बच्चों को मोबाइल देने वालों के लिए जरूरी सूचना, एक अध्ययन में पेरेंट्स को दी गई चेतावनी - Effects of screen time on children - EFFECTS OF SCREEN TIME ON CHILDREN
Effects of screen time on children: आजकल हर कोई फोन या लैपटॉप के बिना नहीं रह सकता. काम के लिए या टाइम पास करने के लिए फोन या लैपटॉप का इस्तेमाल जरूर हो दया है. हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि लंबे समय तक फोन, टीवी और लैपटॉप देखने से खासकर बच्चों और छात्रों को आंखों से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इस खबर में पढ़ें बिस्तार से...
बच्चों को मोबाइल देने वालों के लिए जरूरी सूचना, एक अध्ययन में पेरेंट्स को दी गई चेतावनी (CANVA)
हैदराबाद : हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (एचसीयू) के सहायक प्रोफेसर शिवराम माले द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि जो बच्चे और छात्र सेलफोन या लैपटॉप पर गेम और कॉमिक शो देखने में लंबे समय तक बिताते हैं, उनकी आंखों को काफी नुकसान पहुंचने का खतरा होता है. उनके शोध में रेटिना की समस्याओं, रंग दृष्टि दोष और प्राकृतिक रंगों को पहचानने में असमर्थता जैसी चिंताजनक समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है, जो सभी युवाओं में आम होती जा रही हैं.
अध्ययन में बताया गया है कि कुछ बच्चे अब प्राकृतिक रंगों के बीच अंतर करने में सक्षम नहीं हैं, जैसे कि हरे आम के पत्तों को हल्के पीले रंग के लिए गलत समझना और वे सूरज की रोशनी को बर्दाश्त करने में असमर्थ हैं, जिससे अक्सर उनकी आंखें नीचे की ओर झुक जाती हैं. कई महीनों तक सैकड़ों बच्चों पर नजर रखने वाले इस शोध से पता चला है कि पिछले पांच से छह सालों में ये समस्याएं चार से पांच गुना बढ़ गई हैं.
'रंग दृष्टि दोष' पर अपने अध्ययन के हिस्से के रूप में, माले ने 'ऋषिवा कलर इल्यूजन प्रोटोटाइप' ऐप नामक एक उपकरण विकसित किया, जिसे हाल ही में भारतीय पेटेंट कार्यालय जर्नल में प्रकाशित किया गया था. उनके निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि महानगरों में हर पांच में से दो लोग और ग्रामीण क्षेत्रों में, हर पांच में से एक व्यक्ति दृष्टि दोष से प्रभावित है. स्कूलों और कॉलेजों में अपर्याप्त स्क्रीनिंग तंत्र के कारण स्थिति और भी खराब हो गई है.
माले के अनुसार, छोटे बच्चों में दृष्टि संबंधी समस्याओं का इलाज न किए जाने पर बाद में महंगी सर्जरी की नौबत आ सकती है. इससे निपटने के लिए उन्होंने 'ऋषिवी' नामक एक सॉफ्टवेयर बनाया, जो रंग दृष्टि की कमी के प्रतिशत का पता लगा सकता है और शुरुआती निदान में मदद कर सकता है. उनका उद्देश्य छात्रों में चश्मे की जरूरत को कम करना है. शोध की प्रारंभिक रिपोर्ट छह महीने पहले यूएस व्हाइट हाउस में फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन ऑफ बिहेवियरल एंड ब्रेन साइंसेज में प्रस्तुत की गई थी, जिसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली थी.