नालंदा:नवरात्रि के मौके पर माता के दरबार में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है. नौ दिनों के मां दुर्गा के अनुष्ठान के दौरान ईटीवी भारत आपको उन मंदिरों के बारे में बता रहा है, जहां से श्रद्धालुओं की विशेष आस्था जुड़ी हुई है. उन्हीं में से एक मंदिर बिहार के नालंदा में है, जहां नवरात्र के समय महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है. आखिर मां दुर्गा की पूजा से महिलाओं को ही दूरी क्यों बनानी पड़ रही है, इसके पीछे की वजह क्या है विस्तार से जानें.
माता के इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित: जिले के गिरियक प्रखंड का घोसरामा गांव में मां आशा देवी का भव्य मंदिर है. पालकालीन राजा घोष यहां वास करते थे. इसी वजह से इस गांव का नाम घोसरावां पड़ा. यहां सैकड़ों वर्ष पूर्व से मां आशा देवी की पूजा होते आ रही है. यह जगह जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से 15 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है.
नवरात्रि में महिलाएं नहीं करती प्रवेश: यहां मां आशापुरी का भव्य मंदिर है. जिसे लोग सिद्ध पीठ के नाम से भी जानते हैं. मंदिर के पुजारी अनिल उपाध्याय और पवन कुमार उपाध्याय बताते हैं कि माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु देश के कोने कोने से यहां आते हैं और 9 दिनों तक वास कर पूजा अर्चना करते हैं.
"मनोकामना पूर्ण होने पर हर वर्ष परिवार के साथ हर्षोल्लास के साथ प्रसाद चढ़ावा के लिए आते हैं. सच्चे दिल से जो भी श्रद्धालु मां आशादेवी से मन्नत मांगते हैं, उनकी मन्नतें पूर्ण होती है. चैत नवरात्र में इस मंदिर के भीतर महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है."- अनिल उपाध्याय, पुजारी
"मंदिर में नवरात्र के अवसर पर माता की विशेष पूजा की जाती है, जिसे बाम पूजा या तंत्र पूजा कहा जाता है. नवरात्र के अवसर पर तांत्रिक इस जगह पर आकर सिद्धियां प्राप्त करते हैं. जिसके कारण नवरात्र के मौके पर 9 दिनों तक इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी जाती है."- पवन कुमार उपाध्याय, पुजारी
सदियों से चली आ रही परंपरा: नवरात्र के पावन अवसर पर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो आज भी जारी है. नवमी के दिन पूजा होती है, और इस पूजा के बाद पशु की बलि दी जाती है. दशमी की रात्रि आरती के बाद ही महिलाओं को माता के दर्शन की अनुमति दी जाती है.