आजकल घुटनों के दर्द की समस्या आम बात हो गयी है. खासकर उम्र बढ़ने के साथ ही यह समस्या भी लोगों को काफी परेशान करने लगती है. जिसमें मरीज को घुटनों में असहनीय दर्द होने के साथ-साथ चलने फिरने में परेशानी होती है. इस बीमारी को "ऑस्टियोआर्थराइटिस" के नाम से भी जाना जाता हैं. इसके इलाज के लिए नी रिप्लेसमेंट को कारगर तरीका मानते हैं. लेकिन ज्यादातर मामलों में ये तरीका असफल रहता है या कुछ दिनों बाद समस्या जस की तस हो जाती है. ऐसी स्थिति में बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट के हेड डाॅ सर्वेश जैन ने एक शोध के आधार पर इस समस्या का कारगर इलाज ढूंढा है....
इस खबर के माध्यम से जानिए कि डाॅ सर्वेश जैन ने इस समस्या से निजात दिलाने के लिए क्या उपाय ढूंढा और घुटनों के दर्द की समस्या की वजह क्या होती है....
इस शहर में महज 100 रुपये में हो जाएगा घुटनों के दर्द का इलाज (ETV Bharat)
भारत की 35 फीसदी से ज्यादा आबादी पीड़ित घुटनों में दर्द हकीकत में कोई बीमारी नहीं है ,बल्कि उम्र का असर है. जिसका सामना अधिकांश लोगों को करना पड़ता है. कुछ लोगों को ये समस्या 40-50 साल की उम्र में ही परेशान करने लगती है. घर के कामकाज में महिलाओं के बैठने के तौर तरीकों और पोषक तत्वों की कमी के कारण ये बीमारी जल्द प्रकट हो जाती है. ये बीमारी अलग-अलग तरीके से प्रकट होती है. जैसे पहले केवल सूजन और चलने पर दर्द, बाद में पूरे समय दर्द और घुटने का अकड़ना होता है. गौरतलब है कि भारत में घुटनों के दर्द के मरीजों की संख्या करीब 40 करोड़ है. जो अमेरिका की कुल आबादी से ज्यादा है.
घुटनों के दर्द की समस्या की वजह? दरअसल, इस बीमारी से घुटने के किनारों को चिकना रखने वाला लुब्रिकेंट सूख जाता है और नी ज्वाइंट की अंदरूनी परत छलनी हो जाने के कारण हड्डियां आपस में रगड खाने लगती है, जिससे असहनीय वेदना होती है. ऐसे में कोई ऐसा पदार्थ घुटने के अंदर इंजेक्ट किया जाए. जो दोनों हड्डियों के बीच की कार्टिलेज की मोटाई बढ़ा दे और पर्याप्त मात्रा में लुब्रिकेंट पैदा होने लगे. कई सारे आर्टिफिशियल पदार्थों को इसके लिए ट्राई किए गए. लेकिन मानव शरीर किसी भी कृत्रिम तत्व को स्वीकार नहीं किया. सामान्य ग्लूकोज का 15 फीसदी ( Concentrated injection ) इस कार्य के लिए उपयुक्त पाया गया. इसके जरिए घुटनों के ऊतकों की फिर वृद्धि होने लगती है और नए सिरे से चिकनाई पैदा होने लगती है. चिकनाई के कारण हड्डियों का एक दूसरे से घिसाव रुकता है और घुटने की सूजन और गतिशीलता फिर सामान्य हो जाती है.
ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए नया उपचार (ETV Bharat)
कैसे होता है इलाज?घुटनों के दर्द के इलाज को प्रोलोथेरेपी कहा जाता है. प्रोफेसर डाॅ सर्वेश जैन बताते हैं कि इस एक इंजेक्शन के एक-एक महीने के अंतर से तीन डोज लेने पड़ते हैं. महज पांच मिनट का ये इंजेक्शन डॉक्टर की क्लीनिक में ही लगाया जा सकता है. जो लोग घुटना प्रत्यारोपण नहीं कराना चाहते है, या महंगे इलाज के लिए पैसा नहीं है या फिर बीमारी शुरुआती अवस्था में है. वोडेक्सट्रोज प्रोलथेरेपी ( Dextrose prolotherapy)नाम के इंजेक्शन से इलाज करा सकते हैं...क्या कहते हैं शोधकर्ता?बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डाॅ. सर्वेश जैन का कहना है कि यह इलाज तीन इंजेक्शन का कोर्स है. जिसे एक-एक महीने के अंतराल से लगाना होता है. यह घुटनों के दर्द बहुत ही सस्ता और अच्छा इलाज है. इसमें हम लोग हाइपरटाॅनिक ग्लूकोज ( शुगर साल्युशन) इन्जेक्ट करके नए ऊतकों की वृद्धि कराते हैं. इससे घुटनों का ल्युब्रिकेंट जिसे आम भाषा में लोग घुटने का ग्रीस भी कहते हैं. ये पहले की तरह बनने लगता है और घुटनों में पहले की तरह चिकनाई आ जाती है. इलाज का ये तरीका भारत जैसे देश में इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योकिं हमारे यहां संसाधन कम है.
उन्होंने आगे कहा कि अगर आयुष्मान योजना की बात करें, तो घुटनों के प्रत्यारोपण के लिए अस्पतालों को 75 हजार रूपए मिलते हैं. इसलिए वहां घुटना प्रत्यारोपण में साधारण गुणवत्ता के पार्ट्स उपयोग करते हैं. निजी अस्पतालों में अपने खर्च पर घुटना प्रत्यारोपण का खर्च 4 लाख रूपए तक आता है. लेकिन हमारा जो यह इंजेक्शन वाला इलाज है वह कम खर्च वाला और काफी सस्ता है. अगर आप बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज में आकर इलाज कराना चाहते हैं, तो महज 100 रूपए में इलाज हो जाएगा और यही इलाज निजी तौर पर कराने पर 10 हजार रुपये तक खर्च आता है. भारत जैसे देश में जहां संसाधनों की कमी है, वहां मेरा शोध लाभदायक है.