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जम्मू-कश्मीर: चुनौतियों के बीच मुख्यमंत्री का पदभार संभालेंगे उमर अब्दुल्ला

उमर लिए यह एक निर्णायक क्षण है क्योंकि वह 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद केंद्र शासित प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बनेंगे.

By Moazum Mohammad

Published : 12 hours ago

Updated : 11 hours ago

National Conference vice-president Omar Abdullah
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला (ETV Bharat URDU Desk)

श्रीनगर: नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के लिए यह एक से अधिक वजहों से एक निर्णायक पल होगा. एक वजह यह है कि 2019 में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद वह केंद्र शासित प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री होंगे.

यह एक और मौका होगा जब उनके पास मुख्यमंत्री के वे पूर्ण अधिकार नहीं होंगे जो उन्हें 2009 की ठंडी जनवरी में पहली बार राज्य की बागडोर संभालने पर मिले थे. यह भी पहली बार है कि गृह विभाग जो जम्मू-कश्मीर पुलिस को नियंत्रित करता है, उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जाएगा. इससे सीमावर्ती राज्य में महत्वपूर्ण सुरक्षा मुद्दों पर उनके पास नगण्य अधिकार रह जाएंगे.

इसी तरह विधानसभा का कार्यकाल छह साल से घटकर पांच साल हो जाएगा. जब उमर 38 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने थे तब कार्यकाल छह साल था. इसके अलावा वह पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर के पूर्ण मुख्यमंत्री नहीं होंगे, क्योंकि लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अलग कर दिया गया है.

फिर भी उमर 16 अक्टूबर को शेर-ए-कश्मीर कन्वेंशन सेंटर में डल झील के किनारे ‘कांटों का ताज’ पहनने के लिए तैयार हैं. 2019 में तत्कालीन राज्य के विघटन के खिलाफ किसी भी विरोध की आशंका में राजनीतिक नेताओं को हिरासत में लेने के लिए मेगा सुविधा को उप जेल में बदल दिया गया था.

तीसरी पीढ़ी के अब्दुल्ला जो 1998 में राजनीति में शामिल हुए थे, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इसमें जून 2024 में बारामुल्ला निर्वाचन क्षेत्र से इंजीनियर राशिद से लोकसभा चुनाव हारना भी शामिल है. उन्होंने 2002 में गंदेरबल से अपना पहला चुनाव हार गए. इस सीट से तीन पीढ़ियों के अब्दुल्ला को विधान सभा के लिए चुना था.

उमर को भरोसा था कि जब उन्होंने 19 अगस्त को श्रीनगर में 'गरिमा, पहचान और विकास' शीर्षक से नेशनल कॉन्फ्रेंस का घोषणापत्र जारी किया तो उन्हें 12 गारंटी के अलावा राज्य का दर्जा देने का वादा किया. यह कई 'अगर' और 'मगर' को खारिज करके सरकार बनाने के बारे में उनके आशावादी होने से स्पष्ट था. कुछ लोगों के लिए यह आत्मविश्वास केंद्र के साथ ‘छिपी हुई’ डील से उपजा था.

हाल ही में संपन्न विधानसभा में 42 निर्वाचित विधायकों के साथ नेशनल कॉन्फ्रेंस को सबसे बड़ी पार्टी घोषित करने वाले निर्णायक जनादेश ने उनके आलोचकों के मन से सारी भ्रांतियां दूर कर दी हैं. दूसरी ओर, भाजपा जो एनसी की योजना को विफल करने वाली एक प्रमुख पार्टी थी, अकेले जम्मू से 29 विधायकों के साथ विपक्ष में बैठेगी. भगवा पार्टी मुस्लिम बहुल घाटी के 47 निर्वाचन क्षेत्रों में से 19 निर्वाचन क्षेत्रों में अपना खाता खोलने में विफल रही.

अपने मंत्रिपरिषद के साथ उमर जम्मू- कश्मीर के 14वें मुख्यमंत्री होंगे, जिससे नई दिल्ली के छह साल के प्रत्यक्ष केंद्रीय शासन का अंत हो जाएगा. जून 2018 में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के गिरने के बाद जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. बाद में पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद इसे बढ़ा दिया गया था.

अब जबकि पहली निर्वाचित सरकार के लिए रास्ता साफ हो गया है, गृह मंत्रालय ने 11 अक्टूबर को एक अधिसूचना जारी कर राष्ट्रपति शासन हटा दिया, जिससे उमर के सत्ता संभालने का रास्ता साफ हो गया. लेकिन उमर को भविष्य में आने वाली चुनौतियों का पूरा अहसास है. यह बात उनके चुनाव प्रचार के भाषणों में भी साफ झलकी. इसमें वे विधानसभा की कमजोरी को उजागर करते हैं और लोगों को अगली सरकार की सीमाओं के बारे में बताते हैं.

कानूनी और प्रशासनिक शक्तियों का बड़ा हिस्सा उपराज्यपाल के पास है. यह जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के उप-नियम 2(ए) के तहत ‘कारोबार के लेन-देन’ नियमों में संशोधन के जरिए आया है. इनमें आईएएस और आईपीएस के तबादले और पोस्टिंग, जम्मू-कश्मीर पुलिस, कानून-व्यवस्था और एडवोकेट-जनरल सहित न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के फैसले शामिल हैं. नए नियमों में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, जेल और अभियोजन और अपील दायर करने पर उपराज्यपाल के नियंत्रण का भी विस्तार किया गया है.

उमर ने इस बारे में मतदाताओं से नहीं छिपाया. उदाहरण के लिए, पिछले महीने कुलगाम के दमहाल हंजीपोरा निर्वाचन क्षेत्र के सुदूर कोने में उन्होंने बड़ी भीड़ को खुलेआम बताया कि अगली सरकार की शक्तियां कम हो गई है. उमर ने कहा, 'हम विधानसभा के लिए वोट मांग रहे हैं लेकिन इसमें वह शक्ति नहीं है जिसकी हमें जरूरत है. एनसी और उसके गठबंधन सहयोगी विधानसभा को फिर से शक्तिशाली बनाएंगे, इंशा अल्लाह.'

उनकी पार्टी के भीतर और बाहर के कई लोगों का मानना ​​है कि उमर की साफगोई ने मतदाताओं को प्रभावित किया और उन्हें पार्टी पर भरोसा करने के लिए प्रेरित किया. 1996 के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में किसी क्षेत्रीय राजनीतिक दल ने 40 का आंकड़ा पार किया है, जब उसी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 57 सीटें जीती थी. तब से उसके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सहित सभी दल सबसे अधिक 28 सीटों तक पहुंच गए हैं.

एक वरिष्ठ नीति विश्लेषक उमर की पार्टी की चुनावी सफलता का श्रेय इस बात को देते हैं कि उन्होंने अपनी पार्टी को भाजपा की योजना के खिलाफ एकमात्र ताकत के रूप में पेश किया. अपनी बात को स्पष्ट रूप से रखते हुए उन्होंने एनसी सांसद आगा रूहुल्लाह के साथ मिलकर 2019 के बाद लोगों की शक्तिहीनता को बढ़ावा दिया, जिससे वे सत्ता में आ गए.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नवनिर्वाचित विधायक हसनैन मसूदी पार्टी की सफलता का श्रेय उमर के 'यथार्थवादी' दृष्टिकोण को देते हैं. पूर्व सांसद और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जो पार्टी के घोषणापत्र पैनल के सदस्यों में से एक थे, उनका तर्क है कि उमर ऐसा कुछ भी वादा नहीं करना चाहते थे जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो. मसूदी ने ईटीवी भारत से कहा, 'कभी-कभी, हम अतिरिक्त प्रयास करते थे, लेकिन वह हमें वादों में यथार्थवादी होने की सलाह देते थे.'

पार्टी के कई लोगों ने सुझाव दिया कि उपभोक्ताओं के लिए 500 यूनिट मुफ्त बिजली की घोषणा की जाए क्योंकि वे अपने बिजली बिलों का भुगतान करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि उनका सुझाव है कि पैनल उन वादों पर कायम रहे जो पूरे किए जा सकते हैं. इससे उन्हें इसे घटाकर केवल 200 यूनिट करना पड़े. मसूदी ने कहा, 'वह केवल लोकलुभावनवाद में विश्वास नहीं करते हैं. उन्होंने कई चुनौतियों के बावजूद चुनावों में हमारा नेतृत्व किया और अब वह सरकार में भी हमारा नेतृत्व करेंगे. मुझे यकीन है कि हम सभी चुनौतियों को पार कर लेंगे क्योंकि वह हमें आगे बढ़ाने और नेतृत्व करने के लिए सबसे अच्छे व्यक्ति हैं.'

उनके आलोचक उनके पिछले कार्यकाल को याद करते हैं. इस दौरान महीनों तक विरोध प्रदर्शन और कर्फ्यू शामिल था. इसके कारण कश्मीर में हत्याओं का दौर चला. लेकिन उनके करीबी विश्वासपात्रों का तर्क है कि उन्होंने जमीनी हालात के साथ खुद को समावेश लिया. खासकर तब जब 2019 में उनके पिता और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के साथ उन पर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था.

उन्होंने कहा, 'उमर ने वही अनुभव किया और जिया जो उनके दादा शेख साहब ने जेल में रहते हुए झेला होगा. वह राजनीतिक रूप से परिपक्व हैं और उनकी उम्र उनके पक्ष में है, जबकि पिछली बार वह युवा थे. अब उनके पास संख्याबल भी है. ये सभी चीजें उन्हें आगे की चुनौतियों के लिए और बेहतर बनाती हैं और बेहतर प्रदर्शन करने में सक्षम बनाती हैं.'

पार्टी के बाहर भी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एम) के टिकट पर पांचवीं बार विधानसभा के लिए चुने गए एमवाई तारिगामी उमर को 'गतिशील' और 'युवा' बताते हैं. उनके अनुसार ऐसा लगता है कि जनादेश के साथ-साथ मुख्यमंत्री पद के लिए मिले समर्थन के कारण लोगों के साथ-साथ उनकी पार्टी भी उन पर भरोसा करती है. सरकार के गठबंधन सहयोगी तारिगामी ने कहा, 'अब हम सभी को लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना होगा.' उस बड़ी चुनौती के लिए, चुनाव जीतने के बाद नई दिल्ली के साथ उनके मेल-मिलाप भरे लहजे से उनकी भविष्य की योजना का संकेत मिलता है.

संविधान विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता रियाज खावर जम्मू-कश्मीर विधानसभा की तुलना पुडुचेरी से करते हुए कहते हैं कि सरकार अधिकारियों के तबादले के लिए उपराज्यपाल को सिफारिशें कर सकती है. उन्होंने कहा, 'इसके अनुसार, एलजी उन्हें मंजूरी दे सकते हैं. मुझे नहीं लगता कि दोनों के बीच कोई टकराव होगा क्योंकि जम्मू-कश्मीर एक संवेदनशील क्षेत्र है.'

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Last Updated : 11 hours ago

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