धार भोजशाला मामले में बड़ा मोड़, मंदिर में पूजा की अनुमति के लिए इंदौर हाई कोर्ट में याचिका
Petition filed for dhar bhojshala : इंदौर हाई कोर्ट में धार की भोजशाला को लेकर एक याचिका लगाई गई है, जिसपर आने वाले दिनों में सुनवाई होना है. ये याचिका हिंदू संगठनों ने दायर की है.
अयोध्या-काशी के बाद अब धार भोजशाला का मामला गरमाया
इंदौर.अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा और वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर में पूजा शुरू होने के बाद अब धार भोजशाला का मामला गरमा गया है. धार भोजशाला (Dhar bhojshala) को लेकर इंदौर हाई कोर्ट (Indore high court) में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें हिंदू संगठन 'हिंदू संघ फॉर जस्टिस' ने गौशाला परिसर में कब्जा देने और नमाज बंद करने की मांग की है. याचिका में वीडियोग्राफी, फोटो करवाने और जरूरत पड़ने पर खुदाई करवाने की बात भी की गई है.
क्या है हिंदू संगठनों की याचिका में?
दरअसल, याचिका के जरिए हिंदू संगठन ने कोर्ट से मांग की है कि भोजशाला परिसर एक मंदिर है, जिसे राजा भोज ने 1034 में संस्कृत में पढ़ने के लिए बनवाया था. यहीं मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी पर हिंदू मंदिर के एक हिस्से को मुस्लिम आक्रांताओं ने तोड़ दिया था और उस पर कब्जा कर उसे कमाल मौला मस्जिद कहने लगे. हिंदू संगठन ने याचिका में आगे कहा कि ये मस्जिद नहीं है जिसके सबूत, किताब गजेटियर और बुक्स पेश किए गए हैं.
हिंदू संगठनों ने की ये मांग
याचिका में मांग की गई है कि यहां नमाज बंद कर सिर्फ पूजा पाठ की अनुमति दी जाए और यहां से हटाई गई मां सरस्वती की प्रतिमा को फिर से स्थापित किया जाए. बता दें कि भोजशाला को लेकर पिछले 800 सालों से विवाद चल रहा है. सन 1909 में धार रियासत ने भोज शाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया था. इसके बाद यह पुरातत्व विभाग के अधीन हो गया. फिलहाल गौशाला में हर मंगलवार हिंदू पूजा-अर्चन करते हैं, लेकिन शुक्रवार को दोपहर 1:00 से 3:00 बजे तक मुस्लिमों को यहीं नमाज पढ़ने की अनुमति होती है. फिलहाल अब इस पूरी याचिका पर आने वाले दिनों में कोर्ट सुनवाई हो सकती है.
इतिहासकार बताते हैं कि लगभग एक हजार साल पहले धार में परमार वंश का शासन था. यहां पर सन् 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज (Raja Bhoj) ने शासन किया. राजा भोज मां सरस्वती के परम भक्त थे, इसलिए उन्होंने 1034 ईस्वी में यहां पर एक महाविद्यालय की स्थापना की और यहां मां सरस्वती की मूर्ति भी स्थापित की, जिसे बाद में 'भोजशाला' के नाम से जाना जाने लगा. माना जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया था. बाद में 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी.