सागर।आपने ऐसी कितनी तस्वीरें और नजारे किसी डाॅक्टर की क्लीनिक में देखे होगें,जिसमें लोग डाॅक्टर से इंजेक्शन लगवाते समय दर्द के मारे चिल्लाते हैं. दुनिया का कितना भी बहादुर आदमी क्यों ना हो, उसे सुई का डर जरूर लगता है. ये मेडिकल साइंस में एक बीमारी कहलाती है जिसेट्रिपेनोफोबिया(Trypanophobia) का नाम दिया है. इस बीमारी से किसी भी इंसान को सुई लगवाने से डर लगता है. इस डर को खत्म करने के लिए बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष ने मेडिकल साइंस की एक थ्योरी के आधार पर कुछ तकनीकों को मिलाकर एक नया तरीका तैयार किया है. इस नई तकनीक में सुई लगवाने वाले मरीज को दर्द का पता ही नहीं चलता है और लोग आसानी से इंजेक्शन लगवा लेते हैं.
क्या है ट्रिपैनोफोबिया (Trypanophobia)
ट्रिपैनोफोबिया एक ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है किसी भी सुई की तरह नुकीली वस्तु से डर लगना है. ट्रिपैनोफोबिया कई लोगों में सामान्य होता है कि डाॅक्टर या नर्स के सुई लगाने के वक्त दर्द के कारण कराहते या कोई सामान्य प्रतिक्रिया करते हैं. लेकिन कई लोगों को चक्कर आना, मतली, बेहोशी,ब्लड प्रेशर में बढ़ोत्तरी और हृदय गति बढ़ जाने जैसे लक्षण सामने आते हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में नुकसान ये होता है कि टीकाकरण और इंजेक्शन के जरिए दी जाने वाली दवाओं से लोग डरते हैं और इलाज पर असर पडता है. कई अध्ययनों में सामने आया है कि दो तिहाई से ज्यादा बच्चे और एक चौथाई व्यस्क इसका शिकार होते हैं.
गेट कंट्रोल थ्योरी ने दिखाया रास्ता
बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज में एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट के हैड डॉक्टर सर्वेश जैन कहते हैं कि खासकर ट्रिपैनोफोबिया को खत्म करने के लिए मैं कई दिनों से काम कर रहा था. इंजेक्शन लगाने का कोई ऐसा तरीका हो, जिसमें लोगों को डर ना लगे, क्योकिं जिनको ज्यादा सुई का डर लगता है,उनका किसी भी बीमारी का इलाज काफी कठिन हो जाता है.
डॉक्टर सर्वेश जैन कहते हैं कि"इसके लिए मैनें गेट कंट्रोल थ्योरी को आधार बनाया. ये थ्योरी 1965 में बिट्रिश वैज्ञानिक मेल्जैक और वाॅल ने पेश की थी. इनका कहना था कि मस्तिष्क तक किसी भी तरह के एहसास पहुंचने का एक ही रास्ता होता है. ये एहसास तीन तरह के होते हैं जिनमें दर्द,कंपन और तापमान होता है. किसी भी तरह के स्पर्श या दबाव की अनुभूति रीढ़ की हड्डी के माध्यम से न्यूराॅन्स के जरिए मस्तिष्क तक पहुंचती है. एक ही समय में मस्तिष्क तक सिर्फ दो एहसास पहुंच सकते हैं. अगर एक समय में कंपन और तापमान को मस्तिष्क में भेजा जाए, तो दर्द को मस्तिष्क तक पहुंचने का रास्ता नहीं मिल पाता है और दर्द का एहसास नहीं होता है."