हैदराबाद: भारत में आधुनिक आयकर की शुरुआत 1860 में हुई, जब ब्रिटिश सरकार ने 1857 के विद्रोह के चलते हुए नुकसान की भरपाई के लिए आयकर अधिनियम पेश किया. इसमें 1918, 1922 और 1961 में बड़े सुधार किए गए, जिसमें बाद में मौजूदा ढांचे की स्थापना की गई, जिसमें आय को पांच मदों (Tax Slabs) में विभाजित किया गया.
पिछले कुछ वर्षों में, आयकर दरों और स्लैब में लगातार संशोधन किया गया है. 1974, 1985 और 1997 में बड़े सुधार हुए, जिसमें टैक्स दरों को कम किया गया और स्लैब को सरल बनाया गया. 2010 में, 1.6 लाख रुपये तक की आय पर टैक्स में छूट दी गई और 2017 तक छूट की सीमा बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये कर दी गई.
2020 में, नई कर व्यवस्था शुरू की गई, जिसमें करदाताओं को कटौती के साथ पुरानी प्रणाली और कम दरों वाली नई, सरलीकृत व्यवस्था के बीच चयन करने का विकल्प दिया गया, लेकिन कोई छूट नहीं दी गई. 2024 में निर्मला सीतारमण ने मानक कटौती बढ़ाई और नए टैक्स स्लैब पेश किए. 2025-26 के बजट में सीतारमण ने मानक कटौती बढ़ाई और नए टैक्स स्लैब पेश किए.
भारत में आयकर स्लैब दर का इतिहास
1949-50: जॉन मथाई ने पहला आयकर स्लैब संशोधन किया
1949-50 में पहली बार टैक्स दरों को बदलने की कोशिश की गई थी और कुछ सकारात्मक टैक्स दर परिवर्तन लाने का प्रयास किया गया था. आजाद भारत के पहले वित्त मंत्री जॉन मथाई ने 10,000 रुपये तक की आय पर टैक्स को दो स्लैब में बांटकर कम करने की कोशिश की. पहले स्लैब में एक आना से नौ पाई और दूसरे स्लैब में दो आना से 'एक नौ पाई' तक की कटौती की गई.
- (उस समय एक आना भारत और पाकिस्तान में इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा इकाई थी. एक आना एक रुपये के 1/16 के बराबर होता है. इसे आगे 4 पैसे या 12 पाई में विभाजित किया गया. इस प्रकार, एक रुपये में 64 पैसे और 192 पाई होते थे).
1974-75 : वाईबी चव्हाण ने आयकर स्लैब दर में बदलाव किया
भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री वाईबी चव्हाण ने अधिकतम मार्जिनल रेट को अब तक के उच्च स्तर 97.75 प्रतिशत से घटाकर 75 प्रतिशत कर दिया, जो सराहनीय है. उस समय व्यक्तिगत आय के सभी स्तरों पर टैक्स कम कर दिए गए थे.
उन्होंने 6,000 रुपये तक की आय वालों के लिए कोई आयकर नहीं लगाया था; 70,000 रुपये से अधिक की आय स्लैब पर मूल आयकर की 70 प्रतिशत मार्जिनल दर रखी गई. सभी श्रेणियों के लिए अधिभार दर (Surcharge Rate) को घटाकर 10 प्रतिशत के एक समान स्तर पर कर दिया गया. आयकर और अधिभार की संयुक्त गणना करने पर उच्चतम स्लैब 77 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा. इसके विपरीत, संपत्ति-कर में बड़ी वृद्धि की गई जो एक बुद्धिमानी भरा निर्णय था.
1985-86: विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पेश किया टैक्स स्लैब दर
1985-86 में देश के वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने आयकर स्लैब की संख्या आठ से घटाकर चार करके कराधान का पुनर्गठन किया. इस बदलाव से व्यक्तिगत आय पर आयकर की उच्च मार्जिनल दर 61.875 प्रतिशत से घटकर 50 प्रतिशत हो गई. 18,000 रुपये से कम कमाने वाले लोगों को टैक्स स्लैब से बाहर रखा गया. 18,001 रुपये से 25,000 रुपये के स्लैब पर 25 प्रतिशत आयकर लगाया जाना तय किया गया.
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इसी तरह 25,001 रुपये से 50,000 रुपये के स्लैब के लिए आयकर 30 प्रतिशत तय किया गया, 50,001 रुपये से 1 लाख रुपये तक आयकर 40 प्रतिशत निर्धारित किया गया और 1 लाख रुपये से ऊपर की आय पर 50 प्रतिशत टैक्स लगाया गया था.
1992-93: मनमोहन सिंह ने टैक्स स्लैब संशोधन पेश किया
भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा तैयार किया गया टैक्स ढांचा काफी हद तक अभी चला चला आ रहा है. मौजूदा कर ढांचे को उन्होंने ही तैयार किया था. वह टैक्स स्लैब को तीन तक कम करने में सफल रहे, जो अब तक का सबसे कम है. तीन स्लैब इस प्रकार थे- पहला स्लैब, 30,000 रुपये से 50,000 रुपये की आय के लिए 20 प्रतिशत टैक्स दर पर निर्धारित की गई थी, दूसरा और मध्य स्लैब 50,000 रुपये और 1 लाख रुपये के लिए 30 प्रतिशत और तीसरा, 1 लाख रुपये से अधिक कमाने वालों के लिए 40 प्रतिशत की टैक्स दर पर तय की गई थी.
1994-95
मनमोहन सिंह ने 1994-95 में एक बार फिर तीन टैक्स स्लैब के लिए आय सीमा में संशोधन किया. 20 प्रतिशत के पहले टैक्स स्लैब में आय सीमा को संशोधित करके 35,000 से 60,000 रुपये कर दिया गया. 30 प्रतिशत वाले दूसरे स्लैब को 60,000 से 1.2 लाख रुपये रखा गया और 40 प्रतिशत की टैक्स दर वाला तीसरा स्लैब 1.20 लाख रुपये से अधिक आय वालों के लिए रखा गया.
1997-98 : पी. चिदंबरम का 'ड्रीम बजट'
1997-98 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम का 'ड्रीम बजट' आया. 10 प्रतिशत का पहला टैक्स स्लैब 40,000 से 60,000 रुपये की आय सीमा पर लागू किया गया था. 60,000 से 1.50 लाख रुपये के बीच की आय पर 20 प्रतिशत टैक्स लगाया गया, जबकि 1.50 लाख रुपये से ऊपर की आय पर 30 प्रतिशत टैक्स लगाया गया. इसके अलावा, सभी वेतनभोगी करदाताओं के लिए मानक कटौती सीमा को बढ़ाकर 20,000 रुपये कर दिया गया.
2005-06
10 साल के लंबे अंतराल के बाद पी. चिदंबरम ने टैक्स स्लैब में कुछ बड़े बदलावों की घोषणा की. बजट चौंकाने वाला था क्योंकि 1 लाख रुपये तक की आय वालों को टैक्स से बाहर रखा गया. 1 लाख रुपये से 1.5 लाख रुपये तक की आय वालों पर 10 प्रतिशत टैक्स, 1.5 लाख रुपये से 2.5 लाख रुपये तक की आय वालों पर 20 प्रतिशत टैक्स और 2.5 लाख रुपये से अधिक की आय वालों को 30 प्रतिशत टैक्स लगाया गया.
2010-11
पांच साल बाद तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी अलग विचार लेकर आए और आय स्लैब में बदलाव किया. उन्होंने 1.6 लाख रुपये तक की आय वालों को टैक्स से बाहर रखा. 1.6 लाख रुपये से 5 लाख रुपये के बीच की आय पर 10 प्रतिशत, 5 लाख रुपये से 8 लाख रुपये के बीच की आय पर 20 प्रतिशत और 8 लाख रुपये से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत टैक्स निर्धारित किया गया.
2012-13
तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के दौरान सामान्य श्रेणी के व्यक्तिगत करदाताओं के लिए छूट की सीमा 1.8 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दी. उन्होंने टैक्स स्लैब में भी थोड़ा बदलाव किया और घोषणा की कि जिनकी सालाना कमाई 2 लाख रुपये तक है, उन्हें टैक्स नहीं देना होगा. 2 लाख से 5 लाख रुपये तक की आय वालों को 10 प्रतिशत टैक्स देना होगा, जबकि 5 लाख से 10 लाख रुपये तक की आय वालों को 20 प्रतिशत टैक्स देना होगा और अंतिम स्लैब 10 लाख रुपये से अधिक की आय वालों के लिए 30 प्रतिशत टैक्स देना होगा.
2014-15
मोदी सरकार ने जब 2015 के लिए वित्त विधेयक पारित हुआ, तो बजट से संपत्ति कर समाप्त कर दिया गया, जो कि आकलन वर्ष (एवाई) 2016-17 से प्रभावी रूप से किया गया था. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संपत्ति कर की जगह 1 करोड़ रुपये से अधिक टैक्स योग्य आय वाले सुपर-रिच पर 2 प्रतिशत का अधिभार लगाया. करदाताओं को एवाई 2016-17 से संपत्ति कर रिटर्न दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है.
2017-18
इस दौरान अरुण जेटली ने 2.5 लाख से 5 लाख रुपये तक की आय वाले व्यक्तिगत करदाताओं के लिए कराधान की मौजूदा दर को 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया. इसके अलावा, आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 87A के तहत मौजूदा छूट (जो 5 लाख रुपये तक की आय वाले लोगों को दी गई थी) को 2.5 लाख रुपये से 3.5 लाख रुपये के बीच आय वाले करदाताओं के लिए 5,000 रुपये से घटाकर 2,500 रुपये कर दिया गया है.
2018-19
वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट में आयकर की सीमा को मौजूदा 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया. साथ ही, 6.5 लाख रुपये की सकल वार्षिक आय को टैक्स से छूट दी गई है, अगर करदाता भविष्य निधि में निवेश करता है और इक्विटी का विकल्प चुनता है.
2019-20
वित्त वर्ष 2019-20 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आयकर स्लैब में संशोधन किया. उन्होंने घोषणा की कि 5 लाख रुपये से कम आय वाले करदाता टैक्स से बाहर रहेंगे और उन्हें 12,500 रुपये की टैक्स छूट मिलेगी. हालांकि, टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया.
2020-21
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020 के बजट में नई कर व्यवस्था की घोषणा की. उन्होंने कहा कि करदाता अब पुरानी और नई कर व्यवस्था के बीच चयन कर सकते हैं.
2024-25
निर्मला सीतारमण ने 2024 के बजट में मानक कटौती बढ़ाई और नए टैक्स स्लैब पेश किए. 23 जुलाई, 2024 को अपने बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आयकर की मानक कटौती सीमा को 50,000 रुपये से बढ़ाकर 75,000 रुपये कर दिया. नई कर व्यवस्था के करदाताओं के लिए सीमा में वृद्धि की गई. पुरानी कर व्यवस्था के करदाताओं के लिए कोई बदलाव नहीं किया गया. उन्होंने नई कर व्यवस्था के तहत नए टैक्स स्लैब भी पेश किए.
नई कर व्यवस्था में बदलाव इस प्रकार हैं-
- 3 लाख रुपये तक की सालाना आय पर कोई टैक्स नहीं
- 3 लाख से 7 लाख रुपये तक की आय पर 5 प्रतिशत टैक्स
- 7 लाख से 10 लाख रुपये तक की आय पर 10 प्रतिशत टैक्स
- 10 लाख से 12 लाख रुपये तक की आय पर 15 प्रतिशत टैक्स
- 12 लाख से 15 लाख रुपये तक की आय पर 20 प्रतिशत टैक्स
- 15 लाख रुपये से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत टैक्स
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