कैसा था नरेंद्रनाथ से स्वामी विवेकानंद बनने का सफर, एक नजर - SWAMI VIVEKANANDA DEATH ANNIVERSARY
Swami Vivekananda : 40 साल से भी कम समय तक जीवित रहने वाले स्वामी विवेकानंद ऐसे भारतीय हुए हैं, जिनकी पहचान पूरी एक निर्विवाद संत के रूप में है. भारत ही नहीं पूरी दुनिया में जाति-धर्म-संप्रदाय से आगे बढ़कर उनके विचारों का सम्मान करते हैं. पढ़ें पूरी खबर...
हैदराबादःपश्चिम बंगाल के कोलकाता स्थित संपन्न परिवार में 12 मार्च 1863 को जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ दत्त, जो आगे चलकर पूरी दुनिया में स्वामी विवकानंद के नाम से मशहूर हुए. 4 जुलाई 1902 को महज 39 साल 5 माह 21 दिन में स्वामी विवेकानंद ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. कोलकाता स्थित बेलूर मठ में उन्होंने अंतिंम सांसे ली. भारत ही नहीं पूरी दुनिया में उनके ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म, भाषण कला सहित अन्य अद्भूत प्रतिभाओं के धनी स्वामी विवेकानंद का आज भी पूरी दुनिया लोहा मानती है.
1883 में स्वामी विवेकानंद ने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता से बीए की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने विद्या सागर कॉलेज, कोलकाता से लॉ पूरी की. स्वामी विवेकानंद को पढ़ाई के अलावा, गीत-संगीत में भी काफी रूचि रखते थे. वे किताबें पढ़ने का काफी शौकीन थे. इसके अलावा वे सितार, हारमोनियम, पखावत, तबला सहित कई अन्य वाद यंत्र बेहतरीन तरीके से बजाते थे. उन्हें क्लासिकल संगीत, इंस्टुमेंटल और वोकल की अच्छी जानकारी थी. यही नहीं नौकायान, शतरंज, कुश्ती, लाठी भांजने (स्टीक फेंसिंग) में महारथ हासिल था.
एक साधु का जीवन 1885 के मध्य में गले के कैंसर से पीड़ित रामकृष्ण गंभीर रूप से बीमार पड़ गए. सितंबर 1885 में श्री रामकृष्ण को कलकत्ता के श्यामपुकुर में ले जाया गया और कुछ महीने बाद नरेंद्रनाथ ने कोसीपुर में एक किराए का विला लिया. यहां उन्होंने युवा लोगों का एक समूह बनाया जो श्री रामकृष्ण के उत्साही अनुयायी थे और साथ मिलकर उन्होंने अपने गुरु की समर्पित देखभाल की. 16 अगस्त 1886 को श्री रामकृष्ण ने अपना नश्वर शरीर त्याग दिया. श्री रामकृष्ण के निधन के बाद, नरेंद्रनाथ सहित उनके लगभग पंद्रह शिष्य उत्तरी कलकत्ता के बारानगर में एक जीर्ण-शीर्ण इमारत में एक साथ रहने लगे, जिसका नाम रामकृष्ण मठ था, जो रामकृष्ण का मठ था.
स्वामी विवेकानंद (Getty Images)
जीवन की भविष्यवाणी स्वामी विवेकानंद ने भविष्यवाणी की थी कि वे चालीस वर्ष की आयु तक जीवित नहीं रहेंगे. 4 जुलाई 1902 को वे बेलूर मठ में विद्यार्थियों को संस्कृत व्याकरण पढ़ाते हुए अपना दैनिक कार्य करने लगे. शाम को वे अपने कमरे में चले गए और लगभग 9 बजे ध्यान करते हुए उनकी मृत्यु हो गई. कहा जाता है कि उन्होंने महासमाधि ले ली थी. उनका अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था.
स्वामी विवेकानंद (Getty Images)
संन्यासी जीवन से पहले नरेंद्रनाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे
स्वामी विवेकानंद, जिन्हें उनके संन्यासी जीवन से पहले नरेंद्रनाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे.
उनके पिता विश्वनाथ दत्त जाने-माने सफल वकील थे, जिनकी विभिन्न विषयों में रुचि थी.
उनकी मां भुवनेश्वरी देवी गहरी भक्ति, मजबूत चरित्र और अन्य गुणों से संपन्न थीं.
बाल्य काल से ही नरेंद्र संगीत, जिमनास्टिक और पढ़ाई में अव्वल था.
जब तक उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक किया, तब तक उन्होंने विभिन्न विषयों, विशेष रूप से पश्चिमी दर्शन और इतिहास का व्यापक ज्ञान प्राप्त कर लिया था.
योगिक स्वभाव के साथ जन्मे, वे बचपन से ही ध्यान का अभ्यास करते थे और कुछ समय के लिए ब्रह्मो आंदोलन से भी जुड़े रहे.
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को राष्ट्र निर्माण के लिए कैसे प्रेरित किया स्वामी विवेकानंद ने वर्षों से लाखों युवाओं को प्रेरित किया है और उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए, कई लोग सामाजिक विकास कार्यक्रमों के माध्यम से मानवता की सेवा कर रहे हैं. उनका मानना था कि युवा किसी भी देश की नींव होते हैं और वे किसी भी राष्ट्र के लिए एक बड़ी संपत्ति होते हैं क्योंकि वे ऊर्जा, उत्साह और नवीन विचारों से भरे होते हैं. उन्होंने युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा में लगाने का आह्वान किया ताकि वे देश को प्रगति के पथ पर ले जा सकें. उन्होंने हमेशा युवाओं को देश की बेहतरी के लिए काम करने के लिए प्रोत्साहित किया. राष्ट्र निर्माण के लिए उन्होंने संगठित होने और विभिन्न पहल करने के लिए कहा.
उन्होंने भारतीय युवाओं से खुद को शिक्षित करने का आग्रह किया और इस बात पर जोर दिया कि सेवा उनके जीवन का केंद्र बिंदु होनी चाहिए. उन्होंने एक बार कहा था, 'मानव जाति की सेवा करना एक सौभाग्य की बात है, क्योंकि यह ईश्वर की पूजा है. ईश्वर यहां, इन सभी मानव आत्माओं में है. वह मनुष्य की आत्मा है.' कुछ अखिल भारतीय संगठन जो साथी मानवों के प्रति महान सेवा कर रहे हैं. उनमें स्वामी विवेकानंद युवा आंदोलन, स्वामी विवेकानंद मेडिकल मिशन, विवेकानंद युवा मंच, स्वामी विवेकानंद ग्रामीण विकास सोसाइटी और अन्य शामिल हैं.
विवेकानंद का प्रतिष्ठित शिकागो भाषण 11 सितंबर, 1893 को शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म पर प्रतिष्ठित भाषण दिया था. इस ऐतिहासिक भाषण ने पश्चिमी दुनिया में हिंदू धर्म और भारतीय आध्यात्मिकता का परिचय दिया. विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत प्रसिद्ध शब्दों 'अमेरिका की बहनों और भाइयों' से की, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और सार्वभौमिक भाईचारे और धार्मिक सहिष्णुता के उनके संदेश के लिए माहौल तैयार किया. यहां उनके प्रतिष्ठित भाषण की कुछ बेहतरीन पंक्तियां दी गई हैं.
'मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से जुड़ा हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाई हैं.'
'हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं बल्कि हम सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं.'
'मुझे पूरी उम्मीद है कि इस सम्मेलन के सम्मान में आज सुबह जो घंटी बजी है वह सभी कट्टरतावाद, तलवार या कलम से होने वाले सभी उत्पीड़न और एक ही लक्ष्य की ओर बढ़ने वाले व्यक्तियों के बीच सभी अमानवीय भावनाओं की मृत्यु की घंटी होगी.'
'ईसाई को हिंदू या बौद्ध नहीं बनना है, न ही हिंदू या बौद्ध को ईसाई बनना है. लेकिन प्रत्येक को दूसरों की भावना को आत्मसात करना चाहिए और फिर भी अपनी वैयक्तिकता को बनाए रखना चाहिए तथा अपने विकास के नियम के अनुसार बढ़ना चाहिए.'
'जिस प्रकार विभिन्न स्थानों से अपने स्रोत रखने वाली विभिन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिलाती हैं, उसी प्रकार हे प्रभु, मनुष्य विभिन्न प्रवृत्तियों के माध्यम से जो विभिन्न मार्ग अपनाता है, चाहे वे विभिन्न प्रतीत हों, टेढ़े या सीधे, सभी आप तक ले जाते हैं.
'आइए हम आदर्श का प्रचार करें, और अनावश्यक बातों पर झगड़ा न करें.'
इस भाषण का श्रोताओं पर गहरा प्रभाव पड़ा और स्वामी विवेकानंद को वैश्विक अंतरधार्मिक संवाद में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में स्थापित किया. सार्वभौमिकता, सहिष्णुता और हिंदू धर्म के आध्यात्मिक सार के उनके संदेश ने एक स्थायी छाप छोड़ी और आज भी दुनिया भर के लोगों को प्रेरित कर रही है.