अगरतला: त्रिपुरा के गोमती जिले की रहने वाली 20 वर्षीय मधुरिमा दत्ता ने चुनौतियों से लड़ने के लिए दृढ़ संकल्प की मिसाल पेश की है. उनका संकल्प विपरीत परिस्थितियों के आगे डगमगाया नहीं और स्टेज 3 कैंसर को मात देने के साथ-साथ मेडिकल प्रवेश के लिए NEET परीक्षा में भी सफलता हासिल की. मधुरिमा की नीट में राष्ट्रीय स्तर पर रैंक 2,79,066 और राज्य स्तर पर रैंक 295 है.
2016 में, मधुरिमा जब महज 12 साल की थी और ब्रिलियंट स्टार स्कूल में कक्षा 6 की छात्रा थी, तब उसे नॉन-हॉजकिन लिंफोमा कैंसर का पता चला. रोग-निदान के दौरान वह एक कठिन संघर्ष के दौर से गुजरी, जिसने उनकी ताकत और उनके परिवार के अटूट समर्थन का परीक्षण किया.
उस कठिन दौर को याद करते हुए मधुरिमा की मां रत्ना दत्ता ने ईटीवी भारत को बताया, "यह एक अशांत समय था. हम इलाज के लिए मुंबई चले गए और पांच साल तक वहीं रहे. शुरू में, हमें उसकी स्थिति की गंभीरता का पूरी तरह से अंदाजा नहीं था. मेरी बड़ी बेटी हृतुरिमा अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए अपने पिता के साथ त्रिपुरा में ही रही, जबकि मैं मधुरिमा के साथ मुंबई में रही. शुरू में मेरा भाई हमारे साथ था, लेकिन आखिरकार मुझे अकेले ही सब कुछ सहना पड़ा."
मधुरिमा ने कीमोथेरेपी, रेडिएशन और बोन मैरो ट्रांसप्लांट सहित कई दौर के उपचार करवाए. मधुरिमा की बड़ी बहन हृतुरिमा बोन मैरो डोनर बनीं. इन प्रयासों के बावजूद, कैंसर कई बार फिर से उभर आया, जिसके लिए नए उपचार की जरूरत थी. टाटा मेमोरियल अस्पताल और जसलोक अस्पताल के डॉक्टरों ने एक अभूतपूर्व अमेरिकी दवा दी - जो भारत में किसी बच्चे को दी जाने वाली अपनी तरह की पहली दवा थी.