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कम खर्च में ऐसे करें बाबा केदार के साथ इन ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा, पढ़ें पांच दिन के सफर का पूरा ब्यौरा - Kedarnath Yatra 2024 - KEDARNATH YATRA 2024

Kedarnath Dham Yatra 2024 बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालु लालायित रहते हैं, छह महीने बाबा के मंदिर के कपाट खुलने का इंतजार करते हैं. आज हम आपको केदारनाथ धाम के साथ ही ऐसे डेस्टिनेशनों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां आप आसानी से पहुंच सकते हैं. साथ ही कम खर्च में यादगार पलों को सहेज सकते हैं.

Kedarnath Temple Yatra
बाबा केदारनाथ (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 7, 2024, 4:24 PM IST

Updated : May 24, 2024, 5:29 PM IST

देहरादून (उत्तराखंड):उत्तराखंड की चारधाम यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखने को मिलता है. लाखों श्रद्धालु ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाने में लग जाते हैं. चारधाम यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं में वैसे तो चारों धामों में आने का उत्साह रहता है. लेकिन सबसे अधिक श्रद्धालुओं में केदारनाथ जाने की इच्छा रहती है. साल 2013 की आपदा के बाद से केदारनाथ में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. 10 तारीख को बाबा केदार के कपाट खुलने जा रहे हैं. अगर आप भी केदारनाथ धाम में दर्शन करने का मन बना रहे हैं तो यह रिपोर्ट आपको काफी हद तक आपके सफर में सहायता होगी. हम आपको इस बताएंगे कि मंदिर से जुड़ी पूरी जानकारी और अन्य जगह कि वो बातें जो शायद आपको नहीं पता होंगी.

जानिए क्या है मंदिर की मान्यता:भगवान केदारनाथ धाम में साल के 12 महीने बेहद ठंडा मौसम रहता है. 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा केदारनाथ का धाम साल में लगभग 6 महीने बर्फ से ढका रहता है. इस धाम की चढ़ाई और ऊंचाई का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह समुद्र तल से लगभग 3585 मीटर की ऊंचाई पर है. भगवान केदारनाथ के मंदिर के पास से ही मां अलकनंदा नदी निकलती है. मान्यता के अनुसार महाभारत के समय में पांडवों को भगवान शिव ने इसी स्थान पर भैंस के रूप में दर्शन दिए थे. यहां पर भगवान शिव यानी भैंस की पिछले हिस्से की पूजा होती है, जबकि आगे के हिस्से की पूजा नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में होती है. इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था. मंदिर से जुड़ी और भी कई मान्यता हैं. साल 2013 की आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण कार्य जारी है. जो मंदिर को और भी खूबसूरत और आकर्षक बना रहे हैं.

घर से निकलने से पहले करें ये काम:मंदिर में आने से पहले आपको रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है. आप अपना रजिस्ट्रेशन registrationandtourisht.uk.gov.in की वेबसाइट पर करवा सकतें है. इसके साथ ही अगर आप फोन पर पूरी प्रक्रिया को पूरा करना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 8394833833 पर भी करवा सकतें है. तीसरा ऑप्शन आपके पास रहता है, टोल फ्री नंबर 0135 -1364 पर कॉल करके रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं. घर से निकलने से पहले ये सामान जरूर रख लें, जिसमें जरूरी दवाई पैदल चलने के लिए कंफर्टेबल जूते या चप्पल, बारिश के समय के लिए बरसाती या छाता कुछ ड्राई फ्रूट्स, बिस्कुट के पैकेट और ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े के साथ-साथ एक टॉर्च जरूर रखें.

ऐसे करें यात्रा का प्लान सुगम होगी यात्रा:केदारनाथ यात्रा के लिए आपको हरिद्वार या ऋषिकेश से अपना सफर पूरा करना होगा. देश के तमाम हिस्सों से ट्रेन और हवाई मार्ग से यहां तक पहुंचा जा सकता है. उत्तराखंड के गढ़वाल यानी चारधाम यात्रा का एकमात्र एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है. यहां देश के अन्य कई हिस्सों से रोजाना फ्लाइट आती हैं. इसके साथ ही रेलवे स्टेशन हरिद्वार तक भी ट्रेनों का आवागमन अच्छी खासी है. हरिद्वार पहुंचने के बाद आपको एक दिन हरिद्वार में रुकना पड़ेगा. यहां पर आप गंगा स्नान, आरती और लोकल बाजार घूमने के बाद अगले दिन हरिद्वार से अपना सफर तय कर सकते हैं. हरिद्वार से कार के माध्यम से भी केदारनाथ यात्रा पर जाया जाता है.

गौरीकुंड से सुबह करें यात्रा:हरिद्वार से लगभग 165 किलोमीटर का सफर आपको सड़क मार्ग से करना होगा, इसके लिए आपको लगभग 7 से 8 घंटे यात्रा के दौरान लग जाएंगे. हरिद्वार से अगर आप टैक्सी किराए पर लेते हैं तो वह आपको रोजाना चार हजार रुपए से पांच हजार रुपए में मिल जायेगी. हरिद्वार से निकलने के बाद आप चार दिनों के भीतर केदारनाथ यात्रा करके वापस हरिद्वार आ सकते हैं. हरिद्वार से एक ही दिन में आप रुद्रप्रयाग पहुंच जाएंगे. रुद्रप्रयाग में आप होटल धर्मशाला होमस्टे में रात्रि विश्राम कर सकते हैं. यात्रा के तीसरे दिन आपको गौरीकुंड तक कार के माध्यम से अगली सुबह के लिए निकलना होगा. आप कोशिश करें कि सुबह जल्दी से जल्दी गौरीकुंड के लिए निकल जाए, गौरीकुंड से सफर आपको पैदल ही तय करना होगा.

बाबा केदारनाथ धाम (Photo Uttarakhand Tourism Department)

धाम के लिए नापनी पड़ती है 17 किमी की दूरी:गौरीकुंड से केदारनाथ तक की दूरी लगभग 17 किलोमीटर की है. जिसको चढ़ने के लिए आपको लगभग 4 से 5 घंटे लग सकते हैं. केदारनाथ तक पहुंचाने के लिए आप या तो पैदल चल सकते हैं या फिर घोड़े खच्चर और डोली आपको मिल जाएगी. जो यात्रा के अनुसार आपसे पैसे लेंगे. अगर आप घोड़े खच्चर से आना-जाना करते हैं तो यह किराया आपका सात हजार रुपए से लेकर आठ हजार रुपए भी हो सकता है. केदारनाथ में पहुंचने के बाद आप इतने थक जाते हैं कि आपको वहां पर रात्रि विश्राम करना ही होगा. चौथे दिन आप केदारनाथ धाम में सुबह-सुबह दर्शन करके आसपास का अवलोकन कर सकते हैं और इसके बाद आप नीचे उतरने की तैयारी करें.

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम (Photo BKTC)

रुकने के लिए होटल और होमस्टे:नीचे उतरने में आपको तीन से चार घंटे लग सकते हैं. जिसके बाद आपको रुद्रप्रयाग में विश्राम करना पड़ेगा. वहीं केदारनाथ में रुकने के लिए आपको होटल धर्मशाला और होमस्टे मिल जाएंगे. यहां पर भी आपको लगभग ₹3000 से लेकर ₹5000 तक के रूम मिल जाएंगे. अगर आप केदारनाथ से थोड़ा दूर रहेंगे तो इनका किराया और भी सस्ता हो जाएगा. जैसा हमने आपको बताया कि केदारनाथ यात्रा करने के बाद आप एक बार फिर से रुद्रप्रयाग में रात्रि विश्राम करें और रात्रि विश्राम के अगले यानी पांचवें दिन आप हरिद्वार या ऋषिकेश के लिए सफर करें.

भगवान तुंगनाथ मंदिर (Photo Uttarakhand Tourism Department)

ये ऑप्शन भी है आपके पास:रुद्रप्रयाग पहुंचने के बाद आपके पास एक और ऑप्शन रहता है, लेकिन यह ऑप्शन तभी कारगर होगा, जब आप पहले से इस यात्रा की पूरी जानकारी लेकर आ रहे हैं. रुद्रप्रयाग के गौरीकुंड और फाटा से रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु हेली से केदारनाथ धाम पहुंचते हैं. हेली से आने और जाने का किराया लगभग 7000 रुपए है, लेकिन आसानी से हेली के टिकट आपको नहीं मिलेंगे, लिहाजा पहले ही इसकी बुकिंग करवा लें. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि हेलीकॉप्टर के नाम पर ऑनलाइन कई तरह के फ्रॉड भी हो रहे हैं. आपके इन बातों का ध्यान भी रखना होगा. टूरिज्म डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर ही आपको हेलीकॉप्टर बुकिंग की सुविधा भी मिलेगी. इसके साथ ही अन्य ट्रैवल एजेंट भी हेलीकॉप्टर की बुकिंग करते हैं. इसमें आपको अपना आधार कार्ड पहचान पत्र तो देना ही होगा, इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि यात्रा के दौरान आप अपने बैग में अधिक सामान ना रखें, उतना ही सामान लेकर जाएं जीतना जरूरी है.

त्रिजुगी नारायण मंदिर (Photo BKTC)

केदारनाथ के आसपास के इन ऐतिहासिक जगहों में जरूर घूमे:अगर आप एक या दो दिन और रुक कर अन्य जगहों को भी एक्सप्लोर करना चाहते हैं तो केदारनाथ के आसपास और भी बहुत खूबसूरत जगह हैं, जिनमें से एक है सोनप्रयाग है. जहां भगवान शिव और मां पार्वती का मंदिर है. जो केदारनाथ से लगभग 21 किलोमीटर दूर है. मान्यता के अनुसार यहां बहने वाले जल से स्नान या उसे ग्रहण करने से ही पुण्य मिलता है. इसी जगह पर मंदाकिनी और बसुकी नदी का मिलन भी होता है. यहां पर अच्छी खासी बर्फबारी होती है.

केदारनाथ हेली सेवा (Photo Uttarakhand Tourism Department)

केदार वैली में भैरव और रूद्र गुफा जरूर जाए:केदारनाथ के पास ही बाबा भैरवनाथ का मंदिर भी है, कई श्रद्धालु केदारनाथ के दर्शन करके ही नीचे उतर आते हैं. लेकिन अगर आप चाहते हैं कि बाबा भैरवनाथ के दर्शन भी किए जाएं तो यह मंदिर भी केदार वैली में ही स्थित है. मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि भगवान केदारनाथ के दर्शन करने के बाद भगवान भैरव के भी दर्शन करने अनिवार्य होते हैं. केदारनाथ मंदिर से इस मंदिर की दूरी मात्र 500 मीटर की है. लेकिन चढ़ाई चढ़कर आपके यहां तक पहुंचना पड़ता है. यहां पहुंचकर आप केदारनाथ मंदिर और आसपास के इलाके को निहार सकते हैं. केदारनाथ मंदिर के पास ही रुद्र गुफा भी है, यहां पर लोग ध्यान लगाने के लिए भी पहुंचते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसी रूद्र ग्रह गुफा में रुक कर रात्रि विश्राम कर चुके हैं.

इन मंदिरों का करें दर्शन, हर मनोरथ होंगे पूरे-

वासुकी ताल भी जा सकतें है आप:ऐसा ही दूसरा स्थान है वासुकी ताल. मान्यता के अनुसार रक्षाबंधन के दिन यहां पर सैकड़ों श्रद्धालु मात्र स्नान करने के लिए ही आते हैं. यहां एक बड़ी झील है और केदारनाथ से पैदल ट्रैक करने पर आप 8 किलोमीटर चढ़ाई चढ़कर यहां तक पहुंच सकते हैं. यहां पर भी बर्फबारी आपको मिल जाएगी.

ओंकारेश्वर मंदिर:रुद्रप्रयाग से 42 किमी दूर ओंकारेश्वर शिव का प्रसिद्ध मंदिर है. पौराणिक मान्यता के अनुसार मंदिर का निर्माण आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा कराया गया. यह मंदिर ऊषामठ परिसर में स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि बाणासुर की पुत्री ऊषा का विवाह इसी स्थान पर हुआ था. मंदिर के नीचे विवाह स्थल की बेदी अभी भी है. शीतकाल में भगवान केदारनाथ तथा द्वितीय केदारनाथ मध्यमहेश्वर यहीं विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं.

रुद्रनाथ मंदिर:अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के संगम स्थल पर प्राचीन रुद्रनाथ मंदिर स्थित है. पास ही देवी पार्वती की प्राचीन मूर्ति है. मंदिर परिसर में शिव और लक्ष्मी नारायण मंदिर भी हैं. स्कंद पुराण केदारखंड के अनुसार इस स्थान पर एक पाद होकर महर्षि नारद की तपस्या से प्रसन्न होकर रुद्र ने उन्हें दर्शन देकर संगीत के रागों का ज्ञान दिया था.

कोटेश्वर महादेव:रुद्रप्रयाग मुख्यालय से 2 किमी उत्तर-पूर्व की ओर अलकनंदा तट पर कोटेश्वर नामक अति प्राचीन मंदिर अवस्थित है. मंदिर के समीप प्राचीन गुफा है, जिसके भीतर स्फटिक के कई शिवलिंग विराजमान हैं. स्थानीय मान्यता के अनुसार विद्या प्राप्ति, ऐश्वर्य प्राप्ति, सन्तति की कामना लेकर शिवरात्रि में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. कोटि शिवलिंग की उत्पत्ति के कारण इस स्थान का नाम कोटेश्वर पड़ा.

कार्तिक स्वामी:रुद्रप्रयाग-दशज्यूला-कांडई मोटर मार्ग पर कनकचैरी से 3 किमी ऊंचाई पहाड़ी पर भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का भव्य मंदिर है. यहां पर कार्तिकेश्वर महादेव मंदिर, भैरोंनाथ, हनुमान तथा ऐड़ी आछरियों के मंदिर हैं. यहां से चैखंभा पर्वत श्रृंखला केदारनाथ, सुमेरू पर्वत श्रृंखला, नंदा देवी, गंगोत्री पर्वत श्रृंखला का दृश्य दिखाई देता है.

त्रियुगीनारायण मंदिर:सोनप्रयाग-त्रियुगीनारायण मोटर मार्ग पर त्रियुगीनारायण का मंदिर है. यह शैव और वैष्णव दोनों सम्प्रदायों की आस्था का केंद्र है. स्थानीय मान्यता के अनुसार सतयुग में यहां भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह हुआ था, तब से प्रज्वलित अग्नि (धूनी) अभी तक निरंतर जल रही है.

काली शिला मंदिर:रुद्रप्रयाग-कालीमठ मोटर मार्ग पर काली शिला मंदिर कालीमठ से लगभग छः किमी पूरब की ओर खड़ी चढ़ाई चढ़कर व्यूंखी गांव के ऊपर है. प्रचलित मान्यता के अनुसार इस शिला पर 64 यंत्र हैं, जिनमें शक्ति पुंज पैदा होते हैं. स्थानीय मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी से वरदान पाकर असुर रक्त बीज के विनाश के लिए मां दुर्गा ने इसी शिला पर महाकाली के रूप में अवतरित हुई थी और असुर रक्त बीज को मारी था.

इन प्राचीन मंदिरों का भी करें दर्शन:जिले में ही सबसे ऊंचा शिव मंदिर भगवान तुंगनाथ भी है. जहां हर साल श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन करने पहुंचते हैं. भगवान तुंगनाथ का मंदिर रुद्रप्रयाग से 80 किमी दूर है. इसके साथ ही जिले में ही पंच केदार मंदिर भी हैं. जिसमें रुद्रप्रयाग में भगवान तुंगनाथ, भगवान मद्महेश्वर, केदारनाथ मंदिर पड़ते हैं और कलपेश्वर व रुद्रनाथ मंदिर चमोली जिले में पड़ते हैं. वहीं आप मां काली के प्रसिद्ध कालीमठ मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं, जो जिले से करीब 55 किमी दूर स्थित है. मान्यता है कि मां काली ने यहीं से अवतरित होकर शुंभ-निशुंभ दानवों का वध किया था.

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Last Updated : May 24, 2024, 5:29 PM IST

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