मुस्लिम संगठनों की प्रेस कॉन्फ्रेंस नई दिल्ली: ज्ञानवापी मस्जिद मामले को लेकर जमात ए उलेमा हिंदी ने शुक्रवार को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस मौके पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी, जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी, मरकजी जमीअत अली हदीस के अध्यक्ष मौलाना असगर इमाम मेहंदी, जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अहमद महमूद मदनी समेत मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से जुड़े कई लोग मौजूद रहे.
इस दौरान, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है. अब अदालत से भी भरोसा उठता जा रहा है. हमारी कोई बात नहीं सुनी जा रही है. अदालत के द्वारा वहां पर मूर्तियां रखकर जल्दी में पूजा शुरू करवा दी गई है. प्रशासन मस्जिद कमेटी के ऑर्डर के खिलाफ अपील करने के अधिकार को प्रभावित करना चाहता है. हम इस मिली भगत की कठोर शब्दों में निंदा करते हैं.
मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि, अदालत ने प्रशासन को इस काम करने के लिए 7 दिन का समय दिया था, हमें वाराणसी जिला न्यायाधीश के फैसला पर बहुत हैरानी और दुख है. कोर्ट ने यह फैसला बहुत ही गलत और निराधार तर्कों के आधार पर दिया है. ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाना में 1993 तक सोमनाथ व्यास का परिवार पूजा करता था. उस समय की राज्य सरकार के आदेश पर उसे बंद कर दिया गया था. 17 जनवरी को इसी कोर्ट तहखाने को जिला प्रशासन के नियंत्रण में दे दिया था. किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अदालत में समाज की पीड़ित और प्रभावित लोगों के लिए आखिरी सहारा होती है. लेकिन अगर वह भी पक्षपात करने लगे तो फिर इंसाफ की गुहार किस से लगाई जाएगी.
उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में देश में जिस तरह से अलग-अलग मुद्दों को उठाया गया है. इससे ऐसा लगता है कि कानून की हिफाजत करने वाली अदालत में मजहबी ताकतों का कब्जा हो गया है. सुप्रीम कोर्ट के राम जन्म भूमि आदेश के बाद लगातार कभी ज्ञानवापी मस्जिद कभी मथुरा का मामला सामने आ रहा है. अगर मुगल शासन में ऐसा हुआ होता तो देश के अंदर बहुत सारे मंदिर है, मुसलमान कभी भी किसी मंदिर को तोड़कर अल्लाह की इबादत नहीं करती.