ब्लाइंडनेस हो सकती है.
- बुढ़ापा: उम्र बढ़ने के साथ-साथ दृष्टि की क्षमता भी कम हो जाती है, जिससे रंग पहचानने में कठिनाई हो सकती है.
कलर ब्लाइंडनेस के प्रकार व प्रभाव : डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि रंगों की पहचान में असमर्थता के आधार पर कलर ब्लाइंडनेस के मुख्य तीन प्रकार माने जाते हैं.
- प्रोटेनोपिया: इसमें व्यक्ति को लाल रंग पहचानने में कठिनाई होती है.
- ड्यूटेरानोपिया: इसमें व्यक्ति को हरे रंग पहचानने में कठिनाई होती है.
- ट्रिटानोपिया: इसमें व्यक्ति को नीले और पीले रंग पहचानने में कठिनाई होती है.
डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि यह स्वाभाविक है कि रंगों की पहचान कर पाने में असमर्थता पीड़ित के कार्य व जीवन को प्रभावित कर सकती है. जैसे बच्चों की बात करें तो इस समस्या में उन्हे चित्रों, ग्राफ और रंगीन सामग्रियों को समझने में कठिनाई हो सकती है जिससे उनका शैक्षणिक प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है. वहीं कुछ ऐसे पेशे भी हैं जिनमें कलर ब्लाइंड व्यक्ति का चयन मुश्किल होता है.जैसे पायलट, इलेक्ट्रिशियन, डिजाइनर आदि. क्योंकि कलर ब्लाइंडनेस से ग्रस्त व्यक्ति इन पेशों में कठिनाई का सामना कर सकते हैं.
इसके अलावा दैनिक जीवन में भी कलर ब्लाइंडनेस से ग्रस्त व्यक्ति को विभिन्न कार्यों में कठिनाई हो सकती है. जैसे ट्रैफिक लाइट के रंग पहचानना, कपड़ों का चुनाव करना और रंगों के आधार पर विभिन्न वस्तुओं की पहचान करना आदि.