हरिद्वार (सोमेश खत्री): कुदरत कई बार इंसानों को ऐसी परिस्थिति में डालती है, जहां उनको जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई का सामना करना पड़ता है. धर्मनगरी हरिद्वार में रहने वाला एक परिवार भी इन दिनों अपने जीवन की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहा है. इस घर के दो लाड़लों पर ऐसी विपदा आन पड़ी है, कि माता-पिता अब ईश्वर से गुहार लगा रहे हैं.
दरअसल, हरिद्वार में रहने वाले एक दंपति के दो बेटे हैं, लेकिन दोनों ही बच्चे इस वक्त ऐसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं, जिसका इलाज फिलहाल 100 फीसदी संभव नहीं है. बावजूद इसके मां-बाप अपने दोनों लाडलों का चेहरा देखकर इन कठिन परिस्थितियों का डटकर सामना कर रहे हैं.
कैसे लगा बीमारी का पता? हरिद्वार की टिहरी विस्थापित कॉलोनी में रहने वाले पूरन आहूजा और उनकी पत्नी रुचि आहूजा दोनों अपने बच्चों की बात करते हुए बेहद भावुक हो जाते हैं. आहूजा परिवार में दो बच्चे हैं. बड़े बेटे की उम्र 15 साल जबकि छोटा बेटा 9 साल का है.
पिता पूरन बताते हैं कि ये बात आज से लगभग 8 साल पहले की है, जब उनका छोटा बेटा 8 महीने का था, तो उसे अचानक बुखार आया. उन्होंने बच्चे को स्थानीय डॉक्टर को दिखाया. डॉक्टर ने इसके बाद बड़े बेटे के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वो बच्चा जोड़ों पर हाथ रखकर सीढ़ियां चढ़ता है और उसके चलने का लहजा भी बदल गया है. डॉक्टर ने बच्चे को चेक किया और मस्कुलर डिस्ट्रॉफी की आशंका जताई. डॉक्टर ने बड़े बेटे को लेकर भी यही आशंका जताई. डॉक्टर ने फिर बच्चे को ऋषिकेश एम्स दिखाने को कहा.
परिजन अपने बच्चे को ऋषिकेश लेकर गए. एम्स में डॉक्टरों ने दोनों बच्चों के तमाम टेस्ट किए और यह साफ हो गया कि दोनों बेटों को एक ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (DMD- Duchenne Muscular Dystrophy) नाम की गंभीर बीमारी है.
ऋषिकेश से दिल्ली तक हुआ इलाज: माता-पिता अपने दोनों बच्चों के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि अब वो दोनों ही ठीक से चल नहीं पाते. हरिद्वार के बाद ऋषिकेश और फिर दिल्ली में इलाज करवाया गया. दिल्ली के अस्पताल में पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट ने बड़े बेटे की जांच की. बच्चा अपने सहारे काफी मुश्किल से खड़ा हो सका. जांच में बीमारी की पुष्टि हुई और डॉक्टर ने साफ कह दिया कि इस बीमारी का फिलहाल दुनियाभर में कोई इलाज नहीं है.
परिवार इस बात को जानकर काफी टूट गया था, लेकिन फिर भी उन्होंने आयुर्वेद में इसका इलाज करवाने की सोची, लेकिन वहां पर भी कोई फायदा नहीं मिला. पिता बताते हैं कि,
मुझे बेहद घबराहट होती है जब मैं डॉक्टर से यह सुनता हूं कि इस बीमारी से ग्रसित इंसान हद से हद 18 साल तक जी सकता है. मैंने इन 8 साल में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, लेकिन इसका इलाज मुझे अब तक नहीं मिला है. मैंने अपनी सारी संपत्ति अपने दोनों बच्चों के लिए बेच दी और अब जिसमें रह रहा हूं, उसको भी बेच रहा हूं. मैं बस यह चाहता हूं कि मेरे बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएं. इनका कोई भी काम करना होता है, मैं इनको अपने कमर पर उठाकर इधर से उधर लेकर घूमता हूं. दोनों बच्चों के बात करने, देखने और सभी कामों में तेजी से बदलाव देख रहा हूं.
हालांकि, ये पूछने पर कि क्या ऐसी कोई बीमारी माता या पिता के परिवार में कभी देखी गई है? बच्चों की मां जवाब देती हैं कि, इस बीमारी को जेनेटिक समस्या माना जाता है. आज से पहले परिवार के किसी भी सदस्य को इस तरह की समस्या नहीं थी. पिछली चार पीढ़ियों में परिवार में ऐसा कुछ नहीं है. सिर्फ इन्हीं दो बच्चों को यह समस्या हुई, जिसके बाद इनका इलाज करना शुरू किया गया. इस बीमारी में धीरे-धीरे कर मसल्स डेड होती हैं.
माता-पिता कर रहे हैं संघर्ष: माता-पिता बताते हैं कि दोनों ही बच्चे बहुत एक्टिव हैं. उन्हें सब कुछ पता है, उसके बावजूद भी वो पॉजिटिव एनर्जी और पॉजिटिव माइंड के साथ हमें सपोर्ट करते हैं. उनका कहना है कि हम जरूर ठीक होंगे. वो केवल प्रोटीन लेते हैं और घर का नार्मल खाना खाते हैं.
बीमारी ने छीन लिया सब कुछ: दोनों बच्चों की बीमारी के इलाज में परिवार अपना पूरा पैसा लगा चुका है. पंजाब में परिवार की पुश्तैनी जमीन भी इलाज में जा चुकी है. घर भी बिकने की कगार पर है. अब उन्होंने प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं से मदद की गुहार लगाई है. प्रशासन ने मदद करने का आश्वासन दिया है और उनसे सारे डाक्यूमेंट्स भी लिए हैं.
क्या है बीमारी और क्या इलाज संभव है?एडिशनल CMO हरिद्वार अनिल वर्मा बताते हैं कि-
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) बहुत रेयर बीमारी होती है. यह बीमारी अमूमन बच्चों में होती है. ज्यादातक यह सिर्फ लड़कों में ही होती है. लगभग 6 साल से बच्चे इस बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं. वैसे तो यह बीमारी अमूमन जेनेटिक होती है, लेकिन अलग-अलग केसों में कई बार इसके अन्य कारण हो सकते हैं.