नई दिल्ली:डायबिटीज एक पुरानी बीमारी है. दुनिया भर में करोड़ों लोग इससे पीड़ित हैं. डायबिटीज एक से अधिक कारणों से हो सकती है. जितने ज्यादा कारण होंगे किसी मरीज को डायबिटीज होने की संभावना उतनी ज्यादा होगी. डायबिटीज से बचने के लिए यह जरूरी है कि हम उन कारणों की पहचान करें. द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी में प्रकाशित एक नए अध्ययन में कोविड-19 और डायबिटीज के बीच एक संबंध स्थापित किया गया. जो वाकई हमारी चिंताओं को बढ़ाने वाला है.
इसकी शुरुआत 2020 में तब हुई जब दुनिया भर में डॉक्टरों ने पाया कि कोविड से पहले स्वस्थ व्यक्तियों में डायबिटीज के केस में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है. इन लोगों में कुछ को इंसुलिन की उच्च खुराक की आवश्यकता दर्ज की गई. अक्टूबर 2022 में तेलंगाना से जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में प्रकाशित एक पेपर में इसी तरह के निष्कर्षों की सूचना दी गई.
हालांकि, इन अध्ययनों के उलट एक तर्क यह भी है कि इन अध्ययनों का सैंपल साइज काफी कम है और इन्हें निर्णायक नहीं माना जा सकता. उदाहरण के लिए, कोविड-19 के लिए स्टेरॉयड का उपयोग अपने आप ही बल्ड शुगर के स्तर को बढ़ा देता है. इसके अलावा, किसी भी आबादी में, डायबिटीज व्यक्तियों के एक महत्वपूर्ण अनुपात में पता नहीं चलता है. यह केवल कोविड से संक्रमित होने के बाद उन्हें मिले चिकित्सा ध्यान के कारण ही पता चला होगा.
इसके उलट कुछ शोध कर्ताओं ने इस तथ्य की ओर भी ध्यान दिया है कि डायबिटीज वाले लोगों को गंभीर कोविड का अधिक जोखिम होता है. हालांकि, यह भी स्पष्ट नहीं है कि कोविड के तत्काल प्रभाव के खत्म होने के बाद बल्ड शुगर में वृद्धि कम हुई या नहीं.
हालांकि, दावा किया जा रहा है कि नए अध्ययन में वैक्सीन रोलआउट से पहले और बाद के स्वास्थ्य रिकॉर्ड की भी जांच की गई, जिससे शोधकर्ताओं को डायबिटीज के जोखिम पर टीकाकरण के प्रभाव की जांच करने में मदद मिली. एक वर्ष से अधिक की अनुवर्ती अवधि के साथ, वे नए निदान किए गए डायबिटीज की दृढ़ता का आकलन कर सकते हैं. चूंकि अध्ययन महामारी से पहले के सुव्यवस्थित डेटाबेस पर निर्भर था, इसलिए निष्कर्ष केवल बढ़े हुए परीक्षण के कारण होने की संभावना नहीं है.