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अमेरिका में जॉब संकट! भारतीयों को नहीं मिल रही नौकरी, इंजीनियरिंग के बाद बना वेटर - Jobs Crisis in America - JOBS CRISIS IN AMERICA

Jobs Crisis in America: हमारे देश के छात्र हर साल इस विश्वास के साथ अमेरिका जाते हैं कि उन्हें वहां सॉफ्टवेयर कंपनियों में हाई सैलरी वाली नौकरी मिलेंगी. लेकिन अमेरिका में इस समय काफी बेरोजगारी है और लोगों को नौकरी मिलने में दिक्कते हो रही हैं.

Jobs Crisis in America
अमेरिका में जॉब संकट (ETV Bharat Graphics)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 25, 2024, 4:19 PM IST

हैदराबाद:तेलंगाना के वेंकट ने छह साल पहले एक मशहूर आईआईटी से इंजीनियरिंग की थी. अमेरिका से एमएस करने के बाद उन्हें वहां एक बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी मिल गई. उन्हें एच-1बी वीजा भी मिल गया. इसके बाद कंपनी ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया. कहीं और नौकरी न मिलने पर वेंकट एक साल से न्यूजर्सी के एक होटल में वेटर का काम कर रहे हैं.

हैदराबाद के एक छात्र को इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी ने 40 लाख रुपये के पैकेज पर नौकरी का ऑफर दिया था. हालांकि, उसने इस ऑफर को ठुकरा दिया और अमेरिका चला गया, जहां उसमें एमएस की पढ़ाई पूरी की, हालांकि अब उसे नौकरी नहीं मिल रही है. वे पिछले कुछ महीनों से नौकरी न मिलने से परेशान है.

वारंगल के अजय रेड्डी ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और तेलंगाना की एक नामी कंपनी में पांच साल तक काम किया. इसके बाद वह अमेरिका चले गए और एमएस की पढ़ाई की. इतने अनुभव के बावजूद अब उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है. वे जितनी भी कंपनियों में आवेदन करते हैं, वे उन्हें रिजेक्ट कर देती हैं.

अमेरिका में इस समय काफी बेरोजगारी है. पिछले ढाई दशक में वहां ऐसा संकट कभी नहीं देखा गया. बड़ी उम्मीदों के साथ लोग उच्च शिक्षा के लिए वहां गए और अब वे अपनी मास्टर डिग्री लेकर सड़कों पर भटक रहे हैं. सॉफ्टवेयर कंपनियां भी उन लोगों को नौकरी से निकाल रही हैं जो चार-पांच साल से काम कर रहे हैं. पीड़ितों में से कई होटल और पेट्रोल पंप पर काम कर रहे हैं और दूसरी नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

नौकरी पाने के लिए अमेरिका में की पढ़ाई
हमारे देश के छात्र हर साल इस विश्वास के साथ अमेरिका जाते हैं कि उन्हें वहां सॉफ्टवेयर कंपनियों में हाई सैलरी वाली नौकरी मिलेंगी. 2022-23 में लगभग दो लाख लोग नौकरी के लिए अमेरिका गए. कंसल्टेंसी फर्मों के प्रतिनिधियों ने कहा कि उनमें 45,000 से 55,000 तेलुगु छात्र हैं. अमेरिका जाने वाले अधिकांश छात्र एमएस में कंप्यूटर साइंस और इससे संबंधित पाठ्यक्रम पढ़ना पसंद करते हैं. दो साल पहले तक अमेरिका में एमएस करने वालों में से लगभग 85 फीसदी को वहां नौकरी मिल गई थी.

बेरोजगारी एक समस्या है
कोविड-19 के दौरान दो बार लगाए गए लॉकडाउन के कारण अमेरिका में सभी तरह के उद्योग ठप हो गए. कंपनियों को 2021-22 में भारी धनराशि मिली क्योंकि वहां की सरकार ने उन्हें बचाने के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की. बैंकों ने कम ब्याज पर हजारों करोड़ रुपये उधार दिए और कई कंपनियों ने इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया है. परिणामस्वरूप, आईटी कंपनियों को अभूतपूर्व ऑर्डर मिले. कंपनियों ने कर्मचारियों को भी उसी स्तर पर रखा.

हालांकि, कोविड का असर कम होने के बाद अमेरिकी सरकार ने पैकेज बंद कर दिए. लॉकडाउन के दौरान विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों को दिए गए ऋणों की वसूली न होने के कारण बैंकों को भी वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. इसलिए उन्होंने ऋण देना बंद कर दिया. उन्होंने ब्याज दर को तब तक के 3-4 प्रतिशत से बढ़ाकर अधिकतम 8 प्रतिशत कर दिया है. उनका कहना है कि अमेरिकी इतिहास में ब्याज दरें कभी इतनी अधिक नहीं रहीं. इसका औद्योगिक क्षेत्र पर गहरा असर पड़ा.

वहीं, आईटी कंपनियों के ऑर्डर अचानक कम हो गए. इसलिए आईटी कंपनियों ने मार्च 2023 से कोविड के समय में काम पर रखे गए कर्मचारियों को निकालना शुरू कर दिया है. मौजूदा कर्मचारी जिन्हें ज़्यादा वेतन मिल रहा था, उन्हें बड़े पैमाने पर निकाल दिया गया है. कुछ कंपनियों ने वेतन में कटौती की है. पहले हजारों लोगों को नौकरी देने वाली आईटी कंपनियां अब सैकड़ों लोगों को काम पर रख रही हैं. ये सभी घटनाक्रम भारत छोड़ने वालों पर भारी पड़ रहे हैं. तेलुगु राज्यों से गए हज़ारों लोगों को एमएस करने के बाद भी नौकरी नहीं मिल रही है.

वहां रहने में इतनी दिक्कतें
अमेरिका के नियमों के अनुसार संबंधित विश्वविद्यालय उस देश में एमएस पूरा करने के तुरंत बाद छात्र के नाम पर OPT I20 (वैकल्पिक व्यावहारिक प्रशिक्षण) जारी करता है. इसे प्राप्त करने के एक महीने के भीतर रोजगार प्राधिकरण दस्तावेज (EAD) के लिए आवेदन करना होता है. मंजूरी के तीन महीने के भीतर किसी नौकरी में शामिल हो जाना चाहिए, अन्यथा देश छोड़ देना होगा.

हालांकि, छात्र विश्वविद्यालय की फीस के लिए बैंकों से 20 लाख रुपये से लेकर करोड़ रुपये तक का कर्ज लेते हैं. देश वापस आने के बाद अगर उन्हें यहां नौकरी नहीं मिली तो आर्थिक स्थिति उलट जाएगी. इसलिए वे किसी न किसी रूप में अमेरिका में रहने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ एमएस पूरा करने से बचने के लिए एक या दो विषय छोड़ रहे हैं. अन्य विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के पास शोध सहायक के रूप में शामिल हो रहे हैं. इसके लिए कोई वेतन नहीं है.

हालांकि, प्रोफेसर द्वारा दिए गए दस्तावेज के साथ आप एक साल तक अमेरिका में रह सकते हैं. अन्य लोग सलाहकारों से संपर्क कर रहे हैं और प्रमाण पत्र प्राप्त कर रहे हैं कि वे कहीं काम कर रहे हैं. यह समस्या उन्हें बहुत परेशान कर रही है, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि हर साल वहां जाने वालों की संख्या में कमी नहीं आई है.

सरकारी मदद मिले तो बदलाव संभव है
नवंबर में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहे हैं. बाइडेन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मुकाबला होने की संभावना है. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि नई सरकार आने के बाद औद्योगिक क्षेत्र को समर्थन मिलने पर ही स्थिति बदलेगी. उम्मीद है कि ट्रंप पहले भी ऐसा समर्थन दे चुके हैं और अगर वे चुनाव जीतते हैं तो एक बार फिर औद्योगिक क्षेत्र को अपना हाथ बंटाएंगे.

अनुभव के बिना नौकरी नहीं
एक कंसल्टेंसी के मालिक मालिक ऐथराजू श्रीकांत ने कहा, '30 साल से अमेरिका में हूं. कंसल्टेंसी की व्यवस्था की और कई लोगों को नौकरी दिलाइ. मौजूदा संकट के कारण दस साल की सेवा वाले भी नौकरी नहीं पा रहे हैं. 14 साल का अनुभव रखने वाले भी अपनी नौकरी खो रहे हैं. यह स्थिति आईटी क्षेत्र में अधिक है. पिछले 28 सालों में ऐसी समस्या कभी नहीं देखी गई.'

डेढ़ साल में बदलाव आ सकता है
वहीं, ग्लोबल ट्री करियर कंसल्टेंसी के अलापति शुभाकर ने कहा कि अमेरिका के विभिन्न राज्यों में महीनों तक स्थिति देखने के बाद मैं दो दिन पहले ही हैदराबाद आया हूं. वहां आर्थिक संकट ने आईटी कंपनियों को भी प्रभावित किया है. उन्होंने शुरू में हजारों कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था. अब छंटनी लगभग बंद हो गई है, लेकिन नए कर्मचारियों की संख्या बहुत कम है. तेलुगु राज्यों में इसका असर बहुत ज़्यादा है. हजारों लोग अभी भी OPT पर हैं. इस साल के अंत तक या अगले साल के मध्य तक स्थिति में बदलाव आ सकता है.

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