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पतंजलि विज्ञापन मामला: SC की IMA प्रमुख को फटकार, 'माफी स्वीकार नहीं' - SC In Patanjali Case

Patanjali Case: भ्रामक विज्ञापन मामले में बाबा रामदेव, बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को जारी अवमानना नोटिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. शीर्ष अदालत ने एक मीडिया साक्षात्कार में की गई कुछ टिप्पणियों पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन द्वारा प्रस्तुत माफी पर असंतोष व्यक्त किया. पीठ ने कहा कि ऐसे आचरण को आसानी से माफ नहीं किया जा सकता.

Supreme Court of India
सुप्रीम कोर्ट (ANI Photo)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 14, 2024, 4:15 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापन मामले में योग गुरु रामदेव, उनके सहयोगी बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को जारी अवमानना नोटिस पर 14 मई को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया. शीर्ष अदालत ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आर वी अशोकन द्वारा प्रस्तुत माफी पर भी असंतोष व्यक्त किया.

सुप्रीम कोर्ट ने उनकी माफी पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि न्यायाधीश अपने आदेशों की आलोचना पर प्रतिक्रिया नहीं देते हैं, क्योंकि उनमें अहंकार नहीं होता है. उन्होंने जोर देकर कहा,'व्यक्तिगत रूप से, हम उदार हैं. हम कार्रवाई करने के हकदार हैं. हम ऐसा नहीं करते, क्योंकि हमारे अंदर अहंकार नहीं है. हम ऐसा कभी-कभार ही करते हैं, बहुत ही कम'.

न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने अदालत कक्ष में मौजूद अशोकन से कहा कि उन्हें अपने आचरण के लिए जवाब देना होगा. वह भी अदालत कक्ष में मौजूद न्यायाधीशों और वकीलों की तरह देश के नागरिक हैं. पीठ ने कहा, 'न्यायाधीशों को अपने आदेश के लिए व्यक्तिगत रूप से जितनी आलोचना का सामना करना पड़ता है, वे प्रतिक्रिया क्यों नहीं देते हैं. साधारण कारण से, व्यक्तिगत रूप से उनमें अहंकार नहीं है. आप संस्था पर हमला करते हैं. आपकी टिप्पणी संस्था पर थी'.

अशोकन अपने खिलाफ अवमानना कार्रवाई के लिए पतंजलि आयुर्वेद द्वारा दायर एक आवेदन पर जारी नोटिस के अनुसार अदालत कक्ष में उपस्थित थे. उन्होंने बिना शर्त माफी मांगी, हालांकि पीठ उनके आचरण से खुश नहीं थी. पीठ ने अशोकन द्वारा दायर एक हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि 'साक्षात्कार देते समय हमें आपसे जिम्मेदारी की अधिक भावना की उम्मीद थी. आप इस तरह से और वह भी इस अदालत के आदेश के खिलाफ प्रेस में अपनी आंतरिक भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकते... साक्षात्कार में चुने गए शब्द. आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?'.

पीठ ने कहा कि'न्यायाधीश कुछ जिम्मेदारी की भावना के साथ अपने विवेक का उपयोग करते हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि आप इस तरह की टिप्पणियों के साथ शहर चले जाएं. आप सोफे पर बैठकर अदालत के बारे में कुछ भी नहीं कह सकते. अगर दूसरा पक्ष इस तरह की टिप्पणियां करता तो आप क्या करते'.

न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, 'आपने जिस तरह का नुकसान पहुंचाने वाला बयान दिया है, उसके बाद क्या हम इस तरह की माफी स्वीकार करते हैं? बहुत दुर्भाग्यपूर्ण... आप दूसरे पक्ष (रामदेव और आचार्य बालकृष्ण) को वैध कारणों से अदालत में घसीटते हैं, जैसा कि आप कहते हैं कि वे पूरी दुनिया को धोखा दे रहे हैं (एलोपैथी से संबंधित सब कुछ)'.

पीठ ने स्वामी रामदेव का जिक्र करते हुए अशोकन से कहा कि उन्होंने अदालत के आदेश पारित करने के बाद एक साक्षात्कार में बिल्कुल यही बात की थी. पीठ ने कहा, 'हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं (माफी) हार्दिक है. आप बिल्कुल वैसा ही करते हैं, हम आपको संदेह का लाभ कैसे दे सकते हैं. आप याचिकाकर्ता हैं'.न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि आईएमए ने इसे गंभीरता से लेते हुए दूसरे पक्ष, रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को बुलाया और उनकी माफी ने अदालत को एक बार नहीं, दो बार नहीं, बल्कि तीन से अधिक बार प्रभावित किया. हम जानते थे कि यह दिल से नहीं आ रहा था. आपके हलफनामे के बारे में भी हमें यही कहना है.

न्यायमूर्ति कोहली ने आईएमए अध्यक्ष से कहा कि 'आप सोफे पर बैठकर प्रेस को साक्षात्कार नहीं दे सकते और अदालत की खिल्ली नहीं उड़ा सकते. एक विचाराधीन मामले में और जिस मामले में आप एक पक्ष हैं. हम सभी आपसे बहुत नाखुश नहीं हैं. इस आचरण को इतनी आसानी से माफ नहीं किया जा सकता.आप दूसरे पक्ष पर उंगली उठाते हैं. आप उसी तरीके से या उससे भी बदतर व्यवहार करते हैं. इसीलिए हमने यह हलफनामा मांगा है. पीठ ने कहा कि आईएमए अध्यक्ष अपने बाकी सहयोगियों, 3.50 लाख डॉक्टरों के लिए किस तरह का उदाहरण पेश कर रहे हैं.

पीठ ने अशोकन से पूछा,'आपने सार्वजनिक माफी क्यों नहीं मांगी? यहां आने के लिए इंतजार क्यों किया? आप उसी समाचार एजेंसी के पास जा सकते थे. वही कह सकते थे जो आप हमें हलफनामे में बता रहे हैं'.

पीठ ने आईएमए का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया से कहा, 'हम इस स्तर पर आपके मुवक्किल द्वारा मांगी गई माफी को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं. पटवालिया ने जोर देकर कहा कि अशोकन एक सम्मानित डॉक्टर हैं. हमें एक मौका दें, हम कदम उठाएंगे'.

इस बीच, रामदेव और बालकृष्ण का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील बलबीर सिंह ने भी अनुरोध किया कि उनके मुवक्किलों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने से छूट दी जाए. पीठ उनकी उपस्थिति से छूट देने पर सहमत हो गई. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह अवमानना मामले में आदेश सुरक्षित रख रही है. पीठ ने सिंह से अपना हलफनामा दाखिल करने को कहा.

अवमानना मामले में आदेश सुरक्षित रखने के बाद, पीठ ने कहा कि जनता जागरूक है, यदि उनके पास विकल्प हैं तो वे अच्छी तरह से सूचित विकल्प चुनते हैं. बाबा रामदेव का बहुत प्रभाव है. उन्हें इसका सही तरीके से उपयोग करना चाहिए. एक वकील ने कहा कि रामदेव ने योग के लिए बहुत कुछ अच्छा किया है. पीठ ने जवाब दिया, 'योग के लिए जो किया गया है वह अच्छा है, लेकिन पतंजलि उत्पाद एक अलग मामला है'.

पीठ ने 7 मई को एक समाचार एजेंसी को दिए हालिया साक्षात्कार में अशोकन द्वारा शीर्ष अदालत को निशाना बनाकर दिए गए बयानों को 'बहुत, बहुत अस्वीकार्य' करार दिया था. अशोकन पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले से जुड़े सवालों का जवाब दे रहे थे. पतंजलि का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि उन्होंने एक आवेदन दायर कर अदालत से आईएमए अध्यक्ष द्वारा की गई 'अनावश्यक और अनुचित टिप्पणियों' पर न्यायिक नोटिस लेने का आग्रह किया है. शीर्ष अदालत 2022 में आईएमए द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसमें पतंजलि और योग गुरु रामदेव द्वारा कोविड टीकाकरण अभियान और चिकित्सा की आधुनिक प्रणालियों के खिलाफ बदनामी का अभियान चलाने का आरोप लगाया गया था.

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