नई दिल्ली : दिल्ली और एनसीआर इलाके में प्रदूषण नियंत्रण को लेकर क्या कदम उठाए जा सकते हैं, वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए गठित आयोग ने इस पर एक रिपोर्ट पेश की है. कमेटी के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने इसे राज्यसभा में पेश किया. समिति ने सुझाव दिया है कि अगर पराली का बेंचमार्क न्यूनतम मूल्य तय कर दिया जाय और धान की जल्द तैयार होने वाली फसल को बढ़ावा मिले, तो पराली जलाने की समस्या से निजात मिल सकती है. कमेटी के अनुसार रेड एंट्री वाले किसानों को भी विकल्प दिया जाना चाहिए, ताकि वे इससे बाहर निकल सकें और स्थिति बेहतर हो सके.
मिलिंद देवड़ा ने मंगलवार को राज्यसभा में यह बात कही. वह इस समिति के अध्यक्ष हैं. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कई अनुशंसाएं की हैं. मिलिंद देवड़ा ने कहा कि जिस तरह से किसानों को फसल एमएसपी दी जाती है, ठीक उसी तरह से पराली की बिक्री के लिए भी एक फिक्स्ड इनकम जैसी व्यवस्था को अपनाई जा सकती है. जो भी किसान इसे बेचना चाहेंगे, उन्हें एक निर्धारित न्यूनतम मूल्य दिया जा सकता है. राज्य सरकारों को यहां पर पहल करनी होगी. आयोग को राज्य सरकारों के साथ विचार विमर्श करना होगा.
देवड़ा ने कहा कि इसकी समीक्षा हरेक साल की जा सकती है. उन्होंने कहा कि अगर आसपास में पराली का कोई भी खरीददार नहीं है, तो इसके लिए भी एक अलग से व्यवस्था की जा सकती है. उनके अनुसार 20-50 किलोमीटर के दायरे में पराली सेंटर खोला जा सकता है, जहां पर उसे इकट्ठा किया जा सके, और उसके बाद उसे वांछित जगह पर ले जाया जाएगा. देवड़ा ने कहा कि अगर ऐसी व्यवस्था हो जाए, तो किसानों को ढुलाई पर भी ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा.
इस मामले पर बोलते हुए राज्यसभा में मिलिंद देवड़ा ने कहा कि क्योंकि किसानों के पास ज्यादा समय नहीं होता है, इसलिए वे जल्द से जल्द पराली का निपटान चाहते हैं. उन्होंने कहा कि दो फसलों के बीच औसतन 25 दिन का समय रहता है, लिहाजा किसान उसे जल्द से जल्द जलाकर अगली फसल के बुवाई की तैयारी करने लग जाते हैं. इसलिए बेहतर होगा कि यदि पूसा-44 जैसी धान की जल्द तैयार होने वाली फसल लगाई जाए, तो समाधान मिल सकता है.