हैदराबाद : भारत में गर्भावस्था के दौरान समस्याओं, देखभाल में कमी या अन्य कारणों से माताओं की मौत का आंकड़ा काफी ज्यादा है. गर्भावस्था व प्रसव को माता तथा शिशु दोनों के लिए सुरक्षित बनाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए बहुत जरूरी है कि ना सिर्फ गर्भवती माता बल्कि परिवार में सभी को सबंधित जरूरी बातों की जानकारी हो. साथ ही सभी गांव, शहरों व कस्बों में गर्भवती महिलाओं के लिए नियमित जांच व चिकित्सा को सुगम बनाया जाए.
इसी दिशा में प्रयासों को बढ़ावा देने तथा जागरूकता फैलाने के उद्देश्य के साथ 11 अप्रैल 2003 को 'व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया' के अनुरोध पर भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस/ नेशनल सेफ मदरहुड डे’ मनाए जाने की घोषणा की थी. जिसके बाद से हर साल राष्ट्रीय स्तर पर इस आयोजन को मनाया जाता है.
क्या कहते हैं आंकड़े
गर्भावस्था से पहले, इसके दौरान तथा प्रसव के बाद कई बार सावधानियों व देखभाल की कमी या उनके कारण होने वाली या ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं जिन्हे इलाज से ठीक या नियंत्रित किया जा सकता था , माता व गर्भस्थ शिशु को काफी परेशनियों का सामना करना पड़ता है. वहीं कई बार इन तथा अन्य कारणों से दोनों के लिए जान का जोखिम या कई अन्य गंभीर समस्याओं का खतरा भी बढ़ जाता हैं.
भारत में मातृत्व मृत्यु का आंकड़ा दूसरे देशों के मुकाबले काफी ज्यादा है. यही नहीं भारत को दुनिया में सबसे अधिक मातृत्व मृत्यु दर वाले देशों में से एक माना जाता है. आंकड़ों के मुताबिक भारत में 12 प्रतिशत महिलाओं की मौत गर्भावस्था, प्रसव और पोस्ट डिलीवरी के बाद होने वाली परेशानियों की वजह से होती है.
वर्ष 2020 में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 20 सालों में मातृ मृत्यु दर में एक तिहाई की गिरावट के बावजूद गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं के कारण हर 2 मिनट में एक महिला की मौत दर्ज की गई थी . रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में वर्ष 2020 में लगभग 2.87 लाख मातृत्व मौतें हुईं थी. भारत में यह आंकड़ा लगभग 24 हजार महिलाओं था. जोकि दुनिया में मातृत्व मौतों का दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है. वहीं कुछ वेबसाइट पर उपलब्ध हालिया आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल लगभग 35,000 से अधिक महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान उचित देखभाल न होने के चलते मौत हो जाती है.