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महाराष्ट्र: हिंदू-मुस्लिम मिलकर कर तैयार रहे होली, गुड़ी पड़वा के लिए कंगन - Holi in Jalgaon

Holi 2024: जलगांव शहर में अमलनेर का एक मुस्लिम परिवार, हिंदू भाइयों के साथ होली, गुड़ी पड़वा के लिए मालाएं तैयार कर रहा है. इस परिवार की पांचवीं पीढ़ी होली के लिए पारंपरिक चीनी गाथी कंगन बना रही है.

Be ready with bracelets for Holi and Gudi Padwa
तैयार रहे होली, गुड़ी पड़वा के लिए कंगन

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 24, 2024, 5:39 PM IST

जलगांव: होली और रंग पंचमी हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण त्योहार हैं. होली, रंगपंचमी आपसी मतभेदों को भुलाकर एक साथ आने और अलग-अलग रंग खेलने का त्योहार है. होली के लिए जरूरी हार (हर कंगन) बनाने और बेचने का काम तेज हो गया है.

जलगांव शहर में अमलनेर का एक मुस्लिम परिवार अपने हिंदू भाइयों के साथ होली, गुड़ी पड़वा के लिए मालाएं तैयार कर रहा है. होली पर चीनी की माला और चूड़ियां दी जाती हैं. होली से लेकर गुड़ी पड़वा तक उपभोक्ताओं के बीच चीनी के हार और चूड़ियों की काफी मांग रहती है.

पिछले साल की तुलना में इस साल चीनी छह रुपये प्रति किलो महंगी हो गई है. इससे नेकलेस की कीमत में बढ़ोतरी हुई है. सोमवार 25 मार्च को होली है. चीनी की माला चढ़ाकर होली की पूजा की जाती है, साथ ही छोटी लड़कियों को चीनी का हार और लड़कियों को हार देने की रस्म पूरी की जाती है. गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी को चीनी की माला पहनाई जाती है. नेकलेस की कीमत फिलहाल 40 रुपए प्रति शेयर है, जो कि प्रति किलो रेट 140 से 150 रुपये है. चीनी, कोयला, रस्सी, मजदूरी दरों में वृद्धि के कारण यह दरें बढ़ी है, जिसका थोक रेट 90 से 100 रुपये प्रति किलो है.

अमलनेर के अजीज करीम हलवाई राष्ट्रीय एकता की खेती कर रहे हैं. हरकड़े बनाने का उनका छोटा सा व्यवसाय हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है. उनका परिवार पांच पीढ़ियों से लगातार कन्फेक्शनरी व्यवसाय से जुड़ा है. उनका ये बिजनेस अजीज भाई के परदादा के समय से चला आ रहा है. दादा अमीरभाई ने परंपरा को आगे बढ़ाया, तो पिता करीमभाई ने व्यवसाय में प्रगति की. अजीज हलवाई वाले 26 साल से जलगांव में एक महीने के लिए न्यू मिलन हार कंगन के नाम से यहां कसमवाड़ी में एक फैक्ट्री चला रहे हैं. उनके यहां एक महीने में एक हजार किलो माल तैयार किया जाता है, जिसे दूसरे व्यापारी ले जाकर बेचते हैं.

हिंदू-मुस्लिम कारीगर एक साथ

अजीज भाई के छोटे से व्यवसाय में हिंदू, मुस्लिम और आदिवासी सभी मिलकर एक साथ काम कर रहे हैं. इसमें राम भील, संजय भील, गुरुभाऊ भील, दिलबर भील, निसार पेलवान, माजिद करीम, साजिद माजिद, साबिर माजिद आदि शामिल हैं. ये मंडलियां जाति भेद का पालन किए बिना 'मज़हब नहीं सिखाता.., आपस में बैर रखना.. हिंदी हैं हम, हिंदी हैं हम..' कहावत के अनुसार सद्भाव में एक साथ काम करती हैं.

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