वाराणसी :ज्ञानवापी के व्यास जी के तहखाने में 30 साल के बाद बुधवार की रात फिर से पूजा शुरू करा दी गई. इसके बाद से लगातार पुलिस-प्रशासन की ओर से अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है. वहीं मुस्लिम समुदाय की नाराजगी भी सोशल मीडिया पर विभिन्न पोस्ट के जरिए सामने आने लगी है. ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के ज्वाइंट सेक्रेटरी एमएस यासीन का एक मैसेज कुछ देर पहले से ही सोशल मीडिया पर सामने आया है. मैसेज में अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि के फैसले से लेकर ज्ञानवापी को लेकर हो रही कवायद में न्यायालय की भूमिका पर सवाल खड़े किए गए हैं. 31 जनवरी को जिला जज डॉक्टर अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत की तरफ से तहखाने में दी गई पूजा की अनुमति पर न्यायाधीश को भी कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई है.
सबसे पहले जानिए संयुक्त सचिव ने पोस्ट में क्या लिखा है :अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के ज्वाइंट सेक्रेटरी एमएस यासीन की ओर से सोशल मीडिया पर किए पोस्ट में लिखा गया है कि बाबरी मस्जिद के मुकदमात का फैसला देते समय पांच लोग जिन्हें माई लार्ड कह कर पुकारते हैं, उन्होंने न्याय की गरिमा को सबसे निम्न स्तर पर लाने की शुरुआत कर इनामात हासिल किए. उस मुल्क में जहां अदले जहांगीरी मशहूर हुआ करती थी, इस पतन का सिलसिला शुरू हो गया. हमारी मस्जिद ज्ञानवापी का मौजूदा संकट भी इसी न्याय तंत्र की देन है. एएसआई सर्वे का आदेश पहला कदम था. इसे हमने ज्यूडीशियल कारसेवा का नाम दिया था. 31 जनवरी को रिटायरमेंट से चंद घंटे पूर्व ज्यूडीशियल डाका का आदेश पारित हो ही गया. रात के अंधेरे में बैरिकेडिंग हट गई. रात के अंधेरे में ही मूर्तियों को मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में संवैधानिक अधिकारियों के दिशा-निर्देश पर दाखिला मिला. भारतीय न्याय तंत्र के इतिहास का बदतरीन दिन भी इन बूढ़ी आंखों ने देखा. संविधान और संविधान पर विश्वास रखने वालों का बहुत बड़ा इम्तिहान है. हम न्याय की तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट भेजकर इतने महत्वपूर्ण विषय पर अपना पल्ला झाड़ लिया.