नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कोयला घोटाले से संबंधित मामलों की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है. उन्होंने कहा कि वह कोयला घोटाले से जुड़े एक मामले में वकील के तौर पर पेश हुए थे.
यह मामला गुरुवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया, जिसमें जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस विश्वनाथन शामिल थे. जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि वह "कॉमन कॉज (एनजीओ, जिसने कोयला घोटाले के मामलों में जनहित याचिका दायर की थी) मामले में शामिल थे. यह मामला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का था, लेकिन फिर भी...".
जस्टिस विश्वनाथन के सुनवाई से खुद को अलग करने के बाद सीजेआई खन्ना ने कहा कि वह 10 फरवरी से शुरू होने वाले सप्ताह में मामलों की सुनवाई के लिए तीन जजों की नई पीठ का पुनर्गठन करेंगे.
पीठ के समक्ष दायर याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेशों में संशोधन की मांग की गई है, जिसमें कथित अवैध कोयला ब्लॉक आवंटन से संबंधित आपराधिक मामलों में उच्च न्यायालयों में ट्रायल कोर्ट के आदेशों के खिलाफ अपील करने से रोक दिया गया था.
पीठ ने अपील के दायरे और उच्च न्यायालयों को इन मामलों की सुनवाई से रोकने वाले पहले के आदेशों की प्रासंगिकता की जांच की. पीठ ने अपनी रजिस्ट्री से 2014 और 2017 के निर्णयों के संबंध में सभी लंबित याचिकाओं का एक व्यापक संकलन तैयार करने को कहा, जिसने उच्च न्यायालयों को अंतरिम अपीलों की सुनवाई करने से रोक दिया था.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, "नई पीठ में जस्टिस विश्वनाथन को शामिल नहीं किया जाएगा और इसका गठन 10 फरवरी, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में किया जाएगा. मुख्य सवाल यह होगा कि क्या मुकदमे पर रोक लगाने की मांग करने वाला व्यक्ति सीआरपीसी की प्रक्रिया का पालन नहीं करेगा, बल्कि इसके बजाय सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करेगा."
2014 में शीर्ष अदालत ने दिया था आदेश
2014 में, शीर्ष अदालत ने जनहित याचिकाओं पर ध्यान देने के बाद 1993 और 2010 के बीच केंद्र सरकार द्वारा आवंटित 214 कोयला ब्लॉकों को रद्द कर दिया था और एक विशेष सीबीआई न्यायाधीश द्वारा सुनवाई का आदेश दिया था. अदालत ने निर्देश दिया था कि जांच या मुकदमे पर रोक लगाने या बाधा डालने के लिए कोई भी आवेदन केवल उसके समक्ष ही किया जा सकता है.
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