भुवनेश्वर/पुरी: अद्भुत है ओडिशा का यह गांव. यहां आते ही आपके अंदर एक अजीब शक्ति का अहसास होता है. इस गांव का हरेक वासी एक कलाकार है और प्रत्येक घर के बाहर वॉल पेंटिंग मिल जाएगी.
विभिन्न पैटर्न और प्रकार के शिल्प के लिए मशहूर यह गांव पुरी से 12 किलोमीटर और ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 50 किमी दूर है. यहां, हर घर वॉल पेंटिंग से सजा हुआ है. यहां का हर निवासी एक आर्टिस्ट है जो हजार साल से भी ज्यादा पुरानी विरासत को आगे बढ़ा रहा है.
जब ईटीवी भारत के रिपोर्टर ने यहां का दौरा किया, वह भी अंचभित रह गए. वह कहते हैं, "सूरज की किरणें जब आसमान में दिखना शुरू हुईं, उस समय दूर-दूर से मंदिरों की घंटियों की आवाज गूंज रही थी. महिलाएं तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाती नजर आईं, जबकि पुरुष अपने दैनिक कामों में व्यस्त थे और ताड़ के पत्तों, कपड़ों, लकड़ी और धातु के पदार्थों पर अपनी रचनात्मकता को आकार देने के लिए ब्रश साफ कर रहे थे."
रिपोर्टर ने कहा, "लकड़ी के वूडन ऐसल और पैलेट के साथ चुपचाप बैठे आर्टिस्ट भगबन स्वैन ताड़ के पत्ते का एक टुकड़ा पकड़े हुए थे, मानो वे अपनी रचना पर विचार कर रहे हों. धीरे-धीरे अपने विचार को पत्ते पर ट्रांसफर करते हुए, उन्होंने राधा और कृष्ण को आसानी से उकेरने के लिए अपने औजारों को चलाना शुरू कर दिया. जैसे-जैसे उनके हाथ चलते गए, वैसे-वैसे पत्ता कला के एक टुकड़े के रूप में पुनर्जन्म ले रहा था - और बाकी दुनिया के लिए, एक 'पट्टचित्र' कृति बन रही थी."
गांव में बने घरेलू सजावट के सामान (ETV Bharat) गांव के एक वरिष्ठ व्यक्ति स्वैन अपने शिल्प में डूबे हुए कहते हैं, "ओडिशा की पारंपरिक कला, पट्टचित्र, मुख्य रूप से एक खास कलफदार कपड़े (जिसे पट्टा के रूप में जाना जाता है) और ताड़ के पत्तों पर स्क्रॉल में बनाई जाती है. ये जटिल पेंटिंग अक्सर पौराणिक कहानियों को दर्शाती हैं, जो मुख्य रूप से भगवान जगन्नाथ, राधा और कृष्ण के इर्द-गिर्द केंद्रित होती हैं."
वह कहते हैं कि यह सिर्फ कला नहीं है. यह एक आध्यात्मिक अभिव्यक्ति है. हम पत्थरों, पत्तियों और फूलों से प्राप्त प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते हैं. साथ ही यह बी सुनिश्चित करते हैं कि हमारी क्राफ्ट इको-फ्रेंडली और प्रामाणिक बना रहे." भारत सरकार ने साल 2000 में इस गांव को शिल्पीग्राम का दर्जा दिया था. 18 जनवरी को सिंगापुर के राष्ट्रपति थर्मन षणमुगरत्नम ने गांव का दौरा किया और अपने साथ रामायण के दृश्यों को दर्शाने वाली एक पेंटिंग भी ले गए थे.
पट्टा पेंटिंग (ETV Bharat) गांव के लोगों का कहना है कि भित्ति चित्रों का इतिहास एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है. 12वीं शताब्दी से पहले कलाकार ताड़ के पत्तों, महलों, मंदिरों, मठों की दीवारों आदि पर चित्रकारी करते थे. तब से यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. इस कला के माध्यम से वैष्णव चित्रकला के साथ-साथ भागवत, रामायण, जगन्नाथ संस्कृति, शैव, शाक्त आदि की कहानियों को दर्शाया जाता है.
सिंगापुर के राष्ट्रपति थर्मन शानमुगरत्नम ने गांव का दौरा किया (ETV Bharat) रघुराजपुर ग्राम समिति केसचिव अभिराम दासने कहा कि चित्रों की कीमतें उनके आकार और बेहतरीन शिल्प कौशल के आधार पर अलग-अलग होती हैं. आकार और जटिलता के आधार पर एक पेंटिंग की कीमत 1,500 रुपये से लेकर 4 लाख रुपये तक होती है. ट्रैवल एंड टूरिज्म मैनेजमेंट में पीजी डिग्री रखने वाले दास कहते हैं, "एक अच्छी पेंटिंग को पूरा होने में तीन महीने तक लग सकते हैं."
हर दिन पर्यटकों से भरा रहने वाला रघुराजपुर गांव में 160 परिवार रहते हैं और इसमें 875 कलाकार हैं. स्वैन कहते हैं, "किसी भी परिवार का कोई भी व्यक्ति कला के बारे में न जानने या इसे बनाने के बारे में अज्ञानता का दिखावा नहीं करता." ऐसे समय में जब देश भर में कई युवा हरियाली वाले चरागाहों की तलाश में अपने पारंपरिक तरीके को पीछे छोड़ रहे हैं, यहां उच्च शिक्षित लोग भी ब्रश और चित्रफलक (Easel) थामने के लिए आते हैं.
दास कहते हैं, "मैंने नौकरी नहीं की, बल्कि उद्यमिता के बारे में सोचा. मैंने अपनी कला के लिए ऑनलाइन व्यापार करने का फैसला किया. मैं इस कारोबार से जुड़ा रहा हूं और आने वाले दिनों में इसे और बढ़ावा दूंगा." सरकार के प्रचार-प्रसार के प्रयासों के बावजूद अनुभवी कलाकारों को लगता है कि अब समय आ गया है कि युवा पीढ़ी को कला को जारी रखने के लिए कुछ प्रोत्साहन दिया जाए.
ताड़ के पत्ते पर पेंटिंग (ETV Bharat) दास कहते हैं, "इससे उनका मनोबल बढ़ेगा और वे अपने पूर्वजों के काम को जारी रखेंगे. चूंकि यह पीढ़ी शिक्षित है, इसलिए वे कला को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकेंगे." गांव में मास्क और ताड़ के पत्तों पर नक्काशी सहित कई सजावटी सामान भी बनाए जाते हैं. ऑनलाइन बिक्री में वृद्धि और सरकारी मेलों में भागीदारी के जरिए कई परिवार अब हर महीने 10,000 से 30,000 रुपये तक कमा रहे हैं.
जब रघुराजपुर कैनवास में बदल गया और उसके लोग उस पर ओडिशा की कहानियां उकेरने लगे (ETV Bharat) पर्यटन विभाग पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए गांव और उसके शिल्प को कई तरह से बढ़ावा दे रहा है. कलाकृतियों की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए आसपास के इलाकों में कई तरह के कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं. हस्तशिल्प विभाग रघुराजपुर के कलाकारों को विभिन्न स्थानों पर आयोजित होने वाले मेलों में भी ले जा रहा है, ताकि उनकी कृतियों को बड़े मंच पर पेश किया जा सके. यहां तक कि राज्य हस्तशिल्प विभाग भी जरूरत के हिसाब से कलाकारों की आर्थिक मदद के लिए बैंकों से रियायती कर्ज भी उपलब्ध करा रहा है.
जब रघुराजपुर कैनवास में बदल गया और उसके लोग उस पर ओडिशा की कहानियां उकेरने लगे (ETV Bharat) कलाकारों का प्रयास और गांव की प्रमुखता महिलाओं को शामिल किए बिना अधूरी रहेगी, जो पुरुषों के बराबर ही योगदान देती हैं. महिला कलाकार सखी स्वैन कहती हैं, "हम महिलाओं ने पट्टचित्र के जरिए अपनी विरासत को संजोया है. हम पेंट की हुई केतली, पेन स्टैंड और लकड़ी की नक्काशी जैसी घरेलू सजावट की वस्तुएं भी बनाती हैं. ये स्थानीय और ऑनलाइन दोनों ही तरह खूब बिकती हैं. पर्यटक इन्हें अपने साथ ले जाते हैं, क्योंकि ये गिफ्ट करने के लिए अच्छे होते हैं."
अपनी कला को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं ने गृहलक्ष्मी जैसे स्वयं सहायता समूह बनाए हैं, जिन्हें सरकार से 10 लाख रुपये की वित्तीय सहायता मिली है. हालांकि, सखी का कहना है कि कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जो उन्हें और उनकी कला को प्रभावित करते हैं. "हमारे गांव में पीने के पानी की कमी के कारण, हमें दूर जाकर पानी इकट्ठा करना पड़ता है. नतीजतन, हमारा काम प्रभावित होता है और समय बर्बाद होता है. अन्यथा हमारे प्रोडक्ट्स की डिमांड ज्यादा है और हम और बेहतर कर सकते हैं."
पेंटेड केतली (ETV Bharat) वह जोर देकर कहती हैं कि शिल्पीग्राम के रूप में अपनी पहचान के बावजूद रघुराजपुर को बुनियादी ढांचे की कमी जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है, जिसमें उचित सड़कें और पीने के पानी की सुविधा शामिल है. पर्यटकों को अक्सर गांव की ओर जाने वाली संकरी तटबंध वाली सड़क पर चलना पड़ता है. एक ग्रामीण ने कहा, "बेहतर सड़कें और साफ पानी हमारे जिदंगी को आसान बना देगा और पर्यटकों का अनुभव भी बेहतर होगा."
रघुराजपुर गांव का एंट्री गेट (ETV Bharat) हालांकि, कला के प्रति गहरी नजर रखने वाले विजिटर्स के लिए रघुराजपुर एक स्वर्ग जैसी जगह है. मुंबई की पर्यटक तन्वी बोरी कहती हैं, "यह गांव जादुई है, कला का खजाना है. रंगीन भित्ति चित्र, रंग-बिरंगे घर और हाथ से बनी वस्तुएं इसे बेहद खास बनाती हैं." एक अन्य विजिटर ने कहा, "हम भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पुरी आए थे, लेकिन रघुराजपुर को देखकर हैरान रह गए. यहां की शिल्पकला ऐसी है, जिसे हमने पहले कभी नहीं देखा."
अपनी कला और कलाकारों के लिए मशहूर इस गांव ने ओडिसी डांस के गुरु केलुचरण महापात्रा, गोटीपुआ नृत्य के उस्ताद गुरु मगुनी चरण दास और प्रसिद्ध मर्दल वादक और केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेता बनमाली महाराणा को भी जन्म दिया है.
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