नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में संशोधन के माध्यम से शामिल नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बहुमत का फैसला सुनाया, जबकि जेबी पारदीवाला ने असहमति का फैसला सुनाया.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने बहुमत के फैसले में कहा कि जो लोग 25 मार्च, 1971 की कट-ऑफ तिथि के बाद बांग्लादेश से असम में प्रवेश कर चुके हैं, उन्हें अवैध अप्रवासी घोषित किया जाता है और इस प्रकार धारा 6ए उनके लिए निरर्थक मानी जाती है.
केंद्र सरकार ने एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह विदेशियों के भारत में अवैध प्रवास की सीमा के बारे में सटीक डेटा प्रदान करने में सक्षम नहीं होगी क्योंकि ऐसा प्रवास गुप्त तरीके से होता है. 7 दिसंबर को, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए(2) के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्रदान करने वाले अप्रवासियों की संख्या और भारतीय क्षेत्र में अवैध प्रवास को रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं, इस पर डेटा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था.
बता दें कि धारा 6ए एक विशेष प्रावधान था जिसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार द्वारा 15 अगस्त, 1985 को हस्ताक्षरित 'असम समझौते' नामक समझौता ज्ञापन को आगे बढ़ाने के लिए 1955 के अधिनियम में शामिल किया गया था.
धारा 6ए के तहत, 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले और राज्य में 'सामान्य रूप से निवासी' रहे विदेशियों को भारतीय नागरिकों के सभी अधिकार और दायित्व प्राप्त होंगे. 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच राज्य में प्रवेश करने वालों को समान अधिकार और दायित्व प्राप्त होंगे, सिवाय इसके कि वे 10 साल तक मतदान नहीं कर पाएंगे. याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय में सवाल उठाया था कि सीमावर्ती राज्यों में से केवल असम को ही धारा 6ए लागू करने के लिए क्यों चुना गया. उन्होंने 'धारा 6ए के परिणामस्वरूप या उसके प्रभाव से घुसपैठ में वृद्धि' को दोषी ठहराया था.