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किस आधार पर हाईकोर्ट ने हेमंत सोरेन को दी जमानत, पढ़े रिपोर्ट - Bail to Hemant Soren

Jharkhand High Court's comment on ED. झारखंड हाईकोर्ट से हेमंत सोरेन को जमानत मिल गई है. हेमंत जेल से बाहर आ चुके हैं, ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर कोर्ट ने हेमंत सोरेन को किस आधार पर जमानत दी है. इस खबर में आप विस्तार से जानें.

Jharkhand High Court's comment on ED
जेल से निकलने के बाद पिता शिबू सोरेन से मिलते हेमंत सोरेन (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jun 28, 2024, 7:18 PM IST

रांची: झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय ने हेमंत सोरेन को लैंड स्कैम मामले में नियमित जमानत देते हुए अपने आदेश में कहा कि पीएमएलए, 2002 के सेक्सन 45 के तहत कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि याचिकाकर्ता कथित अपराध का दोषी नहीं है. कोर्ट ने कहा कि एजेंसी का आरोप है कि हेमंत सोरेन ने बड़गाईं में 8.86 एकड़ जमीन पर कब्जा कर रखा है. इसपर कोर्ट ने कहा कि सर्किल सब इंस्पेक्टर भानु प्रताप प्रसाद के परिसर से बरामद किसी भी दस्तावेज में हेमंत सोरेन या उनके परिवार के सदस्यों का नाम नहीं है. भानु प्रताप प्रसाद के बयान में भी याचिकाकर्ता का नाम नहीं है.

ईडी का आरोप है कि अशोक जायसवाल, शशि भूषण सिंह और बिष्णु कुमार भगत ने वर्ष 1985 में जमीन खरीदने का दावा किया है, लेकिन सोरेन और अन्य ने वर्ष 2009-10 में उन्हें जबरन बेदखल कर दिया और पुलिस ने शिकायतों पर विचार नहीं किया. इसपर अदालत ने कहा कि आश्चर्यजनक बात ये है कि ये लोग जमीन कैसे खरीद सकते हैं, क्योंकि यह वास्तव में एक भुईंहरी जमीन है. इस नेचर की जमीन सीएनटी अधिनियम की धारा 48 के तहत हस्तांतरणीय नहीं है.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ईडी के मुताबिक हेमंत सोरेन ने साल 2019 में 8.86 एकड़ जमीन पर कब्जा किया था. फिर चहारदीवारी का निर्माण कराया गया था. इसपर कोर्ट ने कहा कि केवल भानु प्रताप प्रसाद के कार्यकाल के दौरान ही संबंधित भूमि के सत्यापन की जरुरत थी. कोर्ट ने कहा कि संबंधित लैंड पर बिजली का मीटर भी हिलेरियस कच्छप के नाम से है.

कोर्ट ने ईडी के दावे का खंडन करते हुए कहा कि एसएआर केस नंबर 81/2023-24 में 29.01.2024 के आदेश का अवलोकन किया गया है. ऐसा लगता है राजकुमार पाहन और अन्य के पक्ष में भूमि बहाल करने का आदेश सभी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही दिया गया है. इसलिए एसएआर कोर्ट के आदेश को आधारहीन तर्कों से भरा आदेश नहीं माना जा सकता.

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