अजमेर :आयुर्वेद में यूरिक एसिड को संधिवात कहा जाता है. मेडिकल भाषा में अर्थराइटिस (गठिया) रोग भी कहते हैं. यह रोग जानलेवा नहीं है, लेकिन इससे रोगी को काफी दर्द और परेशानी का सामना करना पड़ता है. लंबे समय तक अर्थराइटिस होने पर रोगी को दैनिक कार्यों को करने में भी काफी मुश्किल होती है. जानते हैं यूरिक एसिड के कारण लक्षण और उपचार से संबंधित आयुर्वेद पद्धति के अनुसार हेल्थ टिप्स.
अजमेर संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल में आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. बीएल मिश्रा ने बताया कि पाचन की चय और अपचय क्रिया विकृत होने पर वायु की उग्रता के साथ कफ भी विकृत हो जाता है. इससे शरीर की छोटी संधियों में वायु और कफ के विकृतता के कारण सूजन और दर्द होने लगता है. पाचन क्रिया से बनने वाले ग्लूकोज और प्रोटीन (पाचक रस) विकृत होकर अम्लता (एसिड) में परिवर्तित हो जाते हैं. अम्लता का शरीर से निष्कारण नहीं होने से यह संधियों में जमा होने लगता है, जिससे संधियों में तरल चिकना द्रव्य को सुखाकर छोटे-छोटे क्रिस्टल बनाकर यह जमा हो जाता है. जिससे संधियों में तीव्र चुभन, सुजन और दर्द होने लगता है. आयुर्वेद में यह संधिवात कहलाता है.
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यह होती हैं छोटी संधिया :डॉ. मिश्रा ने बताया कि छोटी संधियों से तात्पर्य अंगुलियों, हाथ, पैर, कलाई, पंजे, गरदन, रीढ़ की हड्डी छोटी संधि होती है. यूरिक एसिड शरीर में बनने के बाद इन छोटी संधियों को ही ज्यादा प्रभावित करता है. शरीर में यूरिक एसिड बनने के कई कारण हैं, जिसमें पाचन क्रिया का विकृत होना मुख्य कारण है. पाचन क्रिया में विकृति, असंयमित और असंतुलित भोजन के कारण होती है. इसके अलावा पौष्टिक भोजन नहीं करने, जंक फूड, फास्ट फूड, तेज मसालेदार भोजन, मानसिक तनाव, अनियमित जीवन शैली, रात को देरी से भोजन करने की आदत, रात्रि के भोजन में दालों का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करने से यूरिक एसिड शरीर में बनने लगता है.