सागर: कई ऐसी जन्मजात बीमारियां होती हैं, जिनका डॉक्टर भी आसानी से पता नहीं लगा पाते हैं. पीड़ित व्यक्ति इलाज होने के बावजूद परेशान होता रहता है. ऐसा ही मामला भाग्योदय तीर्थ ट्रस्ट अस्पताल में सामने आया है, जहां उत्तर प्रदेश के एक जिले से ऐसी युवती इलाज के लिए पहुंची, जिसे सांस लेने में परेशानी होती थी. साथ ही उसे हमेशा सर्दी और सूंघने की क्षमता कम होने की भी शिकायत थी. अस्पताल के ईएनटी सर्जन डाॅ. दिनेश पटेल ने युवती की जांच की.
दुर्लभ बीमारी है कोनल एट्रेसिया
जांच में पता चला कि युवती जन्मजात बाइलेट्रल कोनल एट्रेसिया से पीड़ित है, जिसमें नाक और मुंह का हिस्सा आपस में न जुड़ने के कारण पीड़ित को मुंह से सांस लेनी पड़ती है. ये बीमारी जन्मजात होने के कारण ज्यादातर बच्चों की, मां का दूध पीते ही मौत हो जाती है. इस बीमारी की बात करें तो ये एक दुर्लभ बीमारी है. दुनिया में 8 हजार बच्चों में से एक बच्चे की इससे पीड़ित होने की संभावना होती है. सामान्य तौर पर ये बीमारी बहुत कम ही रिपोर्ट हो पाती है, क्योंकि जैसे ही बच्चा दूध पीता है, उसकी सांस रूक जाती है और उसकी मौत हो जाती है.
जानकारी देते हुए डाॅ. दिनेश पटेल (ETV Bharat) बाइलेट्रल कोनल एट्रेसिया के लक्षण
डाॅ. दिनेश पटेल ने बताया, '' कोनल एट्रेसिया जन्मजात बीमारी है. ज्यादातर बच्चे एक सिंड्रोम के साथ जन्म लेते हैं. सिंड्रोम का मतलब होता है कि एक बीमारी के कारण बहुत सारी बीमारियां एक साथ होती हैं. इस मामले में आंख, नाक और हृदय से जुड़ी बीमारियां भी होती हैं, लेकिन यूपी से आई संगीता (बदला हुआ नाम) पिछले 20 साल से बाइलेट्रल कोनल एट्रेसिया से पीड़ित थी. कोनल एट्रेसिया दो-तीन प्रकार का होता है, जिसमें एक नाक का पर्दा नहीं बना होता है या दोनों नाक के परदे नहीं होते हैं. या फिर हड्डी या मेम्ब्रेन में दिक्कत होती है.''
ऑपरेशन करते हुए डॉक्टर (ETV Bharat) मुंह से नहीं जुड़ा होता नाक का हिस्सा
डाॅ. दिनेश पटेल ने आगे बताया, ''इस मामले में दोनों नाक के परदे नहीं बने थे. इसमें होता ये है कि नाक के पीछे वाला भाग मुंह से नहीं जुड़ा होता है. इसी वजह से पीड़ित व्यक्ति नाक से सांस नहीं ले पाता है और मुंह से सांस लेता है. दिक्कत ये होती है कि जब बच्चा मां का दूध पीता है तो उसकी मौत की संभावना बढ़ जाती है. क्योंकि मुंह बंद होते ही सांस नहीं ले पाने के कारण कई बार तत्काल ही बच्चे की मौत हो जाती है या फिर शरीर नीला पड़ जाता है. ज्यादातर मामलों में अस्पताल पहुंचने के पहले ही बच्चे की मौत होती है.''
20 साल से परेशान थी युवती
ईएनटी सर्जन डाॅ. पटेल बताते हैं, ''संगीता नाम की युवती 20 साल की उम्र तक मुंह से सांस लेती रही है. संगीता का एक बार 7 साल की उम्र में ललितपुर में ऑपरेशन हुआ है, जिसमें हड्डी टेढ़ी होने का ऑपरेशन किया गया था. इस ऑपरेशन से कुछ सुधार नहीं हुआ और ना हो सकता था. क्योंकि जब तक नाक वाला हिस्सा मुंह से नहीं जोड़ा जाता, तब तक यह समस्या खत्म नहीं होती. मेरे पास युवती अपनी समस्या लेकर आई थी. इसके बाद मैंने एंडोस्कोपी और सीटी स्कैन कराया. तब पता चला कि ये कोनल एट्रेसिया का केस है. मैंने युवती की नाक के पिछले हिस्से का ऑपरेशन कर नाक और मुंह को आपस में जोड़ दिया. युवती फिलहाल डिस्चार्ज हो चुकी है और अभी उसकी हालत पहले से ठीक है.''
28 दिन की बच्ची का भी कर चुके हैं ऑपरेशन
डाॅ. दिनेश पटेल ने बताया, ''इसके पहले मैं एक 28 दिन की बच्ची का ऑपरेशन कर चुका हूं. जो कोनल एट्रेसिया के साथ सिंड्रोम से भी पीड़ित थी. उसे हृदय रोग की समस्या भी थी. उसके परिजन उसे नागपुर, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में दिखाकर यहां लाए थे. मैंने जांच के बाद उन्हें ऑपरेशन की सलाह दी और परिजन तैयार हो गए. फिर मैंने बच्ची का ऑपरेशन किया. अब वो ठीक हो चुकी है.