लोहरदगा: जिला के सुदूरवर्ती ग्रामीण पहाड़ी इलाकों में अब भी आवागमन की सुविधा काफी मुश्किल है. लोहरदगा जिला के पेशरार प्रखंड के गांवों में लोगों को आवागमन को लेकर परेशानी का सामना करना पड़ता है. नक्सलवाद ने क्षेत्र को विकास के मामले में काफी पीछे छोड़ दिया है.
पेशरार प्रखंड का गठन वर्ष 2009 में लोहरदगा जिला के सेन्हा और किस्को प्रखंड से अलग कर बनाया गया था. इस प्रखंड में कुल 74 गांव हैं. यहां के लोगों को सालों भर परेशानी का सामना करना पड़ता है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 31 हजार 057 हजार की आबादी वाले इस प्रखंड में कई नदियों में पुल तक नहीं है. आदिवासी बहुल इस इलाके में लोग आज भी विकास से अछूते हैं. हालांकि लोहरदगा के उप विकास आयुक्त दिलीप प्रताप सिंह शेखावत कहते हैं कि पुल निर्माण सहित अन्य योजनाओं को लेकर वह समीक्षा करेंगे. जल्द ही पुल निर्माण को लेकर पहल की जाएगी.
चार साल से नहीं बना पुल
जिला के पेशरार प्रखंड के ओनेगढ़ा नदी में वर्ष 2020 में सवा दो करोड़ रुपये की लागत से पुल का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था. ऐसे समय में लगा था कि पेशरार प्रखंड के रोरद, तुईमु, हेसाग पंचायत को पेशरार प्रखंड मुख्यालय से जोड़ने को लेकर अब ग्रामीणों का सपना पूरा हो पाएगा. लेकिन नवंबर 2020 में भाकपा माओवादी नक्सलियों ने योजना स्थल पर धावा बोल कर कई वाहनों को फूंक डाला. इसके अलावा योजना के मुंशी की गोली मार कर हत्या कर दी. इसके बाद योजना बंद पड़ गयी.
इस पुल के बन जाने से ओनेगढ़ा, रोरद, तुईमु, हेसाग, गढ़कसमार, नीचे तुरियाडीह, नवाडीह सहित कई गांव के लोगों को आवागमन में सहयोग मिल पाता. प्रखंड के हेंहें नदी और दुंदरु नदी में पुल नहीं है. इससे हेंहें, चपाल, दुंदरु, हुंदी, सनई समेत गांव के लोगों को आवागमन में परेशानी होती है. हालत ऐसी है कि बरसात के दिनों में जब बारिश होती है तो नदी में बाढ़ आने की स्थिति में गांव टापू बन जाते हैं. विकास का दावा करने वाले नेताओं के लिए पेशरार प्रखंड की स्थिति आईना दिखाने वाली है.
ग्रामीण विकास से निराश