पटना: किताब लिखने का जुनून या मानसिक अस्पताल में रहकर उपन्यास लिखने का पागलपन.. जो भी हो, इसे 'आउट ऑफ मैडनेस' तो कहेंगे ही. जी हां, इस किताब का नाम है 'आउट ऑफ मैडनेस' और इसे बिहार के खांटी लड़के ऋत्विक आर्यन ने लिखा है.
पहला उपन्यास ही सुपर हिट : सीतामढ़ी के रहने वाले ऋत्विक आर्यन ने यह किताब 547 दिनों तक मानसिक अस्पताल में रहकर लिखी. बचपन से ही नॉवेल लिखने के शौकीन ऋत्विक की यह पहली किताब 'ब्लूवन इंक पब्लिशर्स'द्वारा प्रकाशित की गई है, ये वही पब्लिशर्स जिसने 'हैरी पॉटर' जैसी मशहूर किताब को भी प्रकाशित किया था.
उपन्यास लिखने की सोच : ईटीवी भारत ने ऋत्विक से खास बातचीत की और जाना कि इस नॉवेल को लिखने में उन्होंने कितनी मेहनत की. ऋत्विक ने बताया कि 2017 में यूट्यूब पर एक यूथ कपल की कहानी देखी थी. यह कहानी देखने के बाद उनके मन में विचार आया कि क्यों न इस पर एक कहानी लिखी जाए. इस उपन्यास में पति और पत्नी के रिश्ते, पति की मृत्यु या धोखाधड़ी के बाद पत्नी की मानसिक स्थिति पर आधारित थी.
''उपन्यास का मुख्य किरदार 24 साल का एक अस्सिटैंट प्रोफेसर है जो नालंदा में मनोविज्ञान का शिक्षक है. धोखा और हार से भरी अपनी जिंदगी से तंग आकर ये टीचर अपनी मौत की झूठी कहानी रचता है, ताकि इस जिंदगी से भाग सके. छह साल तक वो क्राइम, मानव तस्करी की दुनिया में घुस जाता है और आखिर में एक पागलखाने में पहुंच जाता है. वहां वो टीचर एक पूर्व अभिनेत्री के प्यार में पड़ जाता है जो ड्रग्स की एडिक्ट रहती है.''- ऋत्विक आर्यन, उपन्यासकार, आउट ऑफ मैडनेस.
उपन्यास लिखने की प्रेरणा : ऋत्विक ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के हार्वर्ड एक्सटेंशन स्कूल से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री की पढ़ाई छोड़ दी. मात्र तीन महीने में ही उन्होंने यह बड़ा फैसला लिया, ताकि वह अपनी लेखनी पर ध्यान केंद्रित कर सकें. इसके बाद उनके परिवार ने इस फैसले का समर्थन किया क्योंकि वे बचपन से ही लिखने का शौक रखते थे.
मानसिक अस्पताल में बिताए 547 दिन: ऋत्विक ने बताया कि "आउट ऑफ मैडनेस" जैसी कहानी के लिए मानसिक अस्पताल में रह रहे 'मनोरोगियों' के बीच जाकर उनकी मानसिक स्थिति को समझना जरूरी था. इसके लिए उन्होंने भारत के दो सबसे बड़े मानसिक अस्पतालों- रांची के 'सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकियाट्री' और 'आगरा मानसिक अस्पताल' में 547 दिन बिताए. वहां रहकर उन्होंने मानसिक रोगियों के व्यवहार, दिनचर्या और उनकी मानसिक स्थिति का बारीकी से अध्ययन किया.
मानसिक अस्पतालके रियल अनुभव: ऋत्विक ने कहा कि मानसिक अस्पताल में रहते हुए उन्हें कुछ रोगी ऐसे मिले, जिन्होंने उन्हें डॉक्टर समझकर अपनी बातें बताईं. वहीं कुछ रोगी अजीब हरकतें करते थे. रांची के मानसिक अस्पताल में वह कई बार बिना लैपटॉप के जाते थे ताकि रोगियों को उनका असल उद्देश्य न समझ में आए. उन्होंने यह भी बताया कि मानसिक रोगियों के साथ बातचीत करने से यह अहसास हुआ कि ये लोग प्यार के भूखे होते हैं, और अगर उनके साथ स्नेहपूर्वक बात की जाए तो वे बहुत अच्छे दोस्त बन सकते हैं.