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BRICS की जरूरत को लेकर ऐसा क्या बोल गए जयशंकर, जिससे यूरोपीय देशों की बोलती हो गई बंद, जानें - BRICS - BRICS

S jaishankar: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिक्स की अहमियत को लेकर ऐसा जवाब दिया, जिससे पश्चिमी देशों की बोलती बंद हो गई. उन्होंने कहा कि जब जी-20 और जी-7 हैं तो ब्रिक्स क्यों नहीं हो सकता?

एस जयशंकर
एस जयशंकर (ANI)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 13, 2024, 7:52 PM IST

नई दिल्ली:विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को ग्लोबल सेंटर फॉर सिक्योरिटी पॉलिसी में बोलते हुए कहा कि ब्रिक्स नाम के एक और क्लब की कोई जरूरत नहीं है और वह समूह को लेकर विकसित दुनिया में फैली असुरक्षा से दुखी हैं.

उन्होंने राजदूत जीन-डेविड लेविट के साथ बातचीत के दौरान कहा कि अगर जी-20 के रहते जी-7 का अस्तित्व रह सकता है, तो ऐसी कोई वजह नहीं है कि जिसके चलते ब्रिक्स का अस्तित्व न हो.

जयशंकर ने जी7 पर कसा तंज
जयशंकर ने कहा, "क्लब क्यों? क्योंकि एक और क्लब था! जिसे G7 कहा जाता था. आप किसी और को उस क्लब में जाने भी नहीं देते. इसलिए, हमने खुद का क्लब बनाया." उन्होंने कहा, "मैं अब भी इस बात से हैरान हूं कि जब आप ब्रिक्स के बारे में बात करते हैं तो आपका जवाब कितना असुरक्षित हो जाता है. लोगों के दिलों में कुछ खटकता है."

उन्होंने पूछा कि जी-20 है जी-7 है, क्या जी7 भंग हो गया है? क्या इसकी बैठकें बंद हो गई हैं? यह अब भी जारी है. जब जी-20 और जी-7 हैं तो ब्रिक्स क्यों नहीं हो सकता?"

जयशंकर ने बताया कि यह वास्तव में एक बहुत ही दिलचस्प समूह है, क्योंकि, यह आमतौर पर इससे किसी क्लब या किसी समूह का या भौगोलिक निकटता या कुछ सामान्य ऐतिहासिक अनुभव होता है और इससे र्थिक संबंध भी बहुत मजबूत होता है."

किसने की थी ब्रिक्स की शुरुआत?
बता दें वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 27 फीसदी का योगदान देने वाले ब्रिक्स की स्थापना ब्राजील, रूस, भारत और चीन ने की थी. बाद में दक्षिण अफ्रीका भी इसका हिस्सा बन गया. इतना ही नहीं जनवरी 2024 में ईरान, सऊदी अरब, मिस्र, यूएई और इथियोपिया भी इसके सदस्य बन गए.

कब बना था ब्रिक्स?
बता दें कि 2006 में ब्राज़ील रूस, भारत और चीन ने मिलकर ब्रिक समूह बनाया. 2010 में दक्षिण अफ़्रीका भी इसमें शामिल हो गया, जिससे यह ब्रिक्स बन गया. इस समूह की स्थापना विश्व के सबसे महत्वपूर्ण विकासशील देशों को एक साथ लाने और उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के धनी देशों की राजनीतिक और आर्थिक शक्ति को चुनौती देने के लिए की गई थी.

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