रायपुर: मनीष खूंटे की उम्र 25 साल है, लेकिन हाइट सिर्फ 4 फीट. मनीष कहते हैं, ''छोटा कद होने की वजह से काफी मुश्किल होती है. लोग हंसी भी उड़ाते हैं. रोजगार के लिए भी भटकना पड़ा. फिर रायपुर के एक कैफे ने काम दिया. अब सात-आठ साल से इस कैफे में काम कर रहा हूं.''
बिलासपुर जिले के बोहारडीह के रहने वाले छोटे कद के मनीष की तरह ही धमतरी निवासी दिव्यांग वीणा खरे की कहानी है. वीणा बोल नहीं सकती हैं. एक ट्रांसलेटर के जरिए ईटीवी भारत की टीम ने वीणा से बात की. वीणा ने बताया, "पहले घर में सिलाई का काम किया करती थी. फिर कैफे में काम मिला. ढाई साल से यहां काम कर रही हूं.''
कहां है ऐसा कैफे?: अब आपके मन में यह ख्याल आ रहा होगा कि आखिर यह कैफे कहां है, जिसमें मूक बधिर और बौना शख्स काम कर रहे हैं. दिव्यांगों को काम पर रखने का क्या उद्देश्य है. इन तमाम सवालों के जवाब खोजने के लिए ईटीवी भारत की टीम कैफे पहुंची.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नुक्कड़ कैफे: देश की राजधानी दिल्ली से 1223 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और स्टील सिटी दुर्ग में ऐसे 4 नुक्कड़ कैफे हैं, जिसमें मूक बधिर के साथ ही ट्रांसजेंडर और बौने लोगों को रोजगार दिया गया है. यह नुक्कड़ कैफे समाज को नई दिशा देने का काम कर रहे हैं. हमारी सोसाइटी के उपेक्षित लोग, जिनमें दिव्यांग, ट्रांसजेंडर, मानव तस्करी के शिकार शख्स हैं, उन्हें यह कैफे सशक्त बना रहा है.
इन 4 नुक्कड़ कैफे में स्टाफ की संख्या लगभग 70 के आसपास है. इस कैफे के स्टाफ में 50 फीसदी कर्मचारी दिव्यांग हैं. इनमें मूक बधिर और ट्रांसजेंडर के साथ ही बौने भी शामिल हैं. खास बात यह है कि कैफे में आने वाले कस्टमर इन्हें देखकर खुद को असहज महसूस नहीं करते बल्कि इनसे घुल मिलकर रहते हैं.
दिव्यांग लोगों को समाज से कनेक्ट करता कैफे: यह कैफे दिव्यांग लोगों को न सिर्फ जिंदगी की बुनियाद दे रहा है, बल्कि यह हाशिए पर खड़े लोगों को समाज से कनेक्ट करने का काम करता है. यहां आने वाला हर शख्स दिव्यांग कर्मचारियों से इंट्रैक्ट करता है. उनसे डायरेक्ट बात कर अपनी मनपसंद डिसेज ऑर्डर करता है.अपनी काबिलियत के बल पर यहां काम करने वाले दिव्यांग, उन ऑर्डर को पूरा करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया से सबसे ज्यादा दिव्यांग वर्ग के लोगों को फक्र महसूस होता है, कि जो समाज उन्हें उपेक्षित महसूस करता था, आज उसी समाज में वह कंट्रीब्यूट कर रहे हैं. अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं.
दिव्यांगों को मिल रहा संबल: साल 2013 में इस कैफे की शुरुआत रायपुर के समता कॉलोनी से हुई. यहां नुक्कड़ के एक आउटलेट से अब रायपुर में और दुर्ग में तीन से ज्यादा आउटलेट हैं. दुर्ग में नुक्कड़ का एक ऐसा आउटलेट है, जहां ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग काम करते हैं. इस तरह ट्रांसजेंडर और दिव्यांग समुदाय के लोग यहां न सिर्फ आम लोगों से लगातार डील करते हैं बल्कि एक प्रतिष्ठित रूप में काम कर अच्छी खासी आय कमाते हैं. इस तरह हाशिए पर खड़े समाज के दिव्यांग और ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लोगों को यहां आकर संबल मिल रहा है.
छोटे कद के कर्मचारी मनीष खूंटे कहते हैं कि ''मुझे यहां काफी अच्छा लगता है, काफी कुछ सीखने को मिलता है. कैफे में जॉब से पहले पढ़ाई लिखाई किया करता था. परिवार की रोजी-रोटी भी इसी से चलती है. कैफे में कस्टमर से ऑर्डर लेने की जवाबदारी मेरी होती है. सारी भूमिका मैं अच्छे से निभाता हूं.''
"दिव्यांगों के प्रति इस कैफे ने बदली सोच": कैफे में काम करने वाले दिव्यांग कर्मचारियों का कहना है कि यह कैफे समाज के लोगों की दिव्यांगों के प्रति सोच बदलने में अहम भूमिका निभा रहा है. रायपुर निवासी निलेश इस कैफे में बीते 12 सालों से काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि "साल 2013 से इस कैफे में मैनेजर के रूप में काम कर रहे हैं. लोगों से मिलजुल कर उन्हें काफी अच्छा लगता है.''
ऑर्डर लेने का तरीका भी दिलचस्प: नुक्कड़ कैफे में जब पचास फीसदी कर्मचारी हैं, तो वहां ऑर्डर लेने और सर्व करने की प्रक्रिया कैसी है? यह सवाल भी आपके मन में आ रहा होगा. यह प्रक्रिया भी काफी दिलचस्प है.
कैफे के मूक बधिर कर्मचारी नीलेश बताते हैं कि ''मेरा दिल कैफे में लगा हुआ है और आगे भी मैं यही काम करना चाहता हूं. जब यहां ग्राहक आते हैं तो मैं उनसे ऑर्डर लेता हूं. ऑर्डर साइन लैंग्वेज में या पेपर पर लिख कर ग्राहक हमें देते हैं. उसके बाद इस ऑर्डर को किचन तक पहुंचाया जाता है. यहां कस्टमर के रूप में आए लोग हमसे कम्युनिकेट करते हैं. उसके बाद वे हमें थैंक्यू बोलते हैं.''
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