पटना : होली रंगों और खुशियों का त्योहार है. यह फाल्गुन महीने के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. होली में जब भांग का रंग चढ़ता है तब होली का खुमार और बढ़ता है. होली और भांग का रिश्ता भारतीय संस्कृति में सदियों पुराना है. भांग खाने के पीछे लोग अलग-अलग तथ्य बताते हैं पर हम आपको होली के मौके पर भांग खाने और पीने के पीछे कि दिलचस्प कहानी बता रहे है.
'भांग के बिना होली, ना बा-बा ना' :रंगों के इस त्यौहार पर भांग का इस्तेमाल प्राचीन काल से होता आ रहा है. भांग को होली का एक अभिन्न अंग माना जा रहा है. बिना भांग के होली रंग मानो फिका है. हालांकि एक्सपर्ट की मानें तो कम मात्रा में इसका सेवन ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाता है, लेकिन ज्यादा पीने से शरीर पर बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है.
आखिर कैसे बनता है भांग? : भांग को बनाने के लिए इसके पौधे की पत्तियों और फूल का इस्तेमाल किया जाता है. पत्तियों और फूलों को पीसकर इसका गाढ़ा पेस्ट तैयार होता है. जिसमें दूध, चीनी और काजू-बादाम मिलाकर भांग की ठंडई बनती है. आयुर्वैदाचार्य की माने तो भांग में कई औषधीय गुन होते हैं. भांग पीने के बाद शरीर और मन शांत रहता है, बशर्ते इसका सेवन कम मात्रा में करें, जबकि अधिक मात्रा में भांग नशे का रूप धारण कर लेती है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट? : आखिर ऐसा क्या होता है भांग लोगों को बेफिक्र बना देता है. भांग का सेवन करने के बाद लोग हंस-हंस कर लोटपोट हो जाते हैं. जाने माने फिजिशियन डॉक्टर दिवाकर तेजस्वी की मानें तो कम मात्रा में जो लोग भांग का सेवन करते हैं उनके लिए होली हैप्पी होगी, लेकिन ज्यादा भांग का सेवन जानलेवा हो सकता है. ज्यादा भांग खाने और पीने से सोचने समझने की क्षमता कम हो जाती है. ब्रेन पर इसका बुरा असर पड़ता है. बेचैनी, ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक का खतरा, सांस और कई तरह की समस्या होने लगती है.
क्या कहते हैं आर्युवेदाचार्य? : आयुर्वेद के जाने-माने चिकित्सक रामजी प्रसाद का कहना है ज्यादा भांग खाने और पीने के बाद दिमाग काम करना बंद कर देता है. इंसान के सोचने समझने की शक्ति कम हो जाती है. इसलिए आयुर्वेद में जड़ी बूटी के रूप में भांग का उपयोग किया जाता है. लेकिन भांग प्रतिदिन खाया जाए, सेवन किया जाए तो यह हर व्यक्ति के लिए हानिकारक है.
''भांग खाने और पीने के बाद आप खुश होने लगते है, इसके पीछे डोपामाइन हॉर्मोन काम करने लगता है. भांग की अधिक मात्रा शरीर में पहुंचते ही यह हॉर्मोन रिलीज होना शुरू होता है. यह मूड को नियंत्रित करना शुरू कर देता है, इसे सामान्य भाषा में हैप्पी हार्मोन भी कहते हैं.'' - रामजी प्रसाद, चिकित्सक, आयुर्वेद