हैदराबाद: थैलेसीमिया एक गंभीर जेनेटिक रक्त विकार है. जिसकी गंभीर अवस्था में आमतौर पर पीड़ित को ताउम्र ब्लड ट्रांसफ़्यूजन, इलाज व प्रबंधन की जरूरत पड़ती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा थैलेसीमिया इंडिया के आंकड़ों की माने तो देश में हर साल लगभग 10000 बच्चे बीटा थैलेसीमिया बीमारी के साथ पैदा होते हैं. वहीं कुछ आंकड़ों की माने तो भारत की कुल जनसंख्या का 3.4 प्रतिशत भाग Thalassemia से ग्रस्त है. इन आंकड़ों के बावजूद Thalassemia को लेकर भारत सहित दुनियाभर में लोगों में जरूरी जानकारी का अभाव है.
दुनियाभर में रक्त विकार Thalassemia की गंभीरता तथा इसके प्रबंधन व इलाज को लेकर आमजन में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 8 मई को एक नई थीम के साथ ‘ विश्व थैलेसीमिया दिवस ’ मनाया जाता है. इस वर्ष यह आयोजन "जीवन को सशक्त बनाना, प्रगति को गले लगाना: सभी के लिए न्यायसंगत और सुलभ थैलेसीमिया उपचार." थीम पर मनाया जा रहा है. World Thalassemia Day Theme 2024 : Empowering Lives, Embracing Progress : Equitable and Accessible Thalassemia Treatment for All .
What is Thalassemia : क्या है थैलेसीमिया
थैलेसीमिया एक अनुवांशिक विकृति/ जेनेटिक डिसऑर्डर है, जिसे ऑटोसोमल रिसेसिव डिसऑर्डर भी कहा जाता है. यह माता या पिता या दोनों से जीन के माध्यम से बच्चे तक पहुंच सकता है. Thalassemia में लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन तथा उनके कार्य करने की क्षमता में समस्या के चलते रक्त में Hemoglobin बनाना कम या बंद हो जाता है. दरअसल सामान्य तौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में RBC यानी लाल रक्त कणों की संख्या 45 से 50 लाख प्रति घन मिलीमीटर होती है. लेकिन थैलेसीमिया में ये RBC तेजी से नष्ट होने लगते हैं और नई कोशिकाएं नहीं बन पाती है. वहीं रक्त में आरबीसी की औसतन आयु 120 दिन मानी जाती है. लेकिन इस विकार में यह घटकर करीब 10 से 25 दिन ही रह जाती है. जिसके कारण शरीर में Hemoglobin कम होने लगता है और पीड़ित गंभीर Anaemia का शिकार हो जाता है. ऐसी स्थिति में शरीर में रक्त की जरूरत को पूरा करने के लिए एक निश्चित समय सीमा के बाद पीड़ितों के लिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन यानी खून चढ़ाना बेहद जरूरी हो जाता है. आमतौर पर बच्चे के जन्म के छह महीने बाद ही उसमें इस रक्त विकार के होने का पता चल जाता है.
लक्षणों और कारणों के आधार पर Thalassemia कम या ज्यादा गंभीर प्रकार का हो सकता है. इनमें कम गंभीर या Mild Thalassemia में लक्षण काफी हल्के नजर आते हैं वहीं सही इलाज व प्रबंधन की मदद से पीड़ित सामान्य जीवन जी सकता हैं. लेकिन Major Thalassemia में पीड़ित के लंबे समय तक जीवित रहने की संभावना कम रहती है. वहीं जो बच्चे इस अवस्था में सर्वाइव कर भी लेते हैं उन्हें आमतौर पर आजीवन इलाज व सावधानियों को अपनाने के साथ नियमित रक्त चढ़वाने की जरूरत भी पड़ती है. इसके साथ ही उन्हे कई अन्य कम या ज्यादा गंभीर शारीरिक समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है.
Thalassemia symptoms : थैलेसीमिया के मुख्य लक्षण
- थैलेसीमिया के मुख्य लक्षण जो बच्चों में 6 महीने से नज़र आने लगते हैं उनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- शरीर में खून की कमी
- नाखून और जीभ में पीलापन आना
- चेहरे की हड्डी की विकृति
- शारीरिक विकास की गति धीमी होना या रुक जाना
- वजन ना बढ़ना व कुपोषण
- कमजोरी व सांस लेने में तकलीफ
- पेट में सूजन तथा मूत्र संबंधी समस्याएं, आदि.