दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

असम समझौता: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी

याचिकाकर्ताओं ने अदालत में सवाल उठाया था कि सीमावर्ती राज्यों में से केवल असम को ही इसे लागू करने के लिए क्यों चुना गया है?

By ETV Bharat Hindi Team

Published : 4 hours ago

Updated : 2 hours ago

Assam Accord SC Judgement
प्रतीकात्मक तस्वीर. (फाइल फोटो.)

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में संशोधन के माध्यम से शामिल नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बहुमत का फैसला सुनाया, जबकि जेबी पारदीवाला ने असहमति का फैसला सुनाया.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने बहुमत के फैसले में कहा कि जो लोग 25 मार्च, 1971 की कट-ऑफ तिथि के बाद बांग्लादेश से असम में प्रवेश कर चुके हैं, उन्हें अवैध अप्रवासी घोषित किया जाता है और इस प्रकार धारा 6ए उनके लिए निरर्थक मानी जाती है.

केंद्र सरकार ने एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह विदेशियों के भारत में अवैध प्रवास की सीमा के बारे में सटीक डेटा प्रदान करने में सक्षम नहीं होगी क्योंकि ऐसा प्रवास गुप्त तरीके से होता है. 7 दिसंबर को, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए(2) के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्रदान करने वाले अप्रवासियों की संख्या और भारतीय क्षेत्र में अवैध प्रवास को रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं, इस पर डेटा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था.

बता दें कि धारा 6ए एक विशेष प्रावधान था जिसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार द्वारा 15 अगस्त, 1985 को हस्ताक्षरित 'असम समझौते' नामक समझौता ज्ञापन को आगे बढ़ाने के लिए 1955 के अधिनियम में शामिल किया गया था.

धारा 6ए के तहत, 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले और राज्य में 'सामान्य रूप से निवासी' रहे विदेशियों को भारतीय नागरिकों के सभी अधिकार और दायित्व प्राप्त होंगे. 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच राज्य में प्रवेश करने वालों को समान अधिकार और दायित्व प्राप्त होंगे, सिवाय इसके कि वे 10 साल तक मतदान नहीं कर पाएंगे. याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय में सवाल उठाया था कि सीमावर्ती राज्यों में से केवल असम को ही धारा 6ए लागू करने के लिए क्यों चुना गया. उन्होंने 'धारा 6ए के परिणामस्वरूप या उसके प्रभाव से घुसपैठ में वृद्धि' को दोषी ठहराया था.

'जनसांख्यिकीय परिवर्तन': अदालत ने याचिकाकर्ताओं से यह सामग्री दिखाने को कहा था कि बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से ठीक पहले 1966 और 1971 के बीच भारत आए सीमा पार प्रवासियों को दिए गए लाभों से जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुआ, जिसने असमिया सांस्कृतिक पहचान को प्रभावित किया. संविधान पीठ ने यह भी स्पष्ट किया था कि उसका दायरा धारा 6ए की वैधता की जांच करने तक सीमित है, न कि असम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की.

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया था कि हमारे समक्ष जो संदर्भ दिया गया था, वह धारा 6ए पर था. इसलिए हमारे समक्ष मुद्दे का दायरा धारा 6ए है, न कि एनआरसी. संविधान पीठ बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ और अवैध रूप से प्रवेश करने वालों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने के लिए केंद्र की ओर से उठाए गए कदमों के बारे में विवरण चाहती थी.

अदालत में दायर एक सरकारी हलफनामे में कहा गया था कि भारत में गुप्त रूप से प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों का पता लगाना, उन्हें हिरासत में लेना और निर्वासित करना एक 'जटिल चल रही प्रक्रिया' है. केंद्र ने घुसपैठियों और अवैध अप्रवासियों को रोकने के लिए भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने के काम को समय पर पूरा करने में बाधा उत्पन्न करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों को भी दोषी ठहराया था.

केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया था कि पश्चिम बंगाल में 'बहुत धीमी और अधिक जटिल' भूमि अधिग्रहण नीतियां सीमा-बाड़ लगाने जैसी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजना के लिए भी कांटा बन गई हैं.

केंद्र ने कहा कि सीमा की कुल लंबाई 4,096.7 किलोमीटर है. यह छिद्रपूर्ण है, नदियों से घिरा हुआ है और भूभाग पहाड़ी है. सीमा पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और असम राज्यों से लगी हुई है. सरकार ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अकेले पश्चिम बंगाल की सीमा बांग्लादेश के साथ 2,216.7 किलोमीटर है, जबकि असम की सीमा पड़ोसी देश के साथ 263 किलोमीटर है. मामले पर निर्णय दिसंबर 2023 तक सुरक्षित रखा गया है.

ये भी पढ़ें

Last Updated : 2 hours ago

ABOUT THE AUTHOR

...view details