10 साल में 147 कोचिंग स्टूडेंट्स की गई जान कोटा.कोचिंग नगरी कोटा मेडिकल और इंजीनियरिंग के शीर्ष संस्थानों में होने वाले सिलेक्शन के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. बीते कुछ सालों से यहां आने वाले बच्चों के बीच कंपटीशन भी काफी हद तक बढ़ा है. साथ ही बच्चों के अभिभावकों की एक्सपेक्टेशंस भी दिन-ब-दिन बढ़ रही है. इससे ज्यादातर बच्चों पर बेस्ट परफॉर्मेंस का दबाव रहता है, जो आगे चलकर तनाव में तब्दील हो रहा है. इन्हीं सभी कारणों से बीते एक दशक में स्टूडेंट्स के सुसाइड के मामले भी बढ़े हैं. पिछले 10 सालों की बात करे तो 2014 से अब तक 148 बच्चों ने आत्महत्या की है. हालांकि, इन आत्महत्याओं को रोकने के लिए कोचिंग संस्थानों, हॉस्टल और पीजी की मौजूदा व्यवस्थाओं में कई आमूलचूल बदलाव किए गए हैं. वहीं, राज्य सरकार के निर्देश के बाद अब जिला प्रशासन के साथ-साथ पुलिस भी काफी सख्त रुख अख्तियार किए हुए हैं. इस साल की बात करे तो अब तक कोटा शहर से पांच आत्महत्या के मामले सामने आए हैं. वहीं, 2014 में 14, 2015 में 23, 2016 में 17, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 8, 2020 में 4, 2021 में 4, 2022 में 20 और 2023 में 25 सुसाइड के मामले सामने आए थे. वहीं, मंगलवार को विज्ञान नगर थाना इलाके में एक और कोचिंग छात्र की आत्महत्या का मामला सामने आया है. छात्र एक निजी कोचिंग संस्थान में पढ़ाई कर रहा था. यूपी निवासी छात्र कोटा में मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी कर रहा था.
Coaching student suicide history in Kota तय होनी चाहिए सबकी जिम्मेदारी :कोटा शहर पुलिस अधीक्षक डॉ. अमृता दुहन ने बताया कि हॉस्टल या पीजी में होने वाले सुसाइड के बाद वो स्वयं वहां जाकर उनके संचालकों से कारण जानने का प्रयास कर रही हैं. साथ ही वो ये जानने की कोशिश कर रही है कि संचालक को अवसाद के बारे में पहले जानकारी थी या नहीं. इसके अलावा बच्चा जिस संस्थान में पड़ रहा है, वहां की फैकल्टी भी रिस्पोंसिबल है. उनसे भी हम पूछताछ कर रहे हैं और ये पता किया जा रहा है कि उन्होंने जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभाई थी या नहीं. वहीं, उन्होंने आगे कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हॉस्टल, पीजी संचालक और कोचिंग के जिम्मेदार फैकल्टियों की रिस्पोंसिबिलिटी तय की जाए.
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बच्चों के लिए बेहतर माहौल बनाना प्राथमिकता :डॉ. दुहन स्वयं कोचिंग एरिया में लगातार जाकर बच्चों से संवाद कर रही हैं. इसके अलावा कोचिंग संस्थानों और हॉस्टलों के आधार पर भी बच्चों से बात कर रही हैं. साथ ही बच्चों के बीच पुलिस की उपस्थिति को बढ़ाया जा रहा है, ताकि बच्चे किसी भी तरह की दुविधा होने पर समस्याओं को शेयर कर सकें. उन्हें किसी भी तरह की कोई हिचकिचाहट नहीं हो. उनका स्वयं का कहना है कि कई फोन बच्चों के उनके पास आने लगे हैं, जिनकी समस्याओं का निस्तारण भी किया जा रहा है. उनका मानना है कि प्रशासन और पुलिस दोनों की जॉइंट रिस्पोंसिबिलिटी कोचिंग के स्टूडेंट हैं. पुलिस और प्रशासन की तरफ से भी काफी कदम उठाए गए हैं और एक संयुक्त रूप से मैसेज गया है. बिल्कुल क्लियर है कि कोटा सिटी में कोचिंग पढ़ने आने वाले बच्चे हैं, उनके लिए अच्छा माहौल दिया जाए और ये सभी की जिम्मेदारी है.
कोचिंग छात्र बनकर रह रहे बदमाशों को भी कर रहे चिन्हित :एसपी डॉ. अमृता दुहन का कहना है कि कोटा सिटी में कोचिंग करने आने वाले बच्चे माता-पिता से काफी दूर रहते हैं. उनके ऊपर पढ़ाई का भी लगातार प्रेशर रहता है. तीसरा उनको कोई स्थानीय दिक्कत है तो उसकी वजह से तनाव में भी आ जाते हैं. तीन मुख्य कारण सुसाइड के सामने आए थे. इसमें स्थानीय तनाव के जो मुद्दे हैं, जिनमें पुलिस मदद कर सकती है. उस पर बड़े स्तर पर काम किया जा रहा है. कोचिंग स्टूडेंट्स को कोई परेशान कर रहा है या गलत आदत में डाल रहा है तो उसे पर रोकथाम लगाने के लिए हम पूरी तरह से प्रयासरत हैं. कोचिंग एरिया में लगातार नाकेबंदी कर रहे हैं. समाजकंटकों और गैर कानूनी काम करने वालों को चिन्हित किया जा रहा है. कोटा में रह रहे ऐसे लड़कों को चिन्हित किया जा रहा है, जो कि लंबे समय से यहां पर हैं. ये कोचिंग छात्रों से एक्सटॉर्शन करते हैं या गैंग बनाकर रह रहे हैं.
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सरकारी स्तर पर प्रशासन और पुलिस ने किए ये प्रयास
- कोटा की कोचिंग संस्थानों में साइकोलॉजी से लेकर स्टडी में सुधार के लिए भी काउंसलर रखे हुए हैं. इन काउंसलों की संख्या भी 200 से ज्यादा है. ये बच्चों को तनाव से उभारने और उनके पढ़ाई के शेड्यूल को दुरुस्त करने में मदद करते हैं.
- कोटा के कोचिंग संस्थानों में भी फीस रिफंड की पॉलिसी बनाई गई है और इसी तरह से हॉस्टल्स में भी विद्यार्थियों को सिक्योरिटी रिफंड के लिए पॉलिसी बनी है.
- जिला प्रशासन ने हाल ही में कोटा के सभी कोचिंग संस्थानों में कार्य स्टाफ के साथ-साथ हॉस्टलों में लगे गार्ड वार्डन और कुक से लेकर हेल्पर तक को गेट कीपर ट्रेनिंग करवाई गई है. कोटा एक ऐसा शहर बन गया है, जहां इस ट्रेनिंग को करने वाले लोगों की संख्या का रिकॉर्ड है. यह लोग अपनी ड्यूटी के साथ ही सुसाइड की टेंडेंसी या डिप्रेशन में गए बच्चों को तलाशने का काम भी करते हैं. इसमें कोटा की कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाली फैकल्टी भी शामिल है.
- नए जिला कलेक्टर रविंद्र गोस्वामी ने कोटा में आते ही कोचिंग के बच्चों को तनाव से दूर रखने के लिए सतत संपर्क बनाना भी शुरू किया है. उन्होंने कोटा में डिनर विद कलेक्टर अभियान छेड़ दिया है.
- कोचिंग की छात्राओं में तनाव जानने के लिए महिला स्क्वाड गठित कर दी गई है. यह महिला स्क्वाड लगातार अंतराल पर कोचिंग की छात्राओं के पास जाकर उनसे समस्या समझ रही है.
- कोटा ही एक ऐसा शहर है, जहां कोचिंग के छात्रों के लिए पुलिस ने स्टूडेंट सेल का गठन किया है. ये स्टूडेंट सेल देशभर से पेरेंट्स और कोटा में रह रहे बच्चों की पुलिस से जुड़ी समस्याओं को दूर करते हैं. इसमें हॉस्टल कोचिंग से रिफंड, मैस का खाना, आपसी विवाद लड़ाई झगड़ा, छात्राओं को परेशान करने वाले अनवांटेड कॉल सहित कई समस्याएं दूर की गई है.
- शहर के हर हॉस्टल के पंखों में एंटी सुसाइड रॉड लगवाई गई है. हॉस्टल का सर्वे जिला प्रशासन ने शुरू करवाया है, जिसके तहत यह देखा जा रहा है कि हॉस्टल के कमरों में एंटी सुसाइड रोड लगी है या नहीं.
- पुलिस की ओर से अब हॉस्टल को लेकर नए दिशा निर्देश भी जारी किए हैं, जिनमें 5 से ज्यादा कमरों वाले पीजी को हॉस्टल ही माना जाएगा और उसे हॉस्टल एसोसिएशन से एसोसिएट भी होना पड़ेगा. इन्हें सरकार के जारी किए गए सभी नियम को भी मानना पड़ेगा.
- यहां तक कि हाल ही में केंद्र सरकार ने भी कोचिंग के लिए एक गाइडलाइन जारी की है, जिसके तहत 16 से कम उम्र के बच्चों को प्रवेश नहीं देना शामिल है. 10वीं के बाद ही उन्हें कोचिंग में एडमिशन मिले. रजिस्ट्रेशन कोचिंग संस्थानों को कराना पड़ेगा.
- केंद्र और राज्य सरकार की जारी की गई गाइडलाइन के तहत 5 दिन पढ़ाई, त्योहार पर छुट्टी, कम उम्र के बच्चों को प्रवेश नहीं देना, सिलेक्शन के दावे पर रोक, इन हाउस टेस्ट का परिणाम सार्वजनिक नहीं करना, हर 3 महीने में पेरेंट्स टीचर मीटिंग, सीसीटीवी सर्विलेंस, स्टूडेंट की अटेंडेंस पर पूरी नजर, स्क्रीनिंग टेस्ट से एडमिशन व फीस रिफंड पॉलिसी शामिल है.
- कोचिंग संस्थानों ने भी कोटा में फन एक्टिविटी शुरू की है. ऐसा ही कई हॉस्टल एसोसिएशन ने भी शुरू किया है. बच्चों के लिए अलग-अलग मनोरंजन गतिविधियां आयोजित लगातार की जाती है, ताकि वह स्ट्रेस फ्री फील करें.