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बिहार में मोदी को पटखनी देने की 'लालू' की 'चाणक्य नीति', एक क्लिक में जानिए क्या है पूरा गेम प्लान - Lok Sabha Election 2024

बिहार में लालू यादव की पार्टी लोकसभा चुनाव को लेकर फूंक फूंक कर कदम रख रही है. 2019 में मिली शून्य सीटों से नसीहत लेकर आरजेडी अब एक अलग मिशन पर काम कर रही है. लालू ने अपनी चाल भी चल दी है. सीटों का बंटवारा हो चुका है. बस मोहरों का ऐलान होना बाकी है. लेकिन उससे पहले आरजेडी खूब वर्कआउट कर रही है. हर उस समीकरण पर खुद को जांच रही है. पढ़ें पूरी खबर-

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लालू यादव

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 30, 2024, 8:35 PM IST

लालू की स्ट्रेटजी को बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार

पटना : लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बिहार में महागठबंधन में सीट बंटवारे पर आपसी सहमति बन गई. 40 सीटों को लेकर जो फार्मूला बनाया गया है, उसमें राजद 26 सीटों पर कांग्रेस 9 सीटों पर सीपीआईएमएल 3 सीट पर सीपीआई 1 और सीपीएम 1 सीट पर चुनाव लड़ेगी. बिहार की 40 लोकसभा सीट का बंटवारा महागठबंधन के लिए परेशानी का कारण बना हुआ था.

घटक दलों की प्रेशर पॉलिटिक्स : गठबंधन के पांचों घटक दल अपने-अपने लिए सीटों की संख्या को लेकर एक दूसरे पर दबाव बना रहे थे. कांग्रेस और वामपंथी दल इस बार चाह रहे थे कि उनको उनके मन मुताबिक सीट दे दी जाए. कई सीटों पर लगातार विवाद चला रहा था लेकिन अंत तक सभी घटक दलों के बीच में आपसी सहमति के बाद कौन सा दल कितनी सीट पर चुनाव लड़ेगा इसकी घोषणा कर दी गई.

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बड़े भाई की भूमिका में आरजेडी : 2024 लोकसभा चुनाव में इस बार आरजेडी सबसे ज्यादे सीट पर चुनाव लड़ेगी. 2019 में राजद 19 सीट पर चुनाव लड़ी थी. 2024 में पार्टी 26 सीट पर चुनाव लड़ेगी. यानी इस लोकसभा चुनाव में राजद 6 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

किन के खाते में कौन सी सीट गई: माले के खाते में काराकाट, आरा, नालंदा सीट गई, राजद के खाते में गया, नवादा, जहानाबाद, औरंगाबाद, बक्सर, पाटलिपुत्र, मुंगेर, जमुई, बांका, बाल्मीकि नगर, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, वैशाली, सारण, सिवान, गोपालगंज, उजियारपुर, दरभंगा, मधुबनी, झंझारपुर, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया एवं हाजीपुर की सीट गई. कांग्रेस के खाते में मुजफ्फरपुर, किशनगंज, भागलपुर, समस्तीपुर, पश्चिमी चंपारण, पटना साहिब, सासाराम और महाराजगंज, कटिहार की सीट गई. सीपीआई को बेगूसराय और सीपीएम को खगड़िया सीट दिया गया.

2019 का परिणाम निराशाजनक: 2019 लोकसभा चुनाव का परिणाम राजद के लिए बहुत ही निराशाजनक रहा था. 1990 के बाद पहली बार लालू प्रसाद यादव की पार्टी का एक भी सांसद चुनकर सदन में नहीं जा सका. राजद के 19 उम्मीदवार चुनाव लड़े थे लेकिन एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सके. वहीं बिहार की 40 लोकसभा सीट में महागठबंधन को 39 सीट पर हार का सामना करना पड़ा था. महागठबंधन के खाते में मात्र एक किशनगंज की सीट गई थी. जहां से कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद जावेद चुनाव जीतने में सफल हुए थे.

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NDA को रोकने के लिए लालू की नीति : 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन में कौन कहां से चुनाव लड़ेगा यह खुद लालू प्रसाद यादव तय कर रहे हैं. महागठबंधन में राजद बड़े भाई की भूमिका में है. जहां तक जनाधार की बात है तो राजद के जन आधार के इर्द-गिर्द ही महागठबंधन के घटक दलों की राजनीति घूम रही है. यही कारण है कि आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर लालू प्रसाद यादव खुद रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं. न सिर्फ आरजेडी बल्कि अन्य घटक दल से कौन प्रत्याशी होंगे? उनका क्या जातिगत समीकरण है, इन सब बातों पर लालू यादव खुद नजर रख रहे हैं.

MY समीकरण लालू के साथ : 1990 में लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. उसके बाद से लगातार मुस्लिम और यादव उनके साथ रहे हैं. 15 वर्ष तक लालू यादव राबड़ी देवी का शासन रहा. उस समय तो यह समीकरण उनके साथ था ही, लेकिन बाद के वर्षों में भी यह समीकरण लगातार लालू यादव के साथ खड़ा रहा. यही कारण है कि बिहार की 30% वोट पर लालू यादव की विपरीत परिस्थिति में भी पकड़ बनी रही. इसी वोट बैंक के बदौलत लालू यादव अपने घटक दलों को भी अपने सामने झुकाने में कामयाब रहते हैं.

लालू यादव और बेटी रोहिणी आचार्य

अन्य जातियों पर भी लालू की नजर : 1990 में जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, उस समय उन्हें मंडल मसीह के रूप में पेश किया गया. सभी पिछड़ी जातियों को गोलबंद कर लालू प्रसाद यादव ने राजनीति शुरू की. मुसलमान और यादव के अलावे सभी पिछड़े एवं अति पिछड़ी जातियां लालू यादव के साथ खड़ी दिखीं. लेकिन वर्ष 1995 के बाद जब लालू यादव ने MY समीकरण का नारा दिया तो धीरे-धीरे अन्य पिछड़ी जातियां उनसे दूर होती गई. उनका पिछड़ी जातियों पर से पकड़ कमजोर होता गया.

2023 में बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना करवाई. इसके बाद बिहार में एक बार फिर से जाति की संख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व देने की मांग उठने लगी. किसी को देखते हुए लालू प्रसाद यादव 2024 लोकसभा चुनाव में सभी जातियों को साधने की कोशिश कर रहे हैं. ताकि जो जातियां राजनीतिक रूप से उनसे दूर हो गई थीं वह फिर से उनके पास आ सके. लालू प्रसाद यादव को लगता है कि माय समीकरण उनके साथ 1990 से इंटैक्ट है. यदि पिछड़ा-अति पिछड़ा और दलित वर्ग के वोट बैंक उनके साथ आ जाता है तो वह एक बार फिर से बिहार में अपनी पकड़ मजबूत कर लेंगे.

लालू यादव और मीसा भारती

किन किन पॉकेट पर है नजर : लालू प्रसाद यादव और राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. किसको अपने पाले में कैसे करना है वह बखूबी जानते हैं. 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर भी लालू प्रसाद यादव ने रणनीति बनाई है. कहां पर किसको चुनाव लड़वाना है किसके सिंबल पर लड़वाना है यह सब लालू प्रसाद यादव तय कर रहे हैं. इस बार लालू प्रसाद यादव माय समीकरण के अलावा पिछड़ा, अति पिछड़ा एवं रविदास समाज को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं.

कुशवाहा वोट पर नजर: बिहार में यादव मतदाताओं के बाद सबसे आगे यदि किसी जाति की संख्या है तो वह है कुशवाहा. इस बार लालू प्रसाद यादव कुशवाहा वोटरों को अपने पक्ष में लाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं. यही कारण है कि औरंगाबाद नवादा उजियारपुर मुंगेर में कुशवाहा उम्मीदवार दिया गया है. इसके अलावा घटक दल से भी काराकाट पटना साहिब में कुशवाहा कैंडिडेट देने की चर्चा हो रही है.

अतिपिछड़ों पर नजर : पिछले कई चुनाव से पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वर्ग एनडीए का वोट बैंक रहा है. लालू प्रसाद यादव की नजर इस बार अति पिछड़े वर्ग पर भी है. यही कारण है कि इस बार पूर्णिया से बीमा भारती को टिकट दिया गया. इसके अलावा झंझारपुर और सुपौल सीट अतिपिछड़ा वर्ग को दिया जा रहा है.

रविदास वोटरों पर नजर: लालू यादव की नजर रविदास वोटरों पर भी है. यही कारण है कि जमुई सीट से अर्चना रविदास को एवं गोपालगंज सीट से बिहार सरकार के पूर्व मंत्री सुरेंद्र राम को टिकट दिया जा रहा है. लालू यादव को यह मालूम है कि पासवान वोटर चिराग पासवान के साथ एकजुटता के साथ खड़े हैं. ऐसे में यदि रविदास समाज उनके साथ आ जाता है तो 2024 के चुनाव में वह इन सीटों पर एनडीए को हरा सकते हैं.

NDA के गढ़ में वामपंथियों की किलेबंदी : नालंदा नीतीश कुमार का गृह जिला है. नालंदा को नीतीश कुमार का अभेद दुर्ग भी कहा जाता है. 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर होने के बावजूद जदयू वहां से चुनाव नहीं हारा था. वहीं, बेगूसराय सीट पर कन्हैया कुमार भी बीजेपी के विजय रथ को नहीं रोक सके थे. ऐसी सीटों के लिए भी लालू प्रसाद यादव में रणनीति बनाई है. वामपंथी दलों को जो सीट दी गई है उन सीटों पर शुरू से ही वामपंथियों का प्रभुत्व रहा है. बेगूसराय, आरा , काराकाट , नालंदा , खगड़िया सीट पर एनडीए को रोकने की तैयारी की जा रही है.

क्या कहते हैं जानकार : वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय का कहना है कि लालू प्रसाद यादव सामाजिक न्याय के मसीहा के रूप में उभरे थे. लेकिन धीरे-धीरे उनसे मुस्लिम यादव को छोड़कर अन्य जाति छिटकते चले गए. जिसका राजनीतिक लाभ नीतीश कुमार ने लिया और लव कुश समीकरण बनाकर अन्य पिछड़ी जातियों को गोलबंद करने में कामयाब रहे. बीजेपी भी लालू विरोधी वोटरों को एकजुट करने में सफल हुई थी और अपर कास्ट के वोटरों के साथ-साथ पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट भी एनडीए के साथ चला गया था.

''इस बार लालू प्रसाद यादव उन जातियों को फिर से अपने पाले में लाने का प्रयास कर रहे हैं. यही कारण है कि उनकी नजर कुशवाहा वोटरों, रविदास समाज और अति पिछड़ा समाज पर है. राजद की तरफ से 26 सीटों पर प्रत्याशी का चयन हो गया है. भले ही इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. 22 सीटों पर तो राजद ने गुप्त रूप से सिंबल भी दे दिया है. लालू यादव को अपने माय समीकरण के अलावा भी अन्य जातियों पर नजर है. यही कारण है कि इस बार आधा दर्जन से अधिक कुशवाहा कैंडिडेट महागठबंधन की तरफ से दिया जा रहा है.''- अरुण पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार

अलग रणनीति पर काम कर रही आरजेडी : वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि इस बार बीजेपी को रोकने के लिए आरजेडी ने हर इलाके में अलग तरीके की रणनीति बनाकर चुनाव लड़ने पर काम कर रही है. लालू प्रसाद यादव ने वामपंथी दलों को उन्हीं इलाकों का टिकट दिया जहां पर उनका राजनीतिक प्रभाव रहा है. वामपंथी वोटरों के साथ यदि आरजेडी का परंपरागत मिलता है तो वहां पर एनडीए के प्रत्याशी को हराया जा सकता है. रवि उपाध्याय का कहना है कि इस बार लालू प्रसाद यादव ने बिहार के हर रीजन के लिए अलग-अलग रणनीति बनाई है.

''2019 के लोकसभा चुनाव में जिस तरीके से उनकी पार्टी की हार हुई थी. उसको देखते हुए लालू प्रसाद यादव अपने पुराने राजनीतिक समीकरण को साधने की तैयारी कर रहे हैं. उनको लग रहा है कि जब तक 90 के दशक वाला वोट बैंक उनके साथ एकजुट नहीं होता है तब तक एनडीए को रोकना आसान नहीं होगा.''- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

नई 'लालूनीति' पर आरजेडी : यही कारण है कि लगभग डेढ़ दशक बाद लालू प्रसाद यादव माय समीकरण के अलावे बिहार की अन्य जातियों को भी अपने पाले में लाने का प्रयास कर रहे हैं. अब देखना होगा कि लालू प्रसाद यादव के इस रणनीति का लाभ आगामी लोकसभा चुनाव में उनको कितना मिलता है?

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