नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय की खंडपीठ के उस अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें राज्य सरकार को कक्षा 5,8 और 9 के छात्रों के योगात्मक मूल्यांकन के लिए निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 11 मार्च से बोर्ड परीक्षा आयोजित करने की हरी झंडी दी गई थी. शीर्ष अदालत ने कर्नाटक सरकार के वकील से कहा, 'आपने देश की पूरी शिक्षा प्रणाली को खराब कर दिया है और अब आप इसे जटिल बनाना चाहते हैं. कृपया वैसा मत करो...'
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा, 'हम वर्तमान अपीलों को स्वीकार करते हैं और खंडपीठ द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हैं. खंडपीठ को मुख्य अपीलों पर कानून के अनुसार यथाशीघ्र निर्णय करना होगा... हमारे द्वारा की गई टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना, गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए.'
सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने जोर देकर कहा कि उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सही आदेश पारित किया है. कामत ने कहा कि यह कोई परीक्षा भी नहीं है, यह एक योगात्मक मूल्यांकन है और यह छात्रों को उनके भविष्य के लिए तैयार करने की राज्य की नीति है.
कामत ने कहा कि कक्षा 9 और 11 शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते हैं और कक्षा 11 की परीक्षाएं पहले ही समाप्त हो चुकी हैं. बेंच ने कहा कि 'कक्षा 8 तक आपको नियमित परीक्षा आयोजित करने की अनुमति है (आरटीई के अनुसार)...उच्च न्यायालय को निर्णय लेने दें, दो बार उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने अनुमति नहीं दी (परीक्षा के संबंध में राज्य सरकार की अधिसूचना).'
कामत ने आरटीई की धारा 30 का हवाला देते हुए कहा कि प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी भी बच्चे को बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करने की आवश्यकता नहीं होगी और कहा कि जोर उत्तीर्ण करने पर है. जस्टिस मिथल ने कहा कि अगर उन्हें पास करना जरूरी नहीं है तो आप परीक्षा क्यों आयोजित कर रहे हैं.
इन परीक्षाओं को आयोजित करने के राज्य के फैसले पर कामत ने कहा, 'हमने पाया कि कक्षाओं में जो सिखाया जा रहा है वह मानकों के अनुरूप नहीं हो है. इसलिए एक राज्य के रूप में मुझे यह जानने की जरूरत है कि हमारे अधिकार क्षेत्र में संचालित स्कूल अपना काम कर रहे हैं या नहीं और इसका आकलन करने का सबसे अच्छा तरीका एक समान मूल्यांकन करना है...'