गया:बिहार के गया में पितृपक्षमेला चल रहा है. पितृपक्ष मेले के दौरान गया धाम की मुख्य वेदियों में एक प्रेतशिला पिंंडवेदी पर पिंडदान का विधान है. प्रेतशिला को प्रेतों का पहाड़ कहा जाता है. मान्यता है, कि इस पहाड़ के चट्टानों की छिद्रों में अकाल मृत्यु वाले पितरों का वास होता है.
ब्रह्मा जी ने अपने अंगुठे से खीचीं थी लकीरें: देर संध्या होते ही इस पहाड़ पर कोई नहीं जाता. अकाल मृत्यु वाले पितर जो यहां वास करते हैं, उनकी तरह-तरह की आवाजें यहां सुनाई पड़ती है. यह वह पिंडवेदी है, जहां ब्रह्मा जी ने अपने अंगूठे से तीन लकीरें खींची थी. यहां ब्रह्मा जी के चरण चिह्न हैं और यह धर्मशिला के रूप में जाना जाता है.
सत्तू उड़ाने का विधान:प्रेतशिला में सत्तू उड़ाने का विधान है. यहां पिंडदान और सत्तू उड़ा कर अकाल मृत्यु से मरे पितरों को मोक्ष दिलाने की मान्यता है. मान्यता है, कि यहां सबसे उंची चोटी पर प्रेत वेदी यानि कि जो चट्टान है और उसमें जो दरार है, वह पिंडदान और सतू उड़ाने से पितरों के लिए स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त कर देता है. इस पहाड़ पर यम देवता का भी निवास है और मंदिर है.
प्रेतशिला वेदी 'भूतों का पहाड़': प्रेतशिला वेदी को प्रेतों का पहाड़ के नाम से जाना जाता है. यहां मान्यता है, कि अकाल मृत्यु जैसे जलने से, आत्महत्या से, एक्सीडेंट से, किसी के द्वारा कर दी गई हत्या से यानी कि जो अकाल मृत्यु के शिकार होते हैं, उनका वास इसी प्रेत पर्वत पर होता है. यही वजह है कि प्रेतशिला को प्रेतों का पहाड़ कहा जाता है.
पितरों का फोटो लगाकर पिंडदान करने की प्रथा: प्रेतशिला में अपने पितरों का फोटो लगाकर तीर्थ यात्री पिंडदान करते हैं. पिंडदान का कर्मकांड पूरा होने के बाद फोटो को विसर्जित कर दिया जाता है. पितरों के फोटो को पीपल के वृक्ष या बरगद के वृक्ष के पास समर्पित कर दिया जाता है. प्रेतशिला में पितरों के फोटो के साथ पिंडदान के उपरांत तस्वीर को प्रेतशिला स्थित बरगद के वृक्ष या फिर प्रेत शिला में स्थित ब्रह्मकुंड तालाब के पास छोड़ देते हैं. पूर्वजों का पिंडदान के बाद उनकी फोटो को पिंडदानी वापस नहीं ले जाते हैं. उनके द्वारा छोड़े गए फोटो को विभिन्न पुजारी कई स्थान पर बरगद या पीपल के वृक्ष के समीप रख देते हैं या फिर उसे टांग देते हैं.
"वैसे अन्य पिंडवेदियों पर भी पितरों का फोटो लगाकर पिंडदान किया जाता है और पिंडदान का कर्मकांड पूरा होने के बाद फोटो को अक्षयवट पिंडवेदी पर समर्पित कर दिया जाता है. त्रैपाक्षिक श्राद्ध के तहत पितृपक्ष का अंतिम पिंडदान अक्षय वट में होता है, जहां गयापाल पंडा पिंडदानी को सुफल का आशीर्वाद देते हैं."- पंडित आचार्य नारायण, पुजारी
शाम के बाद कोई नहीं रहता यहां:कहा जाता है कि यहां प्रेतशिला के चट्टानों के छिद्रों में अकाल मृत्यु के शिकार पितरों का वास होता है. चूंकि मृत्यु दो तरीके से होती है. एक प्राकृतिक और एक अप्राकृतिक यानि कि अकाल मृत्यु का शिकार होने वाले पितरों का इस प्रेत पर्वत पर वास होता है. यही वजह है, कि इस प्रेत पर्वत को भूतों का पहाड़ भी कहा जाता है. यहां संध्या के बाद कोई व्यक्ति पहाड़ पर नहीं जाता. सिर्फ पुजारी साधु संतों को ही या अपवाद स्वरूप किसी व्यक्ति को ही संध्या पहर के बाद यहां देखा जा सकता है.
"हमलोग रायगढ़ से पितरों का पिंडदान करने आए हैं. पितरों की मुक्ति के लिए आए हैं. 11 परिवार के लोग यहां पहुंचे हैं. सात पीढ़ियों के मोक्ष की कामना कर रहे हैं."- पिंडदानी
सत्तू उड़ाकर पितरों को स्वर्ग तक पहुंचाते हैं पिंडदानी: पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन प्रेतशिला में पिंडदान का विधान है. इसके अलावा कुछ और अन्य पिंड वेदियों पर भी पिंडदान का विधान है. यहां सतू उड़ाकर पिंडदानी अपने पितर के लिए मोक्ष की कामना करते हैं. यहां पिंडदान से पितर को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. यहां सत्तू उड़ाकर पिंडदान का अति महत्व है. बताया जाता है कि अकाल मृत्यु जिनके यहां होती है, उनके यहां सूतक काल लगा रहता है. सूतक काल में सत्तू का सेवन वर्जित माना गया है.
दरार से स्वर्ग का मार्ग: प्रेतशिला वेदी पर पिंडदानी तिल मिश्रित सत्तू उड़ाते हैं और पितर आत्माओं से आशीर्वाद और मंगल कामनाएं मांंगते हैं. तीर्थ यात्री के पिंडदान से उनके पितर प्रसन्न हो जाते हैं और प्रेत योनि से मुक्ति होकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. प्रेतशिला में पिंडदान से पितर को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. प्रेतशिला पहाड़ पर प्रेत वेदी है. इस प्रेत वेदी में एक दरार है, जिसमें माना जाता है कि यहां सत्तू उड़ाने से पितर स्वर्ग को पहुंचते हैं.
प्रेत वेदी की परिक्रमा करना आवश्यक: यही वजह है कि पिंडदानी जब सत्तू उड़ाते हैं, तो इस प्रेत वेदी की तीन से पांच बार परिक्रमा करते हैं और सत्तू को चट्टान की दरार में उड़ाते हैं. चट्टान की दरार में जब सत्तू डालकर अपने पितरों के प्रेत योनि से मुक्ति की कामना करते हैं और पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. सत्तू पितरों को प्रिय होता है, क्योंकि इससे उन्हें मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. इसलिए पहाड़ी की चोटी पर चट्टान के पास हवा में पिंडदानी सत्तू उड़ाते हैं, जिससे अकाल मृत्यु में मरे पूर्वज प्रेतयोनी से मुक्त हो जाते हैं. अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों का श्राद्ध पिंडदान प्रेत शिला में करने का विशेष महत्व है.