पलामू:उत्तर प्रदेश के बहराइच इलाके में भेड़ियों द्वारा इंसानों पर हमला करने की कई खबरें सामने आई हैं. पूरे भारत में बचे भेड़ियों की संख्या बाघों से भी कम है. बहराइच की घटना को लेकर भेड़ियों को लेकर कई बातें सामने आ रही हैं. बहराइच की घटना देश की पहली ऐसी घटना है, जब इंसानों पर भेड़ियों ने लगातार हमला किया है. देश में भेड़ियों के लिए एकमात्र संरक्षित क्षेत्र झारखंड का लातेहार का महुआडांड़ वुल्फ सेंचुरी है.
यह वुल्फ सेंचुरी 63 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. महुआडांड़ इलाके में बहराइच जैसी घटना पहले कभी नहीं हुई है. ऐसे में ईटीवी भारत ने वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव से भेड़ियों के हमले समेत कई बिंदुओं पर बात की है. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव 1970 से वन्यजीव संरक्षण अभियान से जुड़े हैं.
बहराइच में भेड़ियों के प्रवास को किया गया प्रभावित
प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव कहते हैं कि बहराइच इलाका हिमालय की तराई में है. पूरे इलाके में गन्ने की खेती होती है. गन्ने की खेती की वजह से भेड़ियों का प्रवास प्रभावित हुआ है. भेड़िये उस इलाके में खरगोश और बड़े चूहे खाते हैं. लेकिन अब किसान गन्ने की खेती में कीटनाशक का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे खरगोश और चूहे नहीं मिल रहे हैं. झुंड की रखवाली के लिए किसानों ने कुत्ते भी पाल रखे हैं, जिससे भेड़ियों के झुंड को नुकसान हो रहा है. वे बताते हैं कि इसके अलावा स्थानीय ग्रामीण भेड़ियों के प्रवास को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं.
बदले की भावना से हमला कर रहे हैं भेड़िये
प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव कहते हैं कि भेड़ियों का प्रवास प्रभावित होने से वे बदले की भावना से काम कर रहे हैं. इस संघर्ष में भेड़ियों को ही नुकसान उठाना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि अगर भेड़ियों का प्रवास प्रभावित नहीं किया जाता है तो वे किसी इंसान पर हमला नहीं करेंगे. प्रोफेसर कहते हैं कि झारखंड के महुआडांड़ भेड़िया अभ्यारण्य में स्थिति अलग है. यहां भेड़ियों का प्रवास काफी बेहतर और सुरक्षित है. भेड़िये को यहां सुरक्षा मिल रही है और भोजन भी मिल रहा है.
झुंड के होते हैं नियम