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राज्य कर्मचारियों की कैशलेस इलाज योजना फिर सुर्खियों में, कर्मचारियों ने खोले बातचीत के दरवाजे - UTTARAKHAND EMPLOYEE HEALTH SCHEME

कैशलेस इलाज की विसंगतियों को लेकर कर्मचारी नाराजगी जाहिर करते आ रहे हैं. कई अस्पताल कर्मचारियों के इलाज करने से मना तक कर देते हैं.

Uttarakhand Secretariat
उत्तराखंड सचिवालय (Photo-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 15, 2025, 7:00 AM IST

देहरादून: राज्य कर्मचारियों के लिए कैशलेस इलाज की सुविधा से जुड़ी योजना पर विवाद पैदा हो रहा है. इस बार राज्य कर्मियों ने करोड़ों रुपए प्रीमियम के रूप में जमा होने के बावजूद ओपीडी कैशलेस ना करने को लेकर नाराजगी जताई है. इसके अलावा कर्मियों का कहना है कि राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण द्वारा समय पर अस्पतालों को भुगतान नहीं करने के चलते कई बार अस्पताल मरीजों का इलाज करने से भी मना कर रहे हैं.

उत्तराखंड सरकार ने राज्य स्वास्थ्य योजना को लागू किया गया है, इसके अंतर्गत राज्य सेवा के कर्मचारियों और पेंशनर्स को गोल्डन कार्ड के जरिए कैशलेस इलाज की सुविधा दी जाती है. हालांकि राज्य कर्मियों के लिए इस योजना को काफी लाभकारी माना गया है, लेकिन इसमें तमाम विसंगतियों की बात कहते हुए राज्यकर्मी समय-समय पर इस योजना को लेकर अपनी नाराजगी भी जाहिर करते रहे हैं.

कैशलेस इलाज की विसंगतियों से कर्मचारी परेशान (Video-ETV Bharat)

गोल्डन कार्ड के अंतर्गत राज्य कर्मचारी ओपीडी को भी कैशलेस करने की मांग करते रहे हैं और इसके लिए भी तमाम कर्मचारी सांडों की तरफ से प्रयास किए गए हैं. उधर राज्य कर्मचारियों के लिए अब बड़ी चिंता ऐसे अस्पताल बन गए हैं जो कई बार कर्मचारियों का इलाज करने से मना कर देते हैं. उत्तराखंड सचिवालय संघ के महासचिव राकेश जोशी कहते हैं कि यह बड़ी चिंता का विषय है कि प्रदेश में कई अस्पताल कर्मचारियों का इलाज करने से मना कर रहे हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण द्वारा इन अस्पतालों का समय से भुगतान नहीं किया जा रहा है.

ऐसे में इन कर्मचारियों की मांग है कि स्वास्थ्य प्राधिकरण इन अस्पतालों के साथ एक ऐसा अनुबंध करें, ताकि भुगतान नहीं होने के बावजूद भी एक या दो साल तक यह अस्पताल मरीजों का इलाज करते रहे. दरअसल राज्य कर्मचारियों को राज्य स्वास्थ्य योजना के तहत दी जा रही कैशलेस सुविधा में अब नई परेशानी खड़ी हो गई है. माना जा रहा है कि राज्य कर्मियों द्वारा जो प्रीमियम दिया जा रहा है, उससे कहीं ज्यादा का वित्तीय बोझ राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण पर आ रहा है. इस स्थिति में अब प्राधिकरण भी कर्मचारी और पेंशनर्स पर प्रीमियम की रकम बढ़ाने के पक्ष में है.

राज्य कर्मचारी अपने वेतनमान के हिसाब से राज्य स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत प्रीमियम देते हैं. राज्य में ढाई सौ रुपए प्रति माह से लेकर 450 रुपए प्रति माह, 650 रुपए प्रति माह और ₹1000 प्रति माह तक का प्रीमियम कर्मचारियों द्वारा दिया जा रहा है. कर्मचारियों ने दावा किया है कि सालाना राज्य कर्मियों और पेंशनर्स से राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण को करीब 169 करोड़ रुपए मिलता है. जबकि राज्य में योजना करीब 4 साल से चल रही है, इस लिहाज से राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण को अब तक प्रीमियम के रूप में 6 अरब से ज्यादा की रकम राज्य कर्मियों द्वारा दी जा चुकी है.

राज्य कर्मचारियों को इस योजना के तहत अनलिमिटेड कैशलेस इलाज की सुविधा मिलती है और कर्मचारी ओपीडी में होने वाले परामर्श और इलाज को भी कैशलेस किए जाने की मांग करते रहे हैं. उधर अब स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत से मिलकर गोल्डन कार्ड की विसंगतियों को दूर करने के प्रयास हो रहे हैं और साथ ही मरीज को जो स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पा रही है. उसे भी सुचारू करवाने के लिए कर्मचारी संघ प्रयास कर रहा है. उत्तराखंड में करीब 3 लाख 10 हजार कर्मचारी हैं, जो इस योजना से सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं.

पढ़ें-राज्यकर्मियों और पेंशनर्स का हेल्थ स्कीम पर मंथन, सरकार से कई बिंदुओं पर डिमांड करेगा संघ

देहरादून: राज्य कर्मचारियों के लिए कैशलेस इलाज की सुविधा से जुड़ी योजना पर विवाद पैदा हो रहा है. इस बार राज्य कर्मियों ने करोड़ों रुपए प्रीमियम के रूप में जमा होने के बावजूद ओपीडी कैशलेस ना करने को लेकर नाराजगी जताई है. इसके अलावा कर्मियों का कहना है कि राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण द्वारा समय पर अस्पतालों को भुगतान नहीं करने के चलते कई बार अस्पताल मरीजों का इलाज करने से भी मना कर रहे हैं.

उत्तराखंड सरकार ने राज्य स्वास्थ्य योजना को लागू किया गया है, इसके अंतर्गत राज्य सेवा के कर्मचारियों और पेंशनर्स को गोल्डन कार्ड के जरिए कैशलेस इलाज की सुविधा दी जाती है. हालांकि राज्य कर्मियों के लिए इस योजना को काफी लाभकारी माना गया है, लेकिन इसमें तमाम विसंगतियों की बात कहते हुए राज्यकर्मी समय-समय पर इस योजना को लेकर अपनी नाराजगी भी जाहिर करते रहे हैं.

कैशलेस इलाज की विसंगतियों से कर्मचारी परेशान (Video-ETV Bharat)

गोल्डन कार्ड के अंतर्गत राज्य कर्मचारी ओपीडी को भी कैशलेस करने की मांग करते रहे हैं और इसके लिए भी तमाम कर्मचारी सांडों की तरफ से प्रयास किए गए हैं. उधर राज्य कर्मचारियों के लिए अब बड़ी चिंता ऐसे अस्पताल बन गए हैं जो कई बार कर्मचारियों का इलाज करने से मना कर देते हैं. उत्तराखंड सचिवालय संघ के महासचिव राकेश जोशी कहते हैं कि यह बड़ी चिंता का विषय है कि प्रदेश में कई अस्पताल कर्मचारियों का इलाज करने से मना कर रहे हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण द्वारा इन अस्पतालों का समय से भुगतान नहीं किया जा रहा है.

ऐसे में इन कर्मचारियों की मांग है कि स्वास्थ्य प्राधिकरण इन अस्पतालों के साथ एक ऐसा अनुबंध करें, ताकि भुगतान नहीं होने के बावजूद भी एक या दो साल तक यह अस्पताल मरीजों का इलाज करते रहे. दरअसल राज्य कर्मचारियों को राज्य स्वास्थ्य योजना के तहत दी जा रही कैशलेस सुविधा में अब नई परेशानी खड़ी हो गई है. माना जा रहा है कि राज्य कर्मियों द्वारा जो प्रीमियम दिया जा रहा है, उससे कहीं ज्यादा का वित्तीय बोझ राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण पर आ रहा है. इस स्थिति में अब प्राधिकरण भी कर्मचारी और पेंशनर्स पर प्रीमियम की रकम बढ़ाने के पक्ष में है.

राज्य कर्मचारी अपने वेतनमान के हिसाब से राज्य स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत प्रीमियम देते हैं. राज्य में ढाई सौ रुपए प्रति माह से लेकर 450 रुपए प्रति माह, 650 रुपए प्रति माह और ₹1000 प्रति माह तक का प्रीमियम कर्मचारियों द्वारा दिया जा रहा है. कर्मचारियों ने दावा किया है कि सालाना राज्य कर्मियों और पेंशनर्स से राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण को करीब 169 करोड़ रुपए मिलता है. जबकि राज्य में योजना करीब 4 साल से चल रही है, इस लिहाज से राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण को अब तक प्रीमियम के रूप में 6 अरब से ज्यादा की रकम राज्य कर्मियों द्वारा दी जा चुकी है.

राज्य कर्मचारियों को इस योजना के तहत अनलिमिटेड कैशलेस इलाज की सुविधा मिलती है और कर्मचारी ओपीडी में होने वाले परामर्श और इलाज को भी कैशलेस किए जाने की मांग करते रहे हैं. उधर अब स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत से मिलकर गोल्डन कार्ड की विसंगतियों को दूर करने के प्रयास हो रहे हैं और साथ ही मरीज को जो स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पा रही है. उसे भी सुचारू करवाने के लिए कर्मचारी संघ प्रयास कर रहा है. उत्तराखंड में करीब 3 लाख 10 हजार कर्मचारी हैं, जो इस योजना से सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं.

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