पटनाः फिल्मी दुनिया की जानी मानी हस्ती नसीरुद्दीन शाह के बेटे विवान शाहइन दिनों पटना में हैं. वह अगले तीन दिनों तक पटना में हाउस आफ वैरायटी थिएटर में नाटक का मंचन करेंगे. प्रेमचंद की लिखी नाटक गुल्ली डंडा और कुछ पन्ने का मंचन करने वाले हैं. इस बीच ईटीवी भारत से विवान शाह ने खुलकर बात की और बताया कि उनके जीवन में पिता नसीरुद्दीन शाह का कितना प्रभाव है. पेश है विवान शाह से बातचीत के कुछ अंश..
सवाल- आपके जीवन में आपके पिता नसीरुद्दीन शाह का कितना प्रभाव है ?
विवान शाह - बहुत गहरा प्रभाव रहा है. मेरे पिता का मेरे जीवन पर बहुत ही असर है. मैं उनको आदर्श मानता हूं. मैंने जो कुछ भी सीखा है उनसे सिखा है. जो मेरी क्राफ्ट है जो एक अभिनेता की कला की क्राफ्ट होती है वह काफी बेहतर हुई है. बहुत सुधारने की कोशिश हमेशा से रही है और मैं अपने पिताजी की मदद से काफी सुधार पाया हूं अपनी कला को और अपने क्राफ्ट को.
सवाल- अपने पिता के करीब आप अपने आप को कितना मानते हैं?
विवान शाह- मैं उनके करीब बहुत हूं. मैं उनसे लगातार सीखता रहता हूं. बातचीत करता हूं. मैं अपनी सोच विचार उनके साथ शेयर करता हूं. डिस्कशन करता हूं, उनसे मैं लगातार सीखता रहता हूं. हम साथ में काम करते हैं. अलग-अलग साहित्य, नाटक, फिल्में हम लोग एक दूसरे से शेयर करते हैं. हम लोग आर्टिस्टिक कोलैबोरेटर है एक दूसरे के साथ. हमारा उनके साथ एक बहुत ही खूबसूरत रिश्ता है.
सवाल- आपकी बातों से लगता है कि आपके पिता नसीरुद्दीन शाह आपके गुरु भी है. तो क्या गुरु जी से डांट पड़ी है?
विवान शाह-हां मुझे डांट जरूर पड़ती है और यह हमेशा किसी भी प्रकार के गुरु जी से डांट पड़ती रहती होगी. डांट एक प्रक्रिया है, हिस्सा है. फुटबॉल या क्रिकेट का कोच अपने खिलाड़ियों को कभी-कभार डांटता होगा, वैसे ही नाटक या किसी प्रकार की कला में हम काम करते हैं, कभी कभार ऐसा भी होता है कि मुझे डांट पड़ती.
सवाल - हमारे दर्शक यह जानना चाहते हैं कि विवान को अपने पिताजी से पहली डांट कब पड़ी थी? जब नसीर साहब ने कहा था कि विवान तुमने यह गलती कर दी है?
विवान शाह- मेरे बचपन में गणित को लेकर शायद पिताजी ने डांटा होगा. वह गणित सिखाने की कोशिश करते थे कि गणित मैं पढ़ लूं. वह भी गणित में कमजोर थे मैं भी गणित में कमजोर था. अब मेरा गणित थोड़ा बेहतर हो चुका है. उस समय गणित के चक्कर में काफी डांट खाई थी हमने. बचपन में जब हम लोग पढ़ाई करते थे, माता-पिता जब पढ़ाते थे तो उस समय डांट पड़ती थी.
सवाल - आपने पहली बार जब नसीर साहब से कहा था कि मैं भी फिल्मों में आना चाहता हूं, मंच पर आना चाहता हूं तो उनका रिएक्शन क्या था?
विवान शाह- ऐसा मोमेंट कभी आया तो नहीं था. यह ग्रैजुएल प्रक्रिया थी. यह चीज बहुत ही अद्भुत तरीके से हुई. ऐसा कभी मोमेंट नहीं आया जब मैंने जाकर ऐसा कहा होगा कि मैं फिल्मों में आना चाहता हूं, अभिनेता बनना चाहता हूं. एक फिल्म कर रहे थे साथ में, उस फिल्म को करने के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मुझे अभिनेता बनना चाहिए.