नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी के खिलाफ अपना हमला जारी रखते हुए कांग्रेस ने अपने 48 पन्नों के चुनाव घोषणापत्र में भी कम से कम 38 बार बीजेपी और 55 बार एनडीए का जिक्र करते हुए निशाना साधा है, जबकि बीजेपी के घोषणापत्र में कांग्रेस का जिक्र तक नहीं किया गया है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए जाने-माने राजनीतिक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर अपूर्वानंद ने इसे स्वाभाविक बताते हुए कहा कि कांग्रेस विपक्षी पार्टी है, इसलिए उन्हें बीजेपी (जो सत्तारूढ़ पार्टी थी) का जिक्र करना होगा.
प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा, 'हालांकि, सत्तारूढ़ दल यह तय कर सकता है कि वे किसी का उल्लेख करना चाहते हैं या नहीं. सत्तारूढ़ दल के प्रदर्शन का विश्लेषण करना विपक्षी दलों का भी कर्तव्य है. विपक्ष को चाहिए कि वह जनता को सत्ता पक्ष की कमियों के बारे में जरूर बताए, क्योंकि वे सत्ता पक्ष को सत्ता से हटाना चाहते हैं.'
अपूर्वानंद के मुताबिक कांग्रेस के घोषणापत्र में बेहतर स्पष्टता है जबकि बीजेपी के घोषणापत्र में केवल 'बड़े दावे' किए गए हैं. दोनों पार्टियों के घोषणापत्र की तुलना करते हुए, कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की एक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि भाजपा के घोषणापत्र में मौजूदा नीतियों को जारी रखने, भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने और जरूरतमंदों के लिए पर्याप्त सामाजिक समर्थन का सुझाव देने पर जोर दिया गया है. जबकि दूसरी ओर कांग्रेस के घोषणापत्र में नई आर्थिक नीति और सरकार के नेतृत्व वाले रोजगार के माध्यम से नौकरियों के सृजन, एमएसपी और नकद हस्तांतरण के लिए कानूनी गारंटी, शिक्षा ऋण माफी और जरूरतमंदों के लिए आरक्षण में वृद्धि की परिकल्पना की गई.
भाजपा के घोषणापत्र में 2014-24 के दौरान अपने पिछले दो कार्यकालों की उपलब्धियों पर जोर दिया गया, जबकि कांग्रेस के घोषणापत्र में पिछले 10 वर्षों की कमियों और 2004-14 के दौरान अपने दो कार्यकालों की अपनी उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया.
कांग्रेस घोषणापत्र:न्याय पत्र नाम से कांग्रेस के घोषणापत्र में परिचयात्मक संदेश में भी एक ऐसी नीति को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा/एनडीए सरकार पर हमला किया गया जो भारत की आर्थिक अस्थिरता, नौकरी छूटने, महिलाओं के खिलाफ अपराध और कई अन्य मुद्दों को बढ़ावा देती है.
न्याय पत्र में कांग्रेस निजी क्षेत्र की सुविधा और सरकारी क्षेत्र में आरक्षण, महिलाओं के लिए केंद्र सरकार की नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण, राज्य विधानसभाओं और लोकसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण के माध्यम से रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करती है. एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा बढ़ाने के लिए लिए संवैधानिक संशोधन और अन्य मुद्दों के बीच आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में सरकार की बड़ी भूमिका की बात करती है.