हैदराबाद :कुष्ठ रोग के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर कर इसे जड़ से समाप्त किया जा सकता है. इस बारे में व्यापक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल विश्व कुष्ठ रोग दिवस मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार कुष्ठ रोग मानवता के लिए ज्ञात सबसे पुरानी बीमारियों में से एक है. अनुमान के मुताबिक यह रोग कम से कम 4000 वर्ष पुराना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य 2030 तक दुनिया से इसे समाप्त करना है. वहीं भारत सरकार का लक्ष्य तीन साल पहले 2027 तक कुष्ठ रोग मुक्त भारत तैयार करना है.
पूरी दुनिया में विश्व कुष्ठ रोग दिवस जनवरी के अंतिम रविवार को मनाया जाता है. इस साल यह आयोजन 28 जनवरी को होगा. भारत में यह दिवस 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्य तिथि के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर विभिन्न स्तरों पर स्कूल-कॉलेजों के छात्रों के अलाव विभिन्न संगठनों की ओर से जागरूकता रैली, पेंटिंग प्रतियोगिता सहित कई आयोजन किये जाते हैं.
विश्व कुष्ठ रोग दिवस 2024 के लिए थीम का विषय- कुष्ठ रोग को हराओ तय किया गया है. इस विषय के निर्धारण में 2 उद्देश्य पूरे होते हैं. पहला कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक को समाप्त करना. दूसरा प्रभावित लोगों के सम्मान को बढ़ावा देना. बता दें कि बीट लेप्रोसी इस बीमारी को खत्म करने के लिए चिकित्सा सुविधाओं के साथ-साथ इससे जुड़े सामाजिक-मनोवैज्ञानिक पहलुओं से जुड़ा है. थीम हमें यह संदेश देता है कि आज के समय कुष्ठ रोग एक कलंक नहीं है. साथ ही यह करुणा व सम्मान प्रदर्शित करने का समय है.
कोविड से पहले हर साल 2 लाख लोगों में कुष्ठ के मरीजों की पहचान होती थी. वहीं महामारी के बाद कुष्ठ रोग कार्यक्रमों में व्यावधान के कारण इसकी संख्या में 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. खासकर दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका एशिया में लाखों लोग कुष्ठ रोग के कारण दिव्यांगता में जीवन गुजार रहे हैं.