हैदराबाद :दुनियाभर में वैकल्पिक चिकित्सा के तहत बहुत-सी ऐसी पद्धतियां हैं जो आम चिकित्सा पद्धतियों से थोड़ी अलग होती हैं लेकिन कुछ विशेष अवस्थाओं में बहुत लाभकारी होती हैं. ऐसी ही एक चिकित्सा पद्धति है हिजामा या कपिंग थेरेपी. Alternative medicine यूनानी चिकित्सा पद्धति के तहत आने वाली Hijama Therapy or Cupping Therapy को कमर दर्द, जोड़ों के दर्द, माइग्रेन, स्लिप डिस्क, सर्वाइकल, पैरों में सूजन तथा सुन्नता आदि समस्याओं में काफी असरदार माना जाता है.
क्या है हिजामा थेरेपी :हिजामा थेरेपी में समस्या को दूर करने के लिए प्रभावित स्थान पर विशेष प्रकार के कप रख कर उनमें मशीन की मदद से वैक्यूम पैदा किया जाता है. जिससे वे त्वचा से चिपक जाते हैं और त्वचा कप में ऊपर की ओर खिंच जाती है. Hijama Therapy दो प्रकार की होती है, ड्राई तथा वेट ( Dry cupping and wet cupping ) इन दोनों प्रकारों में ही में कमर, पीठ, पेट, हाथ, पैर या शरीर के अन्य प्रभावित या समस्याग्रस्त हिस्सों में कप लगाए जाते हैं. ये कप सामान्यतः शीशे के होते हैं लेकिन कई स्थानों पर बांस,चीनी मिट्टी या सिलिकॉन आदि कुछ अन्य प्रकार के कपों का उपयोग भी किया जाता है. ‘ड्राई’ कपिंग ( Dry cupping ) में कपों को कुछ वक्त के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है, वहीं ‘वेट’ कपिंग ( Wet cupping ) में जब कप लगाने के तीन से पांच मिनट बाद उस स्थान पर खून इकठ्ठा होने लगता है. तो त्वचा पर बहुत हल्के कट लगा दिए जाते हैं, जिससे इकट्ठा हुआ रक्त बूंद-बूंद में कप में बाहर आ जाता है. थोड़ी देर बाद इन कपों को हटा दिया जाता है. जानकारों की मानें तो Cupping Therapy एक सुरक्षित थेरेपी है.
Cupping Therapy or Hijama Therapy Benefits : हिजामा थेरेपी के लाभ
इंदौर के हिजामा थेरेपिस्ट तथा फिजियोथेरेपिस्ट डॉ रुद्र भाषाणी बताते हैं कि, कई बार किसी बीमारी या अन्य कारण से शरीर के विभिन्न अंगों में रक्त के संचार में समस्या या अनियमितता होने या कई बार रक्त में टॉक्सिन के एकत्रित होने के कारण पीड़ित में कई तरह के दर्द, रोग या समस्याएं होने लगती हैं. वह बताते हैं कि Hijama Therapy शरीर के सभी अंगों में रक्त संचार में हो रही परेशानियों को कम करने के साथ रक्त में मौजूद टॉक्सिन यानी विषैले पदार्थ तथा मृत कोशिकाओं व तत्वों को बाहर निकालने में भी मददगार होती हैं. वहीं Cupping Therapy में मांसपेशियों व त्वचा के ऊत्तकों पर भी दबाव पड़ता है जिससे उनमें लचीलापन बढ़ता है और मांसपेशियों में जकड़न व कसाव की समस्या में आराम मिलता है. साथ ही व्यक्ति की किसी भी कार्य को करने की शारीरिक क्षमता भी बेहतर होती है.
डॉ रुद्र बताते हैं कि अलग-अलग समस्याओं के आधार पर कई बार इस थेरेपी को करवाने से पहले कुछ रक्त जांच, एक्स रे या कुछ अन्य टेस्ट करवाने की सलाह भी दी जाती है. आमतौर पर सामान्य दर्द या परेशानी हो या समस्या ( Back pain , joint pain , migraine , slipped disc , cervical , swelling , numbness in legs ) की शुरुआत ही हो तो दो सिटिंग में ही समस्या में राहत मिल जाती है. लेकिन अगर समस्या पुरानी हो तथा ज्यादा परेशान कर रही हो तो निवारण में ज्यादा सिटिंग भी लग सकती है. वह बताते हैं कि इस थेरेपी को एक साल में 4 बार करवाया जा सकता है.
वह बताते हैं कि यह थेरेपी सिर्फ रीढ़ की हड्डी या कमर से जुड़े दर्द जैसे सियाटिका, स्लिप डिस्क , स्पॉन्डिलाइटिस, घुटने का दर्द , गठिया, सिरदर्द या माइग्रेन में ही राहत नहीं दिलाती है, बल्कि नसों से जुड़ी बीमारियों व मांसपेशियों से जुड़ी समस्याओं, चर्म रोग, रक्तचाप, कार्पल टनल सिंड्रोम, महिलाओं में महावारी या बांझपन की समस्या, गर्भाशय व हार्मोनल विकार, थायरॉइड की समस्या, अस्थमा, साइन्साइटिस, खराब कोलेस्ट्रॉल के बढ़ने, मधुमेह, मोटापा, पेट या आंत के रोग (आईबीडी आदि) , त्वचा संबंधी सामान्य रोग जैसे चेहरे पर दाने व दाग-धब्बे तथा गंजेपन जैसी समस्याओं में काफी राहत दिला सकती है.